Chhattisgarh news- छत्तीसगढ़ी लोक परम्परा का प्रमुख त्योहार तिहार पोरा

Updated: 28/08/2022 at 7:57 AM
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राकेश शर्मा (The Face Of India News)

छत्तीसगढ़। आइए जानते हैं छत्तीसगढ़ की पारंपरिक तिहार पोरा के बारे में पोरा का अर्थ होता है, पोर फुटना या पोटीयाना, जब धान की बालियों में पोर फुटता है अर्थात धान की बालियों में दूध भर आता है। यह समय धान की बलियो के गर्भावस्था का समय होता है। धान की बालियों में पोर फुटने के कारण इस पर्व को, पोरा कहा जाता है। इस पर्व में हमारे बैलों की मुख्य भूमिका होती है, जो खेतों में जुताई से लेकर, खेतो के सम्पूर्ण कार्य मे अपनी मुख्य भूमिका निभाते हैं। किसान, अपने बैलो के प्रति समर्पण का भाव व्यक्त करने के लिए व सम्मान देने के लिए, इस पर्व में बैलो को सुबह- सुबह नहला धुला कर, बैलों का साज श्रृंगार कर पूजा अर्चना करता है। छत्तीसगढ़ के लोग प्रकृति प्रेमी है, और प्रकृति को ही अपना सर्वस्व मानते हैइसीलिए छत्तीसगढ़ के हर तीज त्योहारों में प्रकृति पूजन देखने को मिलता है।यह पर्व शिक्षाप्रद भी है, जो आने वाली पीढ़ियों को शिक्षा देने का कार्य करती है, छत्तीसगढ़ के किसान अपने बेटो को, बैलों के महत्व समझाने के लिए, मिट्टी के बैल बना कर देते हैं तथा अपनी बेटियों को गृहस्थी जीवन जीने की कला सिखाने के लिए मिट्टी के जांता (दाल, चावल पीसने का यंत्र), चूल्हा व बर्तन बना कर देते हैं, ताकि वह खेल- खेल में समझ सके कि अपने कर्तव्यों को आगे चलकर किस प्रकार निभाना है।

ठेठरी और खुरमी का महत्व

छत्तीसगढ़ में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं परंतु छत्तीसगढ़ की, प्रमुख व्यंजनों में, ठेठरी और खुरमी का अलग ही महत्व है, ठेठरी और खुरमी को छत्तीसगढ़ में शिव और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। खुरमी, जिसमे गुड़/ शक्कर की प्रधानता होती है, जिसे चावल व गेंहू आटे मिलाकर बनाया जाता है, इसकी आकृति शिवलिंग के समान होती है जो शिव का प्रतीक है। वही ठेठरी में नमक की प्रधानता होती है जिसे बेसन, नमक मिलाकर बनाया जाता है, ठेठरी की आकृति जलहरी के समान होती है, जो शक्ति (पारबतीं माता) का प्रतीक है। पोरा पूजन (मिट्टी के बैल व मिट्टी के छोटे बर्तन रख कर पूजा) के समय, ठेठरी के ऊपर, खुरमी रख कर भोग लगाया जाता है। जो सम्पूर्ण रूप से शिवलिंग के समान दिखता है। जिसे आप नीचे फ़ोटो में देख सकते है।

पोरा तिहार की कैसे बनाया जाता है

पोरा तिहार के दिन, किसान सुबह उठकर अपने बैलों को नहलाने के लिए, तालाबों व नदियों में ले जाते हैं, इधर माताएं भी सुबह स्नान कर विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने लग जाती हैं जैसे ठेठरी, खुरमी, अरसा (गुडपीठा), पूड़ी, बड़ा, आदि। बच्चे, बड़ों की सहायता लेकर अपने मिट्टी के बैलों में, मिट्टी के पहिये लगाने में लग जाते हैं, अपने बैलों को बड़े साज सज्जा के साथ बच्चे तैयार करते हैं, और पूजा स्थान पर रख देते है, बेटियां भी अपनी मिट्टी के बर्तनों को पूजा स्थान पर रख देती है। किसान, अपने बैलों को नहला धुला कर, नदी नालों से लाता है और गौशाला में बांधकर, बैलों का साज श्रृंगार करता है। किसान का पूरा परिवार, मिट्टी के बैलों व मिट्टी के बर्तनों का पूजन करता है, साथ ही अपने इष्ट देव का पूजन कर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाता है, किसान अपने गौशाला में बंधे बैलों का पूजन कर, भोग लगाता है, तदुपरांत विभिन्न प्रकार के बने व्यंजनों को, मिट्टी के बर्तनों में भरकर, अपने खेत खलियानो में ले जाता है, अपनी धान की बालियों को, जो कि गर्भ धारण किए हैं, उनका पूजन कर, विभिन्न प्रकार के व्यंजनों से भोग करता हैं। संध्याकालीन बच्चे अपने मिट्टी के बैलों को, चौक- चौराहों और मैदानों में ले जा कर बैल दौड़ करते है। बेटियां भी अपनी मिट्टी के खिलौने खेलती है। चौक- चौराहों में पोरा पटकने का भी नियम होता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को, मिट्टी के पात्र में भरकर पटका जाता है, जो बैलों के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रगट करता है। ऐसी है हमारी छत्तीसगढ़ की संस्कृति

आलेख:-अभिषेक सपन मटपरई शिल्पकार ग्राम- डूमरडीह, जिला:-दुर्ग

First Published on: 28/08/2022 at 7:57 AM
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