बरहज, देवरिया। युवाओं के प्रेरणास्रोत वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी १८63 को हुआ था उनके घर का नाम नरेंद्र नाथ था ।उनके पिता विश्वनाथ दत्त उन्हें अंग्रेज़ी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे किन्तु भारत और भारतीयता में विश्वास रखने वाले नरेंद्र नाथ ने संपूर्ण विश्व को भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म से परिचित कराया ।बचपन में नरेंद्र ब्रह्म समाज में गए किन्तु उन्हें वहा संतोष नहीं हुआ और उन्होंने स्वामी रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु स्वीकार करते हुए गुरु सेवा में जुट गये ।कुछ दिनों बाद गुरुदेव का शरीर अत्यंत रुग्ण हो गया था कैंसर के कारण गले में से थूक रक्त का पानी निकलता था लेकिन इसकी परवाह किए बिना नरेंद्रनाथ सदैव उनकी सेवा में लगे रहे है गुरु के प्रति ऐसी समर्पण और निष्ठा के से ही वे अपने गुरु के शरीर की सेवा कर सके ।और भारत के अमूल्य आध्यात्मिक खज़ाने की को चुर्तदिक फैला सकें ।25 वर्ष की उम्र में उन्होने गेरुआ वस्त्र पहन लिया और पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया।१८83 में शिकागो में आयोजित विस्तृत विश्व धर्म परिषद में भारत के प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लेते हुए उन्होंने जिस तरह का प्रदर्शन किया उससे भी अमर हो गए ।आज भी उनके विचार युवाओं को प्रेरित करते हैं ।उक्त उद्गार आज अनंत पीठ के पीठाधीश्वर आञ्जनेय दास जी महाराज अनंत पीठ में आयोजित विवेकानंद जयंती के अवसर पर व्यक्त किया सर्वप्रथम आंजनेयदास महाराज ने स्वामी विवेकानंद के चित्र पर माल्यार्पण कर किया। इस अवसर पर कृष्ण मुरारी तिवारी प्रधानाचार्य संस्कृत महाविद्यालय आश्रम बरहज शिवम पांडे विनय मिश्र, अभय पांडे ,अवधेश पाल ,मानस मिश्र, अनुपम मिश्र,अनमोल मिश्र, सहितअन्य लोगों ने विवेकानंद के चित्र पर पुष्प माला अर्पित किया ।