देवरिया। जनपद में हरितालिका तीज के अवसर पर मंदिरों में महिलाओं का जनसैलाब देखने को मिला। महिलाएं पूर्ण रूप से श्रृंगार कर भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर अपने सुहाग की सलामती की दुआएं मांग रहीं थीं।बता दें कि महिलाएं भोर में फल मुल खाने के भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा के सामने अपने सुहाग के सलामती के लिए भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना करतीं हैं साथ ही अन्न जल त्याग कर निर्जला व्रत रखने कि सौगंध खातीं हैं। शाम को शुभ मुहूर्त में भगवान भोलेनाथ के मंदिरों में अपने सुहाग के साथ पुजा अर्चना के लिए पहुंचती हैं और भगवान भोलेनाथ के दर्शन कर सुहाग की उत्तम स्वास्थ्य व सलामती की दुआ करती हैं। हरतालिका तीज को हरितालिका व्रत या तीजा भी कहते हैं। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होता है।
इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती महिलाएं भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा करती हैं। यह त्योहार विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्योहार करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि करवाचौथ में चन्द्रमा को देखने के बाद व्रत को सम्पन्न कर दिया जाता है लेकिन इस व्रत में पूरे दिन निर्जला व्रत रहा जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत सम्पन्न माना जाता है। इस व्रत के बारे में यह भी मान्यता है कि सुहागिन स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन अनुसार वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं।
सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ के लिए रखा था। इस दिन विशेष रूप से भगवान भोलेनाथ व माता पार्वती का ही पूजन किया जाता है। महिलाएं शिव पार्वती विवाह की कथा भी सुनती हैं।इस व्रत की पात्र कुवारी कन्याएँ व सुहागिन महिलाएँ दोनों ही हैं परन्तु एक बार व्रत रखने उपरांत जीवन पर्यन्त इस व्रत को रखना पड़ता है। यदि व्रती महिला गंभीर रोग से पीड़ित हैं तो उसके स्थान पर दूसरी महिला व उसका पति भी इस व्रत को रख सकते हैं। अधिकतर यह व्रत पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार के लोग मनातें हैं।
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