भारत में धार्मिक 'शांति' के लिए 'शोर' न बने बाधक

जून 28, 2022 - 08:15
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भारत में धार्मिक 'शांति' के लिए 'शोर' न बने बाधक
भारत
वैसे भारत तो एक धर्म निरपेक्ष देश कहा जाता है लेकिन यहां कभी कभी ऐसे मामले देखने को मिलते है जहां ऐसा महसूस होता है कि भारत का संविधान धार्मिक कट्टरता और मनमानी के आगे घुटता नजर आता है, जो सर्वथा अनुचित है। और इस धार्मिक कट्टरता और मनमानी के पीछे कही न कही तुष्टीकरण की गंदी राजनीति होती है। लेकिन तुष्टीकरण की राजनीति करने वालों को यह पता नही कि देश के संविधान के आगे किसी भी तरह की धार्मिक कट्टरता और मनमानी नही किया जा सकता है। जो भी संविधान में कानून बनाये गये है वह सभी कानून देश में रहने वाले हर एक नागरिक को मानना जरूरी है। कोई संविधान की बात को अपने धर्म, पंथ, परम्परा और रीति रिवाज से जोड़कर न मानने की बात नही कर सकता है। यदि संविधान में लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता का समेत अन्य मौलिक अधिकार दिया है तो उसी संविधान में लोगों को अनुच्छेद 19 में कहा गया है कि किसी का अधिकार असीमित नही है। यानि सभी अधिकार एक सीमा तक ही है। क्योकि केवल एक का ही मौलिक अधिकार नही है। सभी का मौलिक अधिकार है। इसलिए हमें अपने अधिकार का प्रयोग वही तक करना चाहिए जहां तक किसी के अधिकार का हनन न हो। इसलिए सभी को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए।
   देश में इधर कुछ दिनों से धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर को लेकर काफी बहस और चर्चा हो रही है। और उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे लेकर अपना मंतव्य भी जारी कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला एकदम सही है। ऐसे ही देश के सभी राज्यों में होना जरूरी है। क्योकि धार्मिक अनुष्ठान और अन्य समारोहों के नाम पर जिस तरह लोग लाउडस्पीकर, डीजे समेत अन्य ध्वनि विस्तारक यंत्रों से आसपास रहने वालों को परेशान करके रख देते है साथ में ध्वनि प्रदूषण में भी काफी सहायक सिद्ध होते है। इस तरह की मनमानी पर यूपी सरकार ने रोक लगाने का का फैसला सराहनीय है। और इसे सख्ती से पालन कराने की जरूरत है।उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले के बाद जिस तरह लोग राजनीतिक रोटी सेककर अपनी राजनीति चमकाना चाहते है उनको पता होना चाहिए कि क्या धार्मिक शांति के शोर करना जरूरी है। इस बेतहासा शोर से न जाने कितने लोग परेशान और बीमार हो जाते है। उनकी कोई परवाह नही करता है। केवल धर्म के नाम पर शोर मचाकर लोगों को बताना कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में भी अपने धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में लोगों के मौलिक अधिकारों की हत्या कर रहे है। यह कहां तक उचित है? किस धार्मिक ग्रंथ में लिखा है कि लाउडस्पीकर की आवाज बजाकर लोगों को परेशान करें।
  यदि लाउडस्पीकर के खोज की बात की जाये तो 1861 में इसकी खोज हुई। तो क्या इसके पहले धार्मिक कार्यक्रम और अनुष्ठान नही होते थे। यदि पहले होते थे तो अब इसकी क्यों जरूरत है? जबकि सबको पता है कि अधिक आवाज होने से ध्वनि प्रदूषण के साथ साथ आसपास के लोगों को भी कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन फिर भी धर्म के नाम पर किसी के मौलिक अधिकार की हत्या करना कितना जायज है? आखिर किसी भी धर्म का मुख्य उद्देश्य शांति है या शोर? धार्मिक शोर पर तुष्टीकरण की राजनीति करने वालों में खामोशी क्यों है? यदि सरकार ने लाउडस्पीकर के प्रयोग पर रोक लगा दी है तो कौन सा गलत कार्य है? साथ में यह भी तो विकल्प है कि अपने धार्मिक कार्यक्रम में लगाये गये लाउडस्पीकर की आवाज इतना ही करें जिससे बाहर तक आवाज न जाये। तो इस पर तेज तेज लाउडस्पीकर बजाने की जिद क्यों? क्या धार्मिक मनमानी देश के संविधान से भी ऊपर है। कुछ तथाकथित नेता और धार्मिक लोग सरकार के इस फैसले को किसी विशेष धर्म से जोड़कर देखकर रहे है जो केवल उनके दृष्टिदोष का प्रमुख हिस्सा है। क्योकि जब ध्वनि प्रदूषण का असर होता है तो वह धर्म या जाति नही देखता है जो भी उसके जद में आता है उसे प्रभावित करता है। इसलिए सरकार के इस फैसले पर राजनीति और धर्मनीति करना सर्वथा गलत है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की बात मानी जाये तो रिहायशी इलाके में 45-55 डेसीबल तक ही ध्वनि रहनी चाहिए। इससे अधिक ध्वनि का स्तर नही होना चाहिए। जबकि धार्मिक स्थलों से निकलने वाले ध्वनि का स्तर 70 के ऊपर ही रहता है। जो कही न कही लोगों के लिए नुकसानदायक होता है। जिससे विभिन्न तरह के रोग उच्च रक्तचाप, घबराहट, दिल का दौरा, बहरापन, सिरदर्द होता है। देश भर में लगभग साढे तीन लाख से अधिक धार्मिक स्थल है। जहां से देश को लोगों को ध्वनि प्रदूषण के माध्यम से रोगों की खेप भेजी जाती है लेकिन इसके बावजूद भी  कुछ लोग अपनी राजनीति चमकाने के लिए  इस तरह के प्रदूषण को कम करने या रोकने में सहयोग नही करते है। भारत में धर्म के नाम पर तरह तरह की बातें की जाती है और देश के तथाकथित नेता भी ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करके देश को जलाने की जुगत में लगे रहते है। जबकि प्रदूषण से पूरे देश को खतरा है न कि एक धर्म के लोगों को न ही किसी एक जाति के लोगों को। देश में सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषण दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में देखने को मिलता है। इसलिए देश के हर नागरिक को चाहिए कि ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए अपने स्तर पर बेहतर कार्य करें जिससे देश की सेहत और मजबूत रहे। इसके लिए देश के हर राज्य को उत्तर प्रदेश की तरह सख्त होना जरूरी है। क्योकि धर्म का मुख्य उद्देश्य शांति है न कि शोर।
संतोष कुमार तिवारी
भदोही, उत्तर प्रदेश 

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