अंकिता पाठक – THE FACE OF INDIA
कॉफी बनाते समय जो उसका वेस्ट यानी उसका जो बचा हुआ हिस्सा होता है, अब से उसका उपयोग दिमाग सही करने के लिए होगा। यानी की दिमाग में मौजूद संचार प्रणाली सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए। यानी अब से कॉफी पीकर नींद से जागिए और उसके वेस्ट से यानी उसका जो बचा हुआ हिस्सा होता है, उससे दिमाग को सही रखिए…
सुबह-सुबह एक मग कॉफी पीते ही नींद गायब हो जाती हैं।तुरंत ही दिमाग दुरुस्त हो जाता हैं। आलस गायब हो जाता हैं।अब कॉफी की वजह से लोगों को खुश होने की एक वजह और मिलने वाली है। कॉफी बनाने के बाद जो उसका बचा हुआ हिस्सा निकलता है। उसका उपयोग पर्यावरण को बचाने वाली इलेक्ट्रोड कोटिंग (Electrode Coating) के लिए अब से किया जाएगा। यह कोटिंग दिमाग की रासायनिक विद्युत ऊर्जा को मापने के लिए उपयोग में लाई जाती है।
बेकार बची कॉफी से दिमाग की गतिविधियों को मापने वाले यंत्रों में उपयोग कर सकते है। इस बची हुई कॉफी के उपयोग से बनाए गए यंत्रों के उपयोग की जानकारी वैज्ञानिकों ने हाल ही में अभी अमेरिकन केमिकल सोसाइटी (ACS) में दी। इससे पहले बची हुई कॉफी का उपयोग पोरस कार्बन सुपरकैपेसिटर्स में ऊर्जा को संरक्षित रखने के लिए होता था। लेकिन अब से पीएचडी शोधार्थी और इस शोध की प्रमुख शोधकर्ता एश्ले रॉस ने कहा है कि हम कॉफी वेस्ट को रिसाइकिल करके उसका अलग उपयोग करते हैं।
कॉफी पीने से नींद तो खुलती है, इंसान काफी देर के लिए फ्रेश भी फील करता है। एश्ले रॉस और उनकी टीम ने बचे हुए कॉफी के पाउडर से कवर किए हुए इलेक्ट्रोड दिमाग के अंदर बायोमॉलिक्यूल्स की पहचान कर लेते हैं। पहेली बार हुआ है ऐसा कि जब इस तरह का प्रयोग किया गया है। कॉफी के मदद से दिमाग के अंदर होने वाली रासायनिक विद्युत ऊर्जा को मापने की व्यवस्था की गई है। एश्ले ने कहा कि हमने पोरस कार्बन में ऊर्जा संरक्षित रखने के पेपर्स भी देखे थे। फिर सोचा क्यों न इस पदार्थ को न्यूरोकेमिस्ट्री के लिए उपयोग किया जाए। तब ये आइडिया आया। एश्ले ने मजाक में ही हंसते हुए कहा कि साथ ही लैब के लिए ढेर सारी कॉफी खरीदने का मौका भी मिल जाएगा। आमतौर पर जो न्यूरोसाइंटिस्ट है वो पारंपरिक माइक्रोइलेक्ट्रोड्स का उपयोग करते हैं, वे कार्बन फाइबर से बने होते हैं। जिस पर बारीक, सॉलिड कार्बन के धागे आपस में बंधे रहते हैं। इसे बनाने में काफी ज्यादा समय और पैसे लगते हैं। इसलिए यह काफी महंगे होते हैं। एश्ले और उनकी टीम ने बची हुई कॉफी के उपयोग से नया इलेक्ट्रोड्स बना दिए। एश्ले के स्टूडेंट काम्या लैप्सली ने कॉफी ग्राउंड्स को सुखाया। ट्यूब फर्नेस में फिर पकाया। उसके बाद उसमें पोटैसियम हाइड्रोऑक्साइड सॉल्यूशन में फिर डाला। इससे फिर कार्बन एक्टीवेट हो गए।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने मिक्सर को वापस गर्म किया। वह भी नाइट्रोजन गैस के नीचे जैसें की अवांछित तत्व बाहर निकल जाए। और फिर इसके बाद इस पर पोरस कार्बन की पतली परत चढ़ाई गई। यह इंसान के बाल के व्यास से 100 गुना ज्यादा पतला इलेक्ट्रोड बनकर फिर तैयार हुआ। इसके जरिए दिमाग में होने वाले इलेक्ट्रोकेमिकल रिएक्शन की जांच करने के लिए इसका उपयोग किया गया। सटीकता का स्तर तीन गुना ज्यादा निकला था। यानी भविष्य में इन सब इलेक्ट्रोड्स की मदद से इलाज संभव होगा।
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