Updated: 26/01/2024 at 2:31 PM
Anjali Singh| THE FACE OF INDIA
गणतंत्र दिवस (26जनवरी) भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है, जिसे भारत में गणतंत्र दिवस दिवस के रूप में मनाया जाता हैं. इस वर्ष 2024 में हम अपना 74 वा गणतंत्र दिवस मनाएंगे. गणतंत्र दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को पूरे 2 साल 11 महीने और 18 दिन के बाद संविधान लागू किया गया था और हमारे देश भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया गया.
भारत को एक स्वतन्त्र गणराज्य बनाने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा द्वारा इसे अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को देश में लागू किया गया. इसे लागू करने के लिये 26 जनवरी को इसलिए चुना गया क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था.
देश के हर कोने-कोने में तिरंगा फहराया जाता है और कई तरह के देशभक्ति कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. विश्व में फैले हुए भारतीय मूल के लोग तथा भारत के दूतावास भी 26 जनवरी को हर्षोल्लास के साथ जश्न मनातें हैं.
क्या बुलडोजर चलाने से बंद हो जाएंगे महजहबी दंगे.. आखिर कब तक तोड़े जाएंगे घर
देश के कई राज्यों से निकलती हैं झांकियां
गणतंत्र दिवस की परेड में दिल्ली में विभिन्न राज्यों की प्रदर्शनी (झांकियां)भी होती हैं, प्रदर्शनी में हर राज्य की विशेषता, उनके लोक गीत व कला प्रस्तुत किया जाता है. यहां की हर प्रदर्शिनी भारत की विविधता व सांस्कृतिक समृद्धि प्रदर्शित करती है.उदाहरण
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश हमेशा गड़तंत्र दिवस और स्वतंत्र दिवस पर अपनी झांकियों को लेकर सुर्खियों मे रहता हैं, कभी राम मंदिर, तो कभी काशी विश्वनाथ उत्तर प्रदेश की झांकियों में हमेशा संस्कृति और सनातन धर्म की झलक दिखाई देती हैं.
पंजाब
पंजाब हमेशा अपनी झांकियों में आजादी, खेती और भारत की एकता को दिखाता है हाल ही में पंजाब ने अपनी झांकि में आजादी आंदोलन को दिखाया था। भारत के स्वतन्त्रता सेनानीयो को भी दर्शाया था.
उत्तराखंड
उत्तराखंड को देव भूमि कहते है और उत्तराखंड अपनी पहचान को लिए हुए हमेशा से अपनी झांकियों में राज्य में स्थित धार्मिक स्थलो को दिखाता है. भोले नाथ का स्थान केदारनाथ, ऋषिकेश, गंगा जमुना का संगम हरिद्वार इन सभी को झांकियो में दर्शाता है.
जम्मू कश्मीर
भारत का सबसे अहम हिस्सा जम्मू कश्मीर जो कश्यप ऋषि के नाम पर कश्मीर पड़ा जहा उन्होंने कई वर्षो तक तपस्या की थी. कई वर्षो बाद आज वहा शांति है , उसी की झलक दिखाते हुए जम्मू कश्मीर अपनी झांकियों में मां वैष्णव देवी, वहा की बदलती हुई छवि को दर्शाता है।
हरियाणा
हरियाणा अपनी झांकी में खेलो को प्रमुख स्थान देता है और दे भी क्यों ना देश में खेलो को लेकर हरियाणा हमेशा से प्रथम स्थान हासिल करता है और हरियाणा की झांकी मे हमे ये साफ दिखाई देता है
कर्नाटक
कर्नाटक हस्तशिल्प के लिए पूरे देश मे मशहूर है और वो अपनी झांकी में इसकी झलक दिखलाता रहता है कर्नाटक की हस्तशिल्प कलाकारी विदेशों में भी काफी सुर्खियां बटोरती है.
गुजरात
गुजरात अपनी झांकियों में क्रांतिविरो वहा के पर्यटक स्थल नई-नई योजनाएं को दर्शाता है. गांधी जी के द्वारा किए गए प्रदर्शनों उनके साबरमती आश्रम और उनके स्वतंत्र से जुड़े कार्यों को दिखाता है.
महाराष्ट्र
गणतंत्र दिवस के दिन होने वाले प्रदर्शनी में महाराष्ट्र की झांकी हमेशा से अग्रणी रहा है। साल 1980 में शिवराज्याभिषेक की झांकी महाराष्ट्र राज्य की ओर से प्रस्तुत की गई थी और इस झांकी ने पहला स्थान प्राप्त किया था। उसके बाद झांकियों की प्रदर्शनी में साल 1993, 94 और 95 में लगातार 3 वर्षों तक महाराष्ट्र ने पहला स्थान हासिल किया था.
झांकी, परेड और जुलूस भारत के राष्ट्रीय टेलीविजन पर प्रसारित होता है और देश के हर कोने में करोड़ों दर्शकों के द्वारा देखा जाता है. 2014 में, पहली बार भारत के 72वें गणतंत्र दिवस के मौके पर महाराष्ट्र सरकार के प्रोटोकॉल विभाग ने मुंबई के मरीन ड्राईव पर परेड आयोजित की, जैसी हर वर्ष नई दिल्ली में राजपथ पर परेड होती है.
विदेशों से आते है मुख्य अतिथि
भारत में हर साल गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) पर मुख्य अतिथि को बुलाने की परंपरा रही है. गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि का विशेष रूप से आदर सत्कार होता है और विदेशी प्रतिनिधियों के लिए भी यह एक बड़े ही सम्मान की बात होती है. गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के चयन की प्रक्रिया करीब छह माह पहले से ही शुरू हो जाती है.
इस प्रक्रिया में किन देशों को आमंत्रित करना है, उन्हें निमंत्रण भेजना, उनके जवाब आने के बाद उनके ठहरने और विशेष रूप से मेहमान नवाजी देना, गणतंत्र दिवस का उन्हें विशेष गार्ड ऑफ ऑनर देना, विशेष भोज खिलाना, आदि कई प्रकार के कार्यक्रमों की तैयारी शामिल होती है.
लेकिन मुख्य अतिथि के तौर पर किस देश को आमंत्रित करना है इस पर भी काफी सोच विचार किया जाता है. आमंत्रण भेजने से पहले कई राजनीतिक पहलुओं पर विचार करना पड़ता है. इस मामले में सबसे पहले भारत और उस देश के संबंधों का ध्यान रखा जाता है जिसका प्रतिनिधि मंडल आमंत्रित किया जा रहा है. इस आमंत्रण से भारत और आमंत्रित देशों से दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए अहम कदम की तरह देखा जा सकता है.
निमंत्रित देशों के साथ संबंध
किसी देश के मुख्य अतिथि को आमंत्रित करने से पहले इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि, उस देश से भारत के ऐतिहासिक संबंध कैसे रहे हैं. जैसे मिस्र देश भारत के लिए अहम देश है क्योंकि 1950 और 1960 दशक में निरपेक्ष आंदोलन में भारत का एक प्रमुख साथी रहा है. इस आंदोलन का मकसद केवल औपनिवेशिक में रहे देशों को शीत युद्ध की चपेट में आने से बचाना था. 1950 के आंदोलन के सदस्य देश, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति को आमंत्रित किया गया था.
आमंत्रित देशों के भारत के साथ व्यवसायिक, राजनीतिक, सैन्य, आर्थिक अन्य हितों पर कैसा पसंबंध है और आगे कैसा होगा इसका भी खास ख्याल रखा जाता है. इसके साथ यह भी ध्यान रखा जाता है कि आमंत्रित अतिथि को बुलाने से भारत के किसी अन्य देश के साथ संबंध खराब तो नहीं होंगे. भारतीय विदेश मंत्रालय के लिए दो देशो के बीच संबंध मजबूत करने का यह एक बेहतरीन मौका होता है
गणतंत्र दिवस (26जनवरी) भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है, जिसे भारत में गणतंत्र दिवस दिवस के रूप में मनाया जाता हैं. इस वर्ष 2024 में हम अपना 74 वा गणतंत्र दिवस मनाएंगे. गणतंत्र दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को पूरे 2 साल 11 महीने और 18 दिन के बाद संविधान लागू किया गया था और हमारे देश भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया गया.
भारत को एक स्वतन्त्र गणराज्य बनाने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा द्वारा इसे अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को देश में लागू किया गया. इसे लागू करने के लिये 26 जनवरी को इसलिए चुना गया क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था.
कैसे मनाते हैं गणतंत्र दिवस
इस दिन हर भारतीय अपने देश के अमर सपूतों जिन्होंने देश के लिए अपनी जान गंवा दी उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारत के राष्ट्रपति देश के नाम संदेश देते हैं. स्कूलों, कॉलेजो अन्य जगहों पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. भारत के राष्ट्रपति दिल्ली के राजपथ पर तिरंगा फहराते हैं. भारत की राजधानी दिल्ली में बहुत सारे आकर्षक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.राजधानी दिल्ली को अच्छी तरह सजाया जाता है कर्त्तव्यपथ पर परेड निकली जाती है जिसमें सभी प्रदेशों और सरकारी विभागों की झांकियाँ होतीं हैं. 26 जनवरी की परेड देखने के लिए देश के कोने कोने से लोग आते हैं. भारतीय सेना के अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन होता है. गड़तंत्र दिवस के दिन धूम-धाम से राष्ट्रपति की सवारी निकलती है.देश के हर कोने-कोने में तिरंगा फहराया जाता है और कई तरह के देशभक्ति कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. विश्व में फैले हुए भारतीय मूल के लोग तथा भारत के दूतावास भी 26 जनवरी को हर्षोल्लास के साथ जश्न मनातें हैं.
क्या बुलडोजर चलाने से बंद हो जाएंगे महजहबी दंगे.. आखिर कब तक तोड़े जाएंगे घर
26 जनवरी का इतिहास
पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में सन् 1929 के दिसंबर में लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें प्रस्ताव पारित कि गई की यदि अंग्रेज सरकार 26 जनवरी 1930 तक भारत को स्वायत्तयोपनिवेश (डोमीनियन) का पद प्रदान नहीं करेगी तो, भारत ब्रिटिश साम्राज्य में ही स्वशासित एकाई बन जाने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया. उस दिन से ही 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसके बाद 15 अगस्त को भारत के स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया.भारत का संविधान
भारत के स्वतंत्र हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा की और इसने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1946 से आरंभ कर दिया था. संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभी सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए. डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ० भीमराव अम्बेडकर, जवाहरलाल नेहरू, डा अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे. संविधान निर्माण में कुल 22 समितीयाँ थी जिसमें प्रारूप समिति सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रमुख समिति थी. इस समिति का काम संपूर्ण ‘संविधान लिखना’ या ‘निर्माण करना’ था.संविधान निर्माता डॉ. भीम राव अंबेडकर का योगदान
प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ० भीमराव आंबेडकर थे. प्रारूप समिति ने और विशेष रूप से डॉ. आंबेडकर ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में भारतीय संविधान का निर्माण किया था और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को 26 नवम्बर 1949 को भारत का संविधान पूर्ण किया. संविधान सभा ने संविधान निर्माण के समय कुल 114 दिन बैठक की थी. इस बैठक में मीडिया और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी. अनेक सुधारों और बदलाव के बाद सभा के 284 सदस्यों ने 24 (जनवरी) 1950 को संविधान की दो हस्तलिखित कॉपियों पर हस्ताक्षर किये थे. इसके दो दिन बाद संविधान 26 जनवरी को देश भर में लागू हो गया था.26 जनवरी का महत्व बनाए रखने के लिए संविधान निर्मात्री सभा द्वारा स्वीकृत संविधान में भारत के गणतंत्र स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई. 15 Aug 1947 को अपना देश हजारों देशभक्तों के बलिदान के बाद अंग्रेजों के शासन से मुक्त हुआ था. इसके बाद 26 जनवरी 1950 को अपने देश में भारतीय शासन और कानून व्यवस्था लागू हुई थी.गणतंत्र दिवस समारोह
नई दिल्ली: गणतंत्र दिवस 26 जनवरी समारोह पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारतीय राष्ट्र ध्वज को फहराया जाता हैं और इसके बाद सभी लोग सामूहिक रूप में खड़े होकर राष्ट्रगान गाया जाता है. उसके बाद फिर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को सलामी दी जाती है. गणतंत्र दिवस को पूरे देश में विशेष रूप से दिल्ली में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर हर साल राजपथ पर एक भव्य परेड इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक आयोजित की जाती है. इस परेड में भारतीय सेना के विभिन्न रेजिमेंट, नौसेना, वायुसेना आदि सभी भाग लेते हैं. गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लेने के लिए देश के सभी हिस्सों से राष्ट्रीय कडेट व विभिन्न विद्यालयों से बच्चे आते हैं, इस समारोह में भाग लेना एक सम्मान की बात होती है. गणतंत्र दिवस पर परेड प्रारंभ करते हुए प्रधानमंत्री राजपथ के एक छोर पर इंडिया गेट पर स्थित अमर जवान ज्योति पर पुष्प माला अर्पित करते हैं. इसके बाद शहीद सैनिकों की स्मृति में दो मिनट के लिए मौन रखा जाता है. यह स्मारक देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए लड़े युद्ध व स्वतंत्रता आंदोलन में देश के लिए बलिदान देने वाले वीर शहीदों के बलिदान का एक स्मारक है. इसके बाद देश के प्रधानमंत्री, अन्य अधिकारियों के साथ राजपथ पर स्थित मंच तक आते हैं, राष्ट्रपति बाद में मुख्य अतिथि के साथ आते हैं.देश के कई राज्यों से निकलती हैं झांकियां
गणतंत्र दिवस की परेड में दिल्ली में विभिन्न राज्यों की प्रदर्शनी (झांकियां)भी होती हैं, प्रदर्शनी में हर राज्य की विशेषता, उनके लोक गीत व कला प्रस्तुत किया जाता है. यहां की हर प्रदर्शिनी भारत की विविधता व सांस्कृतिक समृद्धि प्रदर्शित करती है.उदाहरण
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश हमेशा गड़तंत्र दिवस और स्वतंत्र दिवस पर अपनी झांकियों को लेकर सुर्खियों मे रहता हैं, कभी राम मंदिर, तो कभी काशी विश्वनाथ उत्तर प्रदेश की झांकियों में हमेशा संस्कृति और सनातन धर्म की झलक दिखाई देती हैं.
पंजाब
पंजाब हमेशा अपनी झांकियों में आजादी, खेती और भारत की एकता को दिखाता है हाल ही में पंजाब ने अपनी झांकि में आजादी आंदोलन को दिखाया था। भारत के स्वतन्त्रता सेनानीयो को भी दर्शाया था.
उत्तराखंड
उत्तराखंड को देव भूमि कहते है और उत्तराखंड अपनी पहचान को लिए हुए हमेशा से अपनी झांकियों में राज्य में स्थित धार्मिक स्थलो को दिखाता है. भोले नाथ का स्थान केदारनाथ, ऋषिकेश, गंगा जमुना का संगम हरिद्वार इन सभी को झांकियो में दर्शाता है.
जम्मू कश्मीर
भारत का सबसे अहम हिस्सा जम्मू कश्मीर जो कश्यप ऋषि के नाम पर कश्मीर पड़ा जहा उन्होंने कई वर्षो तक तपस्या की थी. कई वर्षो बाद आज वहा शांति है , उसी की झलक दिखाते हुए जम्मू कश्मीर अपनी झांकियों में मां वैष्णव देवी, वहा की बदलती हुई छवि को दर्शाता है।
हरियाणा
हरियाणा अपनी झांकी में खेलो को प्रमुख स्थान देता है और दे भी क्यों ना देश में खेलो को लेकर हरियाणा हमेशा से प्रथम स्थान हासिल करता है और हरियाणा की झांकी मे हमे ये साफ दिखाई देता है
कर्नाटक
कर्नाटक हस्तशिल्प के लिए पूरे देश मे मशहूर है और वो अपनी झांकी में इसकी झलक दिखलाता रहता है कर्नाटक की हस्तशिल्प कलाकारी विदेशों में भी काफी सुर्खियां बटोरती है.
गुजरात
गुजरात अपनी झांकियों में क्रांतिविरो वहा के पर्यटक स्थल नई-नई योजनाएं को दर्शाता है. गांधी जी के द्वारा किए गए प्रदर्शनों उनके साबरमती आश्रम और उनके स्वतंत्र से जुड़े कार्यों को दिखाता है.
महाराष्ट्र
गणतंत्र दिवस के दिन होने वाले प्रदर्शनी में महाराष्ट्र की झांकी हमेशा से अग्रणी रहा है। साल 1980 में शिवराज्याभिषेक की झांकी महाराष्ट्र राज्य की ओर से प्रस्तुत की गई थी और इस झांकी ने पहला स्थान प्राप्त किया था। उसके बाद झांकियों की प्रदर्शनी में साल 1993, 94 और 95 में लगातार 3 वर्षों तक महाराष्ट्र ने पहला स्थान हासिल किया था.
झांकी, परेड और जुलूस भारत के राष्ट्रीय टेलीविजन पर प्रसारित होता है और देश के हर कोने में करोड़ों दर्शकों के द्वारा देखा जाता है. 2014 में, पहली बार भारत के 72वें गणतंत्र दिवस के मौके पर महाराष्ट्र सरकार के प्रोटोकॉल विभाग ने मुंबई के मरीन ड्राईव पर परेड आयोजित की, जैसी हर वर्ष नई दिल्ली में राजपथ पर परेड होती है.
विदेशों से आते है मुख्य अतिथि
भारत में हर साल गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) पर मुख्य अतिथि को बुलाने की परंपरा रही है. गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि का विशेष रूप से आदर सत्कार होता है और विदेशी प्रतिनिधियों के लिए भी यह एक बड़े ही सम्मान की बात होती है. गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के चयन की प्रक्रिया करीब छह माह पहले से ही शुरू हो जाती है.
इस प्रक्रिया में किन देशों को आमंत्रित करना है, उन्हें निमंत्रण भेजना, उनके जवाब आने के बाद उनके ठहरने और विशेष रूप से मेहमान नवाजी देना, गणतंत्र दिवस का उन्हें विशेष गार्ड ऑफ ऑनर देना, विशेष भोज खिलाना, आदि कई प्रकार के कार्यक्रमों की तैयारी शामिल होती है.
लेकिन मुख्य अतिथि के तौर पर किस देश को आमंत्रित करना है इस पर भी काफी सोच विचार किया जाता है. आमंत्रण भेजने से पहले कई राजनीतिक पहलुओं पर विचार करना पड़ता है. इस मामले में सबसे पहले भारत और उस देश के संबंधों का ध्यान रखा जाता है जिसका प्रतिनिधि मंडल आमंत्रित किया जा रहा है. इस आमंत्रण से भारत और आमंत्रित देशों से दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए अहम कदम की तरह देखा जा सकता है.
निमंत्रित देशों के साथ संबंध
किसी देश के मुख्य अतिथि को आमंत्रित करने से पहले इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि, उस देश से भारत के ऐतिहासिक संबंध कैसे रहे हैं. जैसे मिस्र देश भारत के लिए अहम देश है क्योंकि 1950 और 1960 दशक में निरपेक्ष आंदोलन में भारत का एक प्रमुख साथी रहा है. इस आंदोलन का मकसद केवल औपनिवेशिक में रहे देशों को शीत युद्ध की चपेट में आने से बचाना था. 1950 के आंदोलन के सदस्य देश, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति को आमंत्रित किया गया था.
आमंत्रित देशों के भारत के साथ व्यवसायिक, राजनीतिक, सैन्य, आर्थिक अन्य हितों पर कैसा पसंबंध है और आगे कैसा होगा इसका भी खास ख्याल रखा जाता है. इसके साथ यह भी ध्यान रखा जाता है कि आमंत्रित अतिथि को बुलाने से भारत के किसी अन्य देश के साथ संबंध खराब तो नहीं होंगे. भारतीय विदेश मंत्रालय के लिए दो देशो के बीच संबंध मजबूत करने का यह एक बेहतरीन मौका होता है
First Published on: 26/01/2024 at 2:31 PM
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