आखिर क्यों है? भगवान राम की मूर्ति का रंग काला, जानिए इसके पीछे की वजह

Updated: 26/01/2024 at 3:57 PM
Why is it there? The color of Lord Ram's idol is black, know the reason behind it
Anjali Singh| THE FACE OF INDIA

Ram Mandir :
सोमवार 22 जनवरी के दिन प्रभु श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई. प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान 16 जनवरी से शुरू हो गया था।प्रभु श्री राम की जन्म भूमि अयोध्या राम नाम के धुन से जगमगा रही है।
अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति को देखकर करोड़ों लोगों की आंखें नम हो गईं. वहीं कई लोग खुशी से झूम उठे. और हो भी क्यों ना, आखिर 500 वर्षो का इंतजार खत्म जो हुआ. 22 जनवरी 2024 यानी कल के दिन प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम पूरे विधि विधान के साथ सम्मान हुआ, लेकिन जब से प्रभु राम की मूर्ती देखने को मिली है, तब से हर किसी की जुबान पर बस ‘जय श्री राम’ के नारे का ही जाप है।
श्री राम के बाल स्वरूप में मूर्ति का निर्माण किया गया है, जो की श्यामल रंग की है। ऐसे कई लोग असमंजस की इस्थिति मे है कि आखिर भगवान श्री राम की मूर्ति काले रंग की क्यों बनाई गयी है। इसलिए जानते हैं भगवान राम की मूर्ति के काले रंग का रहस्य.

भगवान राम की मूर्ति का रंग काला क्यों?

महर्षि वाल्मीकि रामायण में भगवान श्री राम जी के श्यामल रूप का वर्णन किया गया है। इसलिए प्रभु राम को श्यामल रूप में पूजा जाता है। वहीं, रामलला की मूर्ति का निर्माण श्याम शिला के पत्थर से किया गया है, जिसे कृष्ण शीला भी कहते है। श्याम शिला की आयु हजारों वर्ष की मानी जाती है। यही वजह है की भगवान राम की मूर्ति हजारों सालों तक अच्छी अवस्था में रहेगी और इसमें कोई भी बदलाव नहीं आएगा। वहीं, सनातन धर्म में पूजा पाठ के दौरान अभिषेक किया जाता है। ऐसे में भगवान की मूर्ति को जल, चंदन, रोली या दूध जैसी चीजों से नुकसान नहीं पहुंचेगा।

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आखिर बालस्वरूप में क्यों बनाई गई प्रतिमा?

हिंदु धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जन्म भूमि में बाल स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इसीलिए भगवान श्री राम की मूर्ति बाल स्वरूप में बनाई गयी है। मूर्ति को गर्भ गृह में पूजा अर्चना और मंत्रोच्चारण के बाद रखा गया।

प्राण प्रतिष्ठा क्यूं जरूरी है?

22 जनवरी को भगवान श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह सम्पन्न हुआ। 500 वर्षो के लंबे इंतजार के बाद रामलला को उनके घर मे स्थापित किया गया. इसी बीच प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम पूरे 11 दिन चला. प्राण प्रतिष्ठा प्रक्रिया का मतलब है भगवान की मूर्ति में प्राण डालना। बिना प्राण प्रतिष्ठा के मूर्ति पूजन संपूर्ण नहीं माना जाता. मूर्ति में प्राण डालने के लिए मंत्र उच्चारण के साथ-साथ देवों का आवाहन भी किया जाता है। इसलिए भगवान की जिस प्रतिमा को पूजा जाता है उसकी प्राण प्रतिष्ठा करना जरूरी होता है।
First Published on: 26/01/2024 at 3:57 PM
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