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Electoral Bonds Case: इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार.

Electoral Bonds Case: इस समय राजनिति में सबसे ज्यादा चर्चा किसी की हैं तो वह इलेक्टोरल बॉन्ड है. करीब 6 सालो के बाद इलेक्टोरल बॉन्ड का ‘सच’ अब जाके सबके सामने आया है. चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को मिले डोनेशन को सार्वजनिक करने के लिए देश की शीर्ष अदालत (Supream Court) को एक्शन लेना पड़ा. उसके साथ ही कोर्ट ने भारत के सबसे बड़े पब्लिक सेक्टर बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को भी कई बार फटकार लगाई.और आखिरकार 14 मार्च 2024 को पहली बार SBI द्वारा दिए गए डेटा को चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट पर शेयर किया. 

आखिर इलेक्टोरल बॉन्ड होता क्या हैं?

केंद्र सरकार ने साल 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की शुरुआत की थी. स्कीम के तहत कोई भी इंडिविजुअल शख्स या कंपनी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया(SBI) से कितने भी अमाउंट में इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकती थी.

कोई भी शख्स और कॉरपोरेट कंपनी चुनावी बॉन्ड के जरिए किसी भी राजनीतिक पार्टी को बिना पहचान बताएं अनलिमिटेड पैसा डोनेट कर सकती थी. इस स्कीम के तहत डोनर द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड्स को SBI से फिक्स्ड डिनोमिनेशन में खरीद कर किसी पॉलिटिकल पार्टी को दिया जा सकता था. फिर वह पार्टी इन ईलेक्टोरल बॉन्ड को कैश में बदल सकती थी. बॉन्ड की सबसे खास बात है कि बॉन्ड लेने वाली पॉलिटिकल पार्टी किसी भी शख्स को डोनर का नाम बताने की कोई जरूरत नहीं होती. यहां तक इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया को भी नहीं. 
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यूनिक कोड के आने से आखिर होगा क्या?

इलेक्टोरल बॉन्ड के यूनिक कोड के आने के बाद किस राजनीतिक पार्टी को किस कंपनी ने चंदा दिया है, यह पता चलेगा. इससे पार्टी और डोनर के बीच के संबंध का पता चलेगा और जानकारी भी मिलेगी कि सरकार ने कंपनियों को किसी तरह का फेवर किया हैं या नहीं. यूनिक कोड से यह भी पता चलेगा कि जांच एजेंसियों की रेड के बाद कंपनियों ने बॉन्ड खरीदे हैं या नहीं और क्या उनकी जांच का असर हुआ.

लेकिन आपको बता दें कि यूनिक कोड्स का पता चलने के बाद भी डेटा में बड़ा फर्क रहेगा. इस स्कीम के शुरू होने के बाद यानी मार्च 2018 से अप्रैल 2019 के बीच का डेटा उपलब्ध नहीं है.

 

Anjali Singh

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