Gmail Controversy in US Politics: रिपब्लिकन ईमेल्स पर भेदभाव का आरोप

Updated: 31/08/2025 at 6:30 PM
Gmail Controversy in US Politics
Gmail Controversy in US Politics : अमेरिका की राजनीति में टेक्नोलॉजी कंपनियों की भूमिका लंबे समय से बहस का विषय रही है। ताजा विवाद गूगल की ईमेल सेवा Gmail को लेकर खड़ा हुआ है। रिपब्लिकन पार्टी का आरोप है कि उनके चुनाव प्रचार से जुड़े ईमेल लगातार स्पैम फोल्डर में जा रहे हैं, जबकि डेमोक्रेट्स के ईमेल सामान्य रूप से इनबॉक्स में पहुंचते हैं। इस विवाद ने एक बार फिर टेक्नोलॉजी और राजनीति के आपसी रिश्तों पर गहन सवाल खड़े कर दिए हैं।

विवाद की शुरुआत कैसे हुई?

2022 के अमेरिकी मिडटर्म चुनावों से पहले ही रिपब्लिकन नेताओं ने गूगल पर पक्षपात का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि चुनावी कैंपेन के दौरान उनके समर्थकों को भेजे गए करोड़ों ईमेल Gmail के स्पैम फिल्टर में फंस जाते हैं। इससे उनकी पार्टी को प्रचार में भारी नुकसान उठाना पड़ा। हाल ही में फिर वही मुद्दा उठाया गया जब कई रिपब्लिकन सांसदों ने दावा किया कि गूगल के एल्गोरिद्म ने डेमोक्रेटिक पार्टी को फायदा पहुंचाया और रिपब्लिकन कैंपेन को नुकसान।

Gmail Controversy in US Politics गूगल का पक्ष

गूगल ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। कंपनी का कहना है कि Gmail का स्पैम फिल्टर पूरी तरह से यूज़र के व्यवहार, ईमेल पैटर्न और सुरक्षा मानकों पर आधारित होता है। किसी भी राजनीतिक दल के लिए इसमें कोई अलग नियम लागू नहीं होता। गूगल का यह भी तर्क है कि स्पैम फिल्टरिंग का उद्देश्य यूज़र्स को फ़िशिंग, स्कैम और अवांछित विज्ञापनों से बचाना है। कंपनी ने अमेरिकी चुनाव आयोग (FEC) के साथ भी पहले चर्चा की थी और कहा था कि वे राजनीतिक ईमेल्स के लिए एक पायलट प्रोग्राम चलाने को तैयार हैं, जिसमें यूज़र्स खुद तय कर सकेंगे कि वे किस दल के ईमेल प्राप्त करना चाहते हैं।


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Gmail Controversy in US Politics राजनीति में टेक्नोलॉजी की भूमिका

यह विवाद केवल गूगल तक सीमित नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में Facebook (Meta), Twitter (अब X) और अन्य सोशल मीडिया कंपनियों पर भी चुनावी परिणामों को प्रभावित करने के आरोप लगते रहे हैं। रिपब्लिकन पार्टी का मानना है कि बड़ी टेक कंपनियां लिबरल एजेंडा को बढ़ावा देती हैं और कंज़र्वेटिव आवाज़ों को दबाती हैं। 2016 और 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के दौरान भी यह आरोप अक्सर चर्चा में रहे। रिपब्लिकन नेताओं का कहना है कि अगर तकनीकी प्लेटफ़ॉर्म पर निष्पक्षता नहीं होगी तो चुनावी प्रक्रिया पर जनता का भरोसा कमजोर पड़ सकता है।

अमेरिकी समाज पर असर

यह विवाद अमेरिकी समाज में भी गहरी बहस छेड़ रहा है। आम यूज़र्स सवाल कर रहे हैं कि क्या सचमुच टेक्नोलॉजी कंपनियां राजनीतिक एजेंडा सेट कर सकती हैं? क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित एल्गोरिद्म पूरी तरह निष्पक्ष हो सकता है?

विशेषज्ञों का मानना है कि AI एल्गोरिद्म का प्रशिक्षण अक्सर डेटा पैटर्न पर आधारित होता है। अगर किसी राजनीतिक दल के ईमेल अधिक बार स्पैम जैसी विशेषताओं (जैसे repetitive words, promotional tone, bulk sending) में आते हैं, तो सिस्टम उन्हें स्पैम में डाल सकता है। लेकिन यह भी सच है कि टेक कंपनियों को अपने एल्गोरिद्म को पारदर्शी और जवाबदेह बनाना होगा, ताकि ऐसे विवाद न उठें।

Gmail Controversy in US Politics : चुनावी प्रभाव और भविष्य की चुनौतियाँ

रिपब्लिकन पार्टी ने इस मुद्दे को आगामी चुनावी कैंपेन का हिस्सा बना लिया है। उनका कहना है कि टेक कंपनियां अगर इस तरह पक्षपाती रवैया अपनाएंगी तो लोकतंत्र पर खतरा बढ़ जाएगा। वहीं डेमोक्रेट्स का तर्क है कि रिपब्लिकन केवल हार की वजह तकनीक पर थोप रहे हैं।

अमेरिकी चुनाव आयोग और संसद में भी इस मामले पर सुनवाई की मांग उठी है। संभावना है कि आने वाले समय में टेक रेगुलेशन और AI एल्गोरिद्म पारदर्शिता पर और सख्त कानून बनाए जाएं।

Gmail Controversy in US Politics ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि टेक्नोलॉजी और राजनीति अब गहराई से जुड़ चुके हैं। रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के बीच यह आरोप-प्रत्यारोप सिर्फ ईमेल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे अमेरिकी चुनावी सिस्टम पर विश्वास और पारदर्शिता की बहस को जन्म देता है।

भविष्य में चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में आए, टेक कंपनियों के लिए यह जरूरी होगा कि वे अपने सिस्टम को ज्यादा पारदर्शी, जवाबदेह और यूज़र-फ्रेंडली बनाएं। तभी लोकतंत्र और टेक्नोलॉजी के बीच संतुलन कायम रह पाएगा।

First Published on: 31/08/2025 at 6:30 PM
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