होलिका दहन : भारत में प्रत्येक पर्व का एक लौकिक रूप है। लेकिन उसका एक अलौकिक पक्ष है जो मॉडर्न शिक्षा से ग्रस्त बुद्धि बीमारों को समझ से परे है।
सांख्य दर्शन के अनुसार प्रत्येक जीव प्रकृति और पुरुष, या फिर जड़तत्व और परम चेतना से निर्मित है। मनुष्य उन जीवों में श्रेष्ठ इसलिए नहीं है कि वह मनुष्य है। क्योंकि मनुष्य में असुरत्व भी विद्यमान है और देवत्व भी। यह मनुष्य के ऊपर है कि वह किस तत्व को अपने अंदर निखारता है।
असुर तत्व है काम क्रोध लोभ मोह: मद मत्सर। जिससे पूरी मानवता ग्रस्त है। मनुष्य श्रेष्ठ इसलिए है क्योंकि साधना पथ पर अग्रसर होकर न सिर्फ देवत्व को प्राप्त कर सकता है, वरन परम चेतना का अनुभव भी कर सकता है। स्वयं भगवान, परमात्मा बन सकता है और उद्घोष कर सकता है कि अहम ब्रह्म अस्मि।
होलिका प्रतीक है जड़ तत्व का, प्रकृति का, असुरता का। और प्रह्लाद प्रतीक है परम चेतना का।
असुरता जड़ता प्रकृति जब मनुष्य के जीवन से जल जाए तभी प्रह्लाद नामक परम चेतना का उद्भव संभव है। जिसमें ऊंच नीच, अपने पराए का भाव समाप्त हो जाता है। इसीलिए दूसरे दिन रंग का उत्सव मनाया जाता है, जिसमें सभी को एक ही रंग से सराबोर करके सामजिक समरसता का भाव अविरल ढंग से बहाया जाता है।
हैप्पी होली*