हिन्दू धर्म एक ऐसा धर्म है जिसमें वर्षभर विभिन्न त्योहारों का सिलसिला चलता ही रहता है। हर त्योहार की अपनी-अपनी महत्ता व विशेषता होती है। त्योहार कोई-सा हो उसको मनाने के पीछे कोई न कोई आधार होता है। पौराणिक, ऐतिहासिक आदि का आधार। त्योहार लोकसंस्कृति के द्योतक होते हैंं।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह जिस समाज में रहता है उसमें जो परंपराएं चली आ रही हैं उन्हीं का अनुसरण करता आ रहा है। त्योहार जहां मनुष्य के अंदर उल्लास भरते हैं वहीं आपसी प्यार-प्रेम व भाईचारा बनाए रखने को भी प्रेरित करते हैं।
ऐसा ही त्योहार है रक्षाबंधन। जो कि इस साल 19 अगस्त को मनाया जाएगा। जैसाकि, त्योहार के नाम से ही अर्थ स्पष्ट हो जाता है। रक्षा का बंधन। जो बंधन रक्षा के लिए बांधा जाता है। एक साधारण-सा सूती धागा (सूत्र)। लेकिन उसकी अहमियत बयां नहीं की जा सकती। रक्षासूत्र अक्सर मांगलिक कार्यों यज्ञ, कथा, पाठ-पूजा पर ब्राह्मण द्वारा यजमान की कलाई पर बांधा जाता है। जिसे कलावा या मौली भी कहा जाता है। दो-तीन रंगों में रंगा होता है यह धागा। कई लोग मन्नत मांगते वक्त मंदिर के आसपास खड़े वृक्ष पर भी रक्षासूत्र बांधते हैं। कहीं पेड़ों को बचाने के लिए उन पर रक्षासूत्र बांधा जाता है। इस दिन बहिन अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती है, और भाई के दीर्घायु एवं सुखी होने की कामना करती है। भाई अपनी बहिन की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहता है। बहन को अपनी सामर्थ्यानुसार कुछ न कुछ उपहार दिया जाता है। भाई-बहिन के इस पवित्र रिश्ते की गरिमा बनाए रखने में यह रक्षासूत्र अपनी अहम भूमिका निभाता है। उत्तराखंड में जो कुल पुरोहित होते थे जहां उनकी वृत्ति होती थी वहां जाकर अपने यजमानों को इस त्योहार पर रक्षासूत्र बांधते थे। उन्हें आशीर्वाद देकर उनकी सुख-समृद्धि की कामना करते थे। यजमानों द्वारा उन्हें दक्षिणा दी जाती थी। बदलते समय के साथ त्योहार मनाने के तौर-तरीकों में भी काफी बदलाव आता जा रहा है।. लेकिन भाई-बहिन के प्यार-प्रेम का बंधन इस धागे की तरह हमेशा मजबूत रहेगा।
-ओम प्रकाश उनियाल