भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाये रखने में धर्मांतरण पर रोक जरूरी

धर्मांतरण|धर्मांतरण

जुलाई 12, 2021 - 13:11
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भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाये रखने में धर्मांतरण पर रोक जरूरी
धर्मांतरण पर रोक जरूरी
भले ही भारत एक धर्म निरपेक्ष देश के रूप में जाना जाता है। लेकिन आज देश में धार्मिक कट्टरता इस निरपेक्षता को बनाये रखने में काफी साबित नही हो रहा है। और इसके लिए धर्मांतरण प्रमुख अस्त्र है। देश में धर्म के नाम पर बटवारा चाहे स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय हुआ, परन्तु कहते हैं कि विभाजन का बीज उसी दिन बोया गया जब किसी पहले भारतीय ने धर्मपरिवर्तन किया। चाहे इस्लाम का भारत में प्रादुर्भाव काफी समय पहले हो चुका था परन्तु जिहादी कासिम के सिन्ध पर हमले के बाद इस्लाम और हमारे बीच लगभग हमलावर व संघर्षशील समाज का ही रिश्ता रहा। आक्रान्ता पहले लूटपाट के लिए आते और चले जाते थे परन्तु बाद में इन्होंने देश पर शासन शुरू कर दिया। भारत पर इस्लाम के प्रतिनिधि बन कर शासन करना आसान नहीं था तो हमलावरों ने कहीं तलवार तो कहीं अन्य साधनों से हमें दीन पढ़ाना शुरू कर दिया। धर्मांतरण का दुष्चक्र इतनी तेज गति से चला कि इस्लाम धर्मावलम्बियों की अच्छी खासी हो गई जो बाद में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित अनेक इलाकों के विभाजन के रूप में सामने आई। इस्लाम इस द्विराष्ट्र का सिद्धान्त अपने साथ लाया क्योंकि हमलावर अपने को स्थानीय संस्कृति से श्रेष्ठ मान कर चलते थे। लम्बे शासन के बाद इनके मन में यह भावना घर कर गई कि वे हिन्दुओं पर शासन करने के लिए पैदा हुए हैं परन्तु, विभिन्न महापुरुषों व शूरवीरों द्वारा लड़े गए स्वतन्त्रता संग्राम ने इस्लाम की श्रेष्ठता को मजबूत चुनौती दी। अंग्रेजो के आने के बाद भारत पर इस्लामी शासन का एकाधिकार स्वत: समाप्त हो गया। अंग्रेजो के भारत छोडऩे की पैदा हुई सम्भावनाओं के बीच देश के इस्लामिक समाज में आशंका पैदा हो गई कि वे हिन्दू बहुसंख्यक देश पर दोबारा शासन नहीं कर पाएंगे और इसीके चलते मुस्लिम नेताओं ने द्विराष्ट्र के सिद्धान्त को मजबूती के साथ सामने रखा। भारतीय इतिहास में मोहम्मद अली जिन्ना को मुख्य रूप से इस अलगाववादी सिद्धांत का पुरोधा माना जाता है। उन्होंने कहा था-हिन्दू मुस्लिम एक नहीं बल्कि दो राष्ट्र हैं। द्विराष्ट्र सिद्धान्त भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों के हिन्दुओं से अलग पहचान का सिद्धान्त है, जिसकी बेल को धर्मांतरण के विष से पाला-पोसा गया है। 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के दस साल बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के मुख्य संस्थापक सय्यद अहमद खान ने हिन्दी-उर्दू विवाद के कारण 1867 में इस सिद्धान्त को पेश किया। इस सिद्धान्त के अनुसार न केवल भारत की सांझीवालता पर कुठाराघात किया गया बल्कि हिन्दुओं-मुसलमानों को दो विभिन्न राष्ट्र करार दिया गया। ‘सारे जहां से अच्छा’ गाने वाले मुहम्मद इकबाल ने व्यावहारिक राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया तो यह राजनीतिक विचारधारा खुलकर सामने आई। 1930 में इलाहाबाद में ऑल इण्डिया मुस्लिम लीग की बैठक की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने न केवल द्विराष्ट्र सिद्धान्त खुलकर समझाया बल्कि इसी आधार पर भारत में एक मुस्लिम राज्य की स्थापना की भविष्यवाणी भी की। आज कश्मीरी सिख बच्चियों सहित देश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे लव जिहाद, धर्मांतरण की घटनाओं ने देश की चिन्ता बढ़ा दी है। चाहे उदारवादी इन घटनाओं पर आँखें मूंद कर खतरा टालने वाली नीति पर चल कर इन्हें धर्म की स्वतन्त्रता के दायरे में समेटने का प्रयास कर रहे हैं, परन्तु ऐसा करके वे ऐतिहासिक गलती दोहराने का मार्ग प्रशस्त रहे हैं। हम संविधान में प्रदत्त धर्म की स्वतन्त्रता के प्रबल पक्षधर हैं। धर्मांतरण पर रोक जरूरी हमारा यह गुण केवल संविधान के दायरे तक सीमित नहीं बल्कि सदियों से चले आ रहे ‘एकमसद् विप्र: बहुदा वदन्ति’ के सिद्धान्त से विकसित हुआ है, परन्तु स्वेच्छा से किसी धर्म को स्वीकार करने व षड्यन्त्रपूर्ण धर्मांतरण में अन्तर तो करना पड़ेगा। उदारवादी पूछते हैं कि धर्म बदलने से आखिर क्या फर्क पड़ता है ? तो उनसे प्रतिप्रश्न पूछा जा सकता है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश के रूप में वे ही इलाके हमसे अलग क्यों हुए जहां कभी इतिहास में जबरदस्त तरीके से इस्लामिक धर्मांतरण हुआ ? आज भी जिन इलाकों में एक धर्मविशेष को मानने वालों की संख्या बढ़ जाती है तो वहां हिन्दू-सिख समाज का रहना मुश्किल क्यों हो जाता है ? बहुसंख्यक होने पर एक समाज शरीयत कानूनों की बात क्यों करने लगता है ? धृतराष्ट्र की पत्नी गन्धारी का जन्मस्थान कन्धार, बुद्ध धर्म के केन्द्र के रूप में दुनिया को शान्ति व अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाला काबुल आज अशान्त व भारत से अलग क्यों है ? गुरु नानक देव जी का तीर्थ ननकाना साहिब, भगवान श्रीराम के पुत्र लव की नगरी लाहौर, सन्त झूलेलाल की धरती सिन्ध को अलग किसने किया ? उत्तर है कि यहां समय-समय पर हुए धर्मांतरण ने। धर्मांतरण पर रोक जरूरी असल में इस्लाम में राष्ट्रवाद के लिए कोई स्थान नहीं और मजहब को हर चीज से ऊपर रखा जाता है। इस्लाम व ईसाईयत के आस्था केन्द्र विदेशों में होने के कारण धर्मांतरित लोगों की आस्था के साथ-साथ निष्ठा के केन्द्र भी बदल जाते हैं। इसीलिए धर्मांतरण को राष्ट्रांतरण भी कहा गया है। स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि -एक हिन्दू धर्मांतरित होने से केवल एक हिन्दू कम नहीं होता बल्कि हिन्दू धर्म का एक दुश्मन पैदा होता है। जैसे पाकिस्तान के जनक जिन्ना भी हिन्दू ही पैदा हुए थे, परन्तु धर्मांतरण के बाद वह हिन्दुओं के सबसे बड़़े दुश्मन साबित हुए। यूपी पुलिस द्वारा गाजियाबाद में गिरफ्तार धर्मांतरण गैंग का मुख्य आरोपी मोहम्मद उमर गौतम भी जन्म से हिन्दू था और नाम था श्याम प्रसाद सिंह गौतम, परन्तु धर्म बदलने के बाद वह इतना कट्टर हो गया कि उसने हिन्दुओं का धर्मांतरण शुरू कर दिया। धर्मांतरण के बाद मूल धर्म के प्रति पैदा हुई यही घृणा समय पडऩे के बाद देश के प्रति नफरत में तबदील होती है और आगे जा कर देश विभाजन का कारण बनती है। आज समय की जरूरत है कि अपने समाज को इतना उर्वर बनाया जाए कि भविष्य में कोई नफरत का बीजारोपण न कर पाए। हमें अपने बच्चों को सम्भालना है ताकि वे भविष्य के जिन्ना व उमर गौतम न बन जाएं। जिस तरह देश में लव जिहाद, धर्मांतरण जैसे मामले देखने को मिल रहे है। जो कही न कही आने वाले भविष्य के लिए चिंताजनक है। सरकार को इस तरह के कार्य करने वालों पर सख्ती से कानून बनाकर कार्यवाही करना जरूरी है।

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