दृश्य एक शादी समारोह का है। बारात आ गई है । चारों ओर चकाचक रोशनी , बैंड – बाजों की आवाज़ , सजे – धजे लोग और खूबसूरत रोशनियों और फूलों से सजा जयमाल का स्टेज। स्टेज पर वर साहब का आगमन हो चुका है और प्रतीक्षा हो रही है दुल्हन की। सभी जन साँस रोक कर उत्सुकता से दरवाज़े की ओर टकटकी लगाए खड़े हैं। मन मे दुल्हन की कोमल कल्पना अपने चरम पर पहुँच रही है ।लोग भावुक भी हो रहे हैं बच्ची की विदाई को लेकर कि अचानक गाने की धुन बदल गई और फड़कती सी स्वर लहरियाँ पूरे पंडाल में गूँज उठी – मैं चली मैं चली देखो प्यार की गली कोई रोके न मुझे मैं चली मैं चली ” और इस गाने की धुन पर दुल्हन बिना शरमाये ठुमकती हुई नृत्य करती हुई प्रकट हो गई। पूरा परिदृश्य बदल गया। अब तक जो भावुकता में बहे जा रहे थे , सारी भावुकता भूल तमाशा देखने की मुद्रा में सीधे हो गए। अब तक जो एक पारिवारिक समारोह था अब स्टेज शो में बदल गया। यकीन मानिए अब ऐसी ही शादी का चलन शुरू हो गया है जिसमें भावनाओं से ज्यादा शो ऑफ पर ध्यान दिया जाता है। एक समय था जब शादी – ब्याह एक पारिवारिक समारोह होता था अब तो यह इवेंट हो गया है, जिसका भावनाओं से कोई सम्बन्ध नहीं है सिर्फ चिंता यह होती है कि यह इवेंट सक्सेसफुल हो जाय। हम सभी के मन में दुल्हन की परिकल्पना है शर्माती , मुस्कराती शालीनता भरी चाल में सखियों या बहनों के संग जयमाला के लिए प्रवेश करना । दुल्हन को दुल्हन के लिबास में देखना ही अच्छा लगता है। कुछ लोग इसकी हिमायत यह कहकर कर सकते हैं कि दुल्हन को भी अपनी खुशी जाहिर करने का अधिकार है तो वो क्यों नहीं नाच सकती दूल्हे की तरह ? इस ख्याल के हिमायती ये भी कह सकते हैं कि इसमें बुरा क्या है ! लेकिन यह जान लें कि हर बात की एक मर्यादा होती है और वो मर्यादा में ही रहे तभी शोभित होती है, , अन्यथा धीरे – धीरे हमारी भारतीय संस्कृति इन्हीं सो कॉल्ड मॉडर्न लोगों के कारण समाप्ति की कगार पर आ जायेगा ।
पूनम…✍️
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