
ek-saman-siksha-vyavstha एक समान शिक्षा व्यवस्था
ek-saman-siksha-vyavstha हमारे देश में भाषा,वेश -भूषा, संस्कृति, से लेकर धर्म में अनेक विभिन्नताएं पाई जाती हैं। सब में अलग अलग सोच विचार का अंतर भी मिलता है।फिर भी हमारा देश अनेकों में एक है। लेकिन कुछ क्षेत्रों में ऐसे अंतर हैं जिनपर शायद हमें ध्यान देने की जरूरत है,जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य।
मुझे लगता है हमारे देश में शिक्षा और स्वास्थ्य की जरूरत को अमीर और गरीब के बीच बांट दिया गया है।जैसे गरीबों के लिए सरकारी अस्पताल और अमीरों के लिए प्राइवेट।वैसे ही गरीब घर के बच्चों के लिए सरकारी स्कूल और अमीर घर के बच्चों के लिए प्राइवेट।सरकारी अस्पताल में सैकड़ों मरीज पर एक डॉक्टर, मरीजों की भीड़ लगी रहती है। सुविधाएं उपलब्ध तो है लेकिन पर्याप्त मात्रा में नहीं। वहीं प्राइवेट अस्पताल जहां सुविधाएं तो बहुत हैं लेकिन गरीबों के लिए जगह नहीं। वैसे ही शिक्षा की व्यवस्था, गरीब परिवार के बच्चों के लिए सरकारी स्कूल और अमीर परिवार के बच्चों के लिए प्राइवेट स्कूल। प्राइवेट जहां बच्चों को कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं,जिसके के लिए मनमाफिक फीस भी लेते हैं।सरकारी स्कूल जहां बच्चों की संख्या के अनुसार सुविधाओं की कमी है।लेकिन प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। चुकी मैं शिक्षिका हूं तो शिक्षा व्यवस्था की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगी।
ek-saman-siksha-vyavstha हमारे देश में भाषा,वेश -भूषा,
मेरा विचार है कि बच्चे तो मासूम होते हैं,बचपन से ही उनके साथ ऐसा भेद भाव क्यूं?कुछ बच्चे सरकारी स्कूल में तो कुछ प्राइवेट में।कुछ की शिक्षा अंग्रेजी मीडियम में तो कुछ की हिंदी । क्या एक देश में एक शिक्षा व्यवस्था नहीं हो सकती। शिक्षा और स्वास्थ्य ये दोनों अनिवार्य है इनमें अमीर ,गरीब का फर्क होना क्या जरूरी है? एक देश में क्या सब बच्चे एक साथ ,एक जैसे स्कूल में ,एक ही सिलेबस हो ,नहीं शिक्षा ग्रहण कर सकते? जिससे बच्चों के कोमल मन में कोई भेद भाव पैदा ना हो। सरकारी स्कूलों में व्यवस्था में जरूर थोड़ी कमी है लेकिन वहां के बच्चों और शिक्षकों के प्रतिभा में नहीं।सरकारी नौकरी के लिए सरकार एग्जाम लेती जहां से कोहिनूर को ही चुनने का प्रयास रहता है।तो फिर ये हीरे बाद में मामूली पत्थर क्यूं समझे जाने लगते हैं?शायद उनकी पहचान सही से नहीं हो पाती। हर बच्चे में टैलेंट होता है चाहे वो अमीर का हो या गरीब का,चाहे किसी भी धर्म या जाति का।क्या हम सभी बच्चों को एक समान प्लेटफॉर्म नहीं प्रदान कर सकते! क्या सभी बच्चों को एक समान शिक्षा व्यवस्था नहीं प्रदान कि जा सकती?ऐसा हो तो शायद इससे सभी बच्चों को उनकी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का समान अवसर मिल सकता है।शिक्षा जो अब व्यवसाय बनता जा रहा है उसमें भी शायद कमी आ जाए।
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अगर हम चाहे तो कर सकते हैं,शायद थोड़ी मुश्किलें हों लेकिन असंभव नहीं है।ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं हो सकता है कई लोग असहमत भी हों। लेकिन मैं फिर भी आग्रह करती हूं कि एक बार एक समान शिक्षा व्यवस्था पर विचार किया जाना चाहिए।जिससे सभी बच्चों को एक समान शिक्षा के अवसर मिल सके।

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