
Saman nagrik sanhita aur bharat समान नागरिक संहिता और भारत की पंथनिरपेक्षता
Saman nagrik sanhita aur bharat भारत एक ऐसा देश है जहां पर सभी को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। और देश पंथनिरपेक्ष कहा जाता है लेकिन राजनीतिक स्वार्थपरता वश कुछ लोग धर्म को आगे रखकर कानून की बातों का विरोध करने में संकोच नही करते है। जब भारत के कानून में समानता की भी बात कही गई है लेकिन फिर भी देश मे जगह जगह असमानता की बात देखने को मिलती है। और यदि इसी तरह लोग अपने हिसाब से समानता को कमजोर करने में लगे रहेंगे तो आखिर देश कैसे मजबूत हो पायेगा। देश में मतदान करने का अधिकार सभी को है, शिक्षा ग्रहण करने का समान अधिकार सब को है। लेकिन कुछेक मामलों में देश में धर्म के नाम पर असमानता है। जैसे देश में हिन्दू कोर्ट बिल में बने नियम को हिन्दू के अलावा बौद्ध जैन और सिक्ख धर्म के लोग मानते है लेकिन मुस्लिम और ईसाई नही क्योकि इन दोनो धर्म के लोगों का अलग धार्मिक लाॅ है। एक देश में अलग अलग धार्मिक बिल कही न कही भारत में भेदभाव और असमानता को बढावा देता है। Saman nagrik sanhita aur bharat
जब से राममंदिर के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है।तभी से ही लोगों के मन में सवाल है कि क्या सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता को लेकर भी कोई कदम उठाया जा सकता है। भारत में समान नागरिकता कानून लाए जाने को लेकर बहस भी लगातार चल रही है। इसकी वकालत करने वाले लोगों का कहना है कि देश में सभी नागरिकों के लिए एक जैसा नागरिक कानून होना चाहिए, फिर चाहे वो किसी भी धर्म से क्यों न हो। भारत का एकमात्र राज्य गोवा है जहां पर 1961 से समान नागरिक संहिता लागू है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाने पर देश में हर नागरिक के लिए एक समान कानून का होगा, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से ताल्लुक क्यों न रखता हो। फिलहाल देश में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर धर्म के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा।
गौरतलब है कि कि आजादी के बाद जब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पहले कानून मंत्री बीआर आंबेडकर ने समान नागरिक संहिता लागू करने की बात की, उस वक्त उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा। नेहरू को भारी विरोध के चलते हिंदू कोड बिल तक ही सीमित रहना पड़ा था और संसद में वह केवल हिंदू कोड बिल को ही लागू करवा सके, जो सिखों, जैनियों और बौद्धों पर लागू होता है। डा भीमराव अंबेडकर भी समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे, लेकिन जब उनकी सरकार यह काम न कर सकी तो उन्होंने पद छोड़ दिया था। बहरहाल, ये वो मुद्दे हैं जो आरएसएस और जनसंघ के संकल्प में रहे तो बीजेपी के मेनिफेस्टों में ही बरसों तक बने रहे। गठबंधन सरकारों के दौर में बीजेपी ने हमेशा इन मुद्दे से खुद को दूर रखा। लेकिन अब केंद्र में मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार है जिससे अपने घोषणापत्र में किये गये वादों को लागू करने में अधिक दिक्कत नही होती है।

हालांकि समान नागरिक संहिता लागू होने में कुछ समस्या भी दिख रही है। जिसमें सबसे बडी समस्या है धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले विरोध करेंगे। इसके अलावा देश में आज भी विभिन्न समुदायों में धर्म सम्पत्ति और शादी विवाह के अलग अलग स्थानीय नियम है। जिसे पूरे देश में एक साथ समाप्त करके समान नागरिक संहिता लागू किया जा सके। हालांकि इसके विरोध में मुस्लिम व ईसाई धर्म के मानने वाले लोग माने जा रहे है क्योकि यह लागू हो जाने पर उनका परसनल लाॅ बोर्ड बेकार हो जायेगा। दूसरी बात है कि आज भी पुरूष प्रधानता है इसलिए पुरूष प्रधानता के पक्षधर भी इसे लागू कराने में असहमत होंगे।
वैसे इस संहिता के लागू हो जाने से देश में समानता और एकता को बढावा मिलेगा। महिलाओ की स्थिति में सुधार होगा। और सबसे बडी राहत देश के न्यायालय में होगी जहां पर मुकदमों की संख्या में भारी गिरावट होगी। क्योकि बहुत मामले है जो परिवार, सम्पत्ति और धर्म से जुडे है। और इस संहिता के लागू होने पर इस तरह के मुकदमे एक समाप्त हो जायेंगे। भारत की पंथनिरपेक्षता में भारी मजबूती मिलेगी जो पूरे विश्व के लिए एक मिशाल साबित हो सकता है। लेकिन किसी कानून को लागू हो जाने पर उसका पालन कराना भी बडी समस्या है। क्योकि भारत में केवल आईपीसी और सीआरपीसी की धारा का पालन पूर्ण रूप से पुरे देश में समान रूप से होता है। वही मोटर व्हीकल नियम में हर राज्य में अलग अलग स्थिति है। जो कही न कही नियम के पालन की स्थिति के बारे में बताने मे काफी है।
भारत में कोई भी कानून लागू करने में काफी मशक्कत करनी पडती है। कुछेक मामलों में तो नेताओं को वोटबैंक ही आडे आ जाता है। सरकारों को जबकि भारत जैसे पंथनिरपेक्ष देश में समान नागरिक संहिता तो बेहद जरूरी है। विश्व के कई देश है जहां समान नागरिक संहिता लागू है। उन देशो में अमेरिका, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, जर्मनी और उज्बेकिस्तान जैसे कई देश शामिल है। वैसे इस मामले में सरकार ने लोगो की राय भी मांगी है कि समान नागरिक संहिता लागू करना सही है या नही। वैसे इसे लेकर राजनीति में होती रहती है। लोग अपने अपने हिसाब से इस पर राजनीति करते है। लेकिन जब एक देश है तो सभी के लिए एक कानून में क्या दिक्कत हो सकती है? हालांकि देश के नागरिको को उस बात का अवश्य समर्थन करना चाहिए जो देशहित में हो। जिससे भारत की एकता की मिशाल एक बार पूरे विश्व के नजरों में देखा जाये।
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