गांधीवादी आर्थिक व्यवस्था में समाज

गांधी के आर्थिक विचार अहिंसात्मक मानवीय समाज की अवधारणा से ओत-प्रोत हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था के समय में गांधी के विचारों का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। गांधी को वैश्विक समाज की समझ इसलिए थी, कि गांधी इंग्लैंड में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी और दक्षिण अफ्रीका में राजनैतिक संघर्ष के दिशा प्राप्त की थी ।भारत के स्वतंत्रता की अगुवाई और आत्मनिर्भर होने के लिए आत्मबल को बढ़ावा दिया ।गांधीवादी दर्शन यह बताता है कि ब्रिटिश उपनिवेशक के सार्वजनिक निर्माण की अपेक्षा के कारण हमारी खेती आधारित भारतीय कृषि व्यवस्था पर क्या दुष्प्रभाव पड़ा ।

गांधीवादी आर्थिक व्यवस्था गांधी का कहना है जब वस्तुगत परिस्थितियों को अधिक महत्व दिया जाता है। तब नैतिक व्यवहार के मूल्यों में कमी आती है। वैश्वीकरण की नीतियों को लेकर आज पूरा विश्व जिस प्रगति की कामना कर रहा है। वह एक भ्रम मात्र है । गांधी जी ने गाँवो को आत्मनिर्भर व ग्रामीण कुटीर उद्योगों पर अधिक बल देते थे।वर्तमान में वैश्वीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लगता है ,की आर्थिक विचार से संबंधित गांधी जी की प्रासंगिकता कम महत्त्व रखती हैं। परंतु उदारीकरण वैश्वीकरण के युग में गांधी जी के विचार की प्रसंगिकता अधिक बढ़ जाती है। वैश्वीकरण ने तृतीय विश्व के देशों को संसाधन पूर्ति का एक माध्यम बना लिया है ।इसलिए अपने अपने अनुभवों के आधार पर अनेक देश जैसे चिल्ली, ब्राजील ,सूडान देशों पर वैश्वीकरण का नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है ।वैश्वीकरण के दौर में बड़ी बड़ी मशीनीकरण और कई प्रकार की तकनीकी के प्रयोग से परंपरागत आजीविकाओ और श्रम संसाधनों पर गहरा संकट बना रहता है ।अपनी आजीविका स्वयं चलाने वाला किसान दिनों दिन मजदूर बनता जा रहा है। गांधी जी की कही बातों में एक सदी का अंतर दिखाई देता है ।परंतु उनके विचार आज भी जीवंत जान पाते हैं । 21वीं सदी आधुनिक युग का है ।यह सूचना तकनीकी प्रौद्योगिकी, सोशल मीडिया ,इंटरनेट का युग कहा जाता है ।यह सभी तकनीकी व्यक्ति के जीवन को इस प्रकार प्रभावित किया है ,कि इसके बिना जीवन अधूरा लगता है ।इस अधूरे जीवन में गांधी जी के विचार एक प्रकाश पुंज के रूप में मार्गदर्शन कर रहे हैं ।गांव और बाजार पर आधारित अर्थव्यवस्था के इस दौर में गांधी जी के विचार की प्रासंगिकता को बढ़ावा देता है।

प्रौद्योगिकी और तकनीकी युग में गूगल, फेसबुक, टि्वटर ,व्हाट्सएप आदि की बहुलता है। लेकिन इसके साथ ही वैश्वीकरण ,प्रौद्योगिकीकरण और वैश्विक तकनीकी ने हंसती खेलती मनुष्य के जीवन में वैश्विक वैमनस्यता को बहुत अधिक बढ़ा दिया है। यह कहना पूरी तरह ठीक नहीं है ,क्या इसने आधारभूत विकास के साथ असमानता तो नहीं ला दिया है ?जब हम इन प्रश्नों का जवाब खोजते हैं तो गांधी के विचारो का झलक दिखाई देते हैं ।आज के नव युवा उद्योगपति, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को आदर्श मानते हैं ।लेकिन जब बात मानवीय मूल्यों की आएगी तो गांधी के विचार ही सर्वाधिक होंगे ।गांधी पश्चिमी सभ्यता को अपने जीवन में आत्मसात करने के विरोधी थे ।क्योंकि तत्कालीन परिस्थितियां ही कुछ ऐसी थी ।कि पश्चिमी सभ्यता को पूरी तरह अपना नहीं सकते थे। इन विरोध का कारण सभ्यता ,तत्कालीन सामाजिक आर्थिक और व्यापारिक परिस्थितियों से संबंधित थे ।हमें आजादी तो 1947 में मिली लेकिन आर्थिक आजादी 1990 में मिली ।1990 के बाद से ही देश ने वैश्वीकरण का लक्ष्य बनाकर आगे चलने लगा। आर्थिक योजनाओं के साथ कई नए आयामों का आविर्भाव, आधुनिकवाद, उत्तरआधुनिकवाद, संरचनावाद विखंडनवाद ,उपभोक्तावाद आज जो अपने चरम सीमा पर पहुंच गई है ।गांधी अपने दर्शन में सादगी ,नैतिकता, स्वदेशी , स्थानीय प्रशासन व रामराज्य पर आधारित संरचना की कल्पना किए थे। आज पूरे विश्व में वैश्वीकरण का प्रभाव देखने को मिलता है। अपना राज्य उपनिवेशवाद , बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद ने ले लिया है। शायद इसी कारण गांधी जी के विचारों का मूल्य आज अत्यंत ही महत्वपूर्ण है ।यदि गांधीजी जी की बात मानी जाती तो नशे, शराब, तंबाकू आदि के आधार पर राष्ट्रीय उत्पादन व आय बढ़ाने की सोच से हम पूरी तरह बच सकते थे। इसी नैतिक सोच से जुड़ी हुई गांधी की सोच थी कि सबसे बड़ी प्राथमिकता है कि निर्धन वर्ग का दुख-दर्द दूर करना।

उन्होंने कहा कि यदि कभी अनिश्चय की स्थिति उत्पन्न हो तो इस आधार पर निर्णय लिया जाए कि सबसे निर्धन व जरूरतमंद वर्ग के लिए क्या जरूरी है। यदि इस सिद्धांत को ही मान लिया जाए तो देश में दुख-दर्द को तेजी से कम किया जा सकता है। वैश्विक महामारी ने मानव जाति को अंदर से हिला कर रख दिया है ।जिसके चलते सामाजिक दूरियां बढ़ी है ऐसे में गांधी के विचारों के माध्यम से समाज को एक रूपता में बांधने का काम गाँधीवादी ही कर सकती है।आज उदारीकरण ,निजीकरण और वैश्वीकरण की व्यवस्था ने विश्व व्यापार के लिए द्वार खोल दिए परंतु,इस व्यवस्था ने गरीबी बेरोजगारी निर्भरता से संबंधित अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गई इनके निराकरण के लिए गांधीजी की प्रासंगिकता वैश्वीकरण के दौर में और बढ़ जाती है।

अजयप्रताप तिवारी

TFOI Web Team

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