घर-घर जाकर शौच को साफ करने वाली ऊषा चौमर ने कभी कल्पना नहीं की थी कि उन्हें पद्मश्री सम्मान मिलेगा। पद्मश्री मिलने के बाद भास्कर ने ऊषा चौमर से मैला ढोने के दिनों के बारे में पूछा तो झकझोर देने वाली कहानी सामने आई है।
ऊषा चौमर कहती हैं कि सालों तक मैला ढोया है, जिसके कारण अब वह कभी दाल नहीं खा पाती हैं। न उसके घर में दाल बनती है। दाल के रंग को देखकर मैले का दृश्य आंखों के सामने आ जाता है। उल्टी जैसा मन भी हो जाता है। यही नहीं मैला साफ करने के बाद घर आने पर भी चक्कर आना, जी मचलना आम बात थी। आए दिन बीमार भी हो जाते थे। फिर भी काम करना पड़ता था।
7 साल की उम्र से मैला ढोने वाली उषा चौमर की 10 साल की उम्र में ही शादी हो गई थी। करीब 18 साल पहले 2003 तक मैला साफ किया है, जिसके बदले एक घर से 10 रुपए महीने में मिलते थे। करीब 10 घरों की सफाई करने के बाद 100 रुपए महीने का इंतजाम होता था।
2003 के बाद सुलभ इंटरनेशनल संस्था के संपर्क में आने के बाद ऊषा का जीवन बदल गया। खुद को आत्मनिर्भर बनाने के बाद उषा ने मैला ढोने के काम में जुटी महिलाओं को नई राह दिखाई। उन्हें दूसरे कामकाज के लिए प्रेरित करने का जिम्मा उठाया।
ऊषा चौमर बताती हैं कि 2003 से पहले जिन घरों में मैला ढोने जाती थी। कभी कभार उनसे कुछ खाने-पीने की चीजें मिलती थीं। वे उनकी झोली में दूर से ही डालते थे। कोई पास आकर खड़ा नहीं होता था। टॉयलेट साफ करने का सामान देते थे तो दूर सीढ़ियों में ही रख देते थे। हम वहां से उठाकर लाते थे, लेकिन नजदीक नहीं आते थे। लोग उन्हें छूते नहीं थे, न ही दुकान से सामान खरीदने देते थे। मंदिर और घरों तक में घुसने की इजाजत नहीं थी।
मैला ढोने जैसी कुप्रथा के खिलाफ ऊषा चौमर ने न केवल अपनी आवाज भी उठाई, बल्कि दुनिया भर में घूम-घूमकर महिलाओं को प्रेरित भी किया।वे बताती हैं कि घरों का मैला उठाकर नालों में फेंका जाता था या फिर आसपास कहीं कचरे में, लेकिन 2003 के बाद उन्होंने महिलाओं को प्रेरित किया। मैला ढोने का काम छोड़कर आचार बनाने और सिलाई करने जैसे अनेक दूसरे कामों से जोड़ा। स्वयं सहायता समूह नई दिशा बनाकर कई महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान दिया। वे बताती हैं कि 2003 के बाद समाज में धीरे-धीरे बदलाव आया। मैला ढोना बिल्कुल बंद हाे गया।
सोमवार को दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में ऊषा चौमर काे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री से सम्मानित किया। सम्मान लेने के बाद भी ऊषा ने कहा कि जीवन में कभी सोचा नहीं था कि मैला ढोने वाली को पद्मश्री जितना बड़ा सम्मान मिल सकेगा। अब तो लगता है जीवन ही बदल गया। इसी कारण कई देशों की यात्रा कर चुकी हूं। सफाईगीरी का प्रधानमंत्री से अवॉर्ड ले चुकी हू |