Best Hindi Dharmik Stories : राधा ने क्यों दिया सुदामा को श्राप!

Best Hindi Dharmik Stories पौराणिक समय की मित्रता की बात आती है तो हर किसी को सुदामा की मित्रता याद आ जाती है । लोग सोचने लगते है कि श्री कृष्ण कैसे दयालु और समानता में विस्वास रखने वाले थे।जो एक दरिद्र ब्राह्मण से मिलने महल के द्वार पर नंगे पांव चले आये थे ।और फिर सुदामा की दरिद्रता दूर की थी। इस कथा से तो हम भली भांति परिचित हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं सुदामा के अपने पापों के कारण भगवान शिव ने का वध किया गया था।आज हम आपको यही बताने जा रहे है कि क्यों भगवान शिव ने सुदामा का वध किया था। स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार गो लोक में सुदामा और विराजा नाम की एक कन्या रहती थी।विराजा भगवान श्री कृष्ण से प्रेम करती थी।उधर सुदामा जो उस समय गु लोक में रहता था वो विराजा से प्रेम करने लगा ।एक दिन की बात है ।विराजा भगवान श्री कृष्ण मोहित होकर उनके पास चली गई ।उसी समय राधा भी वहाँ आ गई और राधा भगवान श्री कृष्ण और विराजा को एक साथ देख कर क्रोध उन्होंने विराजा को श्राप दे दिया कि वे गोलोक से पृथ्वी लोक में निवास करेगी इधर सुदामा ने भी राधा को श्राप दे दिया। राधा ने भी सुदामा को राक्षस योनि में पृथ्वी लोक में जन्म लेने का श्राप दे दिया। उसके बाद सभी अपने निवास को लौट गए। कुछ वर्ष बाद जब श्राप फलित होने का समय आया ।सब सुदामा ने दानव राज दंभ के घर पुत्र के रूप में जन्म लिया जिसका नाम शंख चूर्ण रखा गया। और बिराजा धर्म ध्वज के रूप के यहां तुलसी के रूप में उनका जन्म हुआ। जब शंख चूर्ण बढ़ा हुआ तब वह जेगीवेव मुनि के उपदेश से पुष्कर में जाकर ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के उद्देश्य से भक्ति पूर्ण तपस्या करने लगा फिर कुछ वर्ष पश्चात परम पिता ब्रह्मा उसकी तपस्या प्रसन्ना होकर प्रकट हुए। और शंख चूर्ण को मगने को कहा ब्रह्मा जी को अपने सामने देखकर उसने अत्यंत नम्रता से उनका अभिवादन किया और फिर ब्रह्मा से वर मांगते हुए कहा। भगवान मुझे ऐसा वर दीजिए जिससे मैं देवताओं के लिए अजय हो जाऊं तब ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर बोले तथास्तु ऐसा ही होगा फिर उन्होंने शंख चूर्ण को एक दिव्य श्री कृष्ण कवच प्रदान किया। जो सरवर्त विजय प्रदान करने वाला था।तदन्तर ब्रम्हा जी ने उन्हें आज्ञा दी की तुम बद्री वन को जाओ। उधर धर्म ध्वज की कन्या तुलसी सकाम भाव से तपस्या कर रही है तुम उसके साथ विवाह कर लो। इतना कह कर ब्रह्मा जी अंतर्ध्यान हो गए फिर शंख चूर्ण में वही मंगल रूप कवच को गले मे बांध लिया और ब्रह्मा जी के आज्ञा अनुसार तत्काल बद्रिका आश्रम चल पड़े कुछ देर चलने के पश्चात शंख चूर्ण सहरसा उस स्थान पर जा पहुंचा जहां धर्म ध्वज की पुत्री तुलसी तप कर रही थी। सुंदरी तुलसी का स्वरूप गमनिय रमणीय अत्यंत मनोहर था। वे उत्तम सील से संपन्न थी।उस सती को देखकर शंख चुर्ण उसके समीप ही ठहर गया और मधुर वाणी में बोला सुंदरी तुम कौन हो। किसकी पुत्री हो. तुम यहां चुपचाप बैठ कर क्या कर रही हो और यह सारा रहस्य मुझे बताओ शंख चूर्ण के या मधुर वचन सुनकर तुलसी ने कहा मैं धर्म ध्वज की तपस्विनी कन्या हो और यहां तपोवन में तप कर रही हूं।

सालिग्राम को तुलसी क्यों है प्रिय

आप कौन हैं सुख पूर्वक अपने अभीष्ट स्थान पर चले जाएगी क्योंकि नारी जाति ब्रह्मा आदि को भी मोह में डाल देने वाली होती है। तब शंख चूर्ण ने कहा सुंदरी क्या तुम मुझे नहीं जानती हो। अथवा तुमने कभी मेरा नाम नहीं सुना है। अरे देवताओं में भगदड़ डालने वाला शंखचूड़ में ही हूं पूर्व काल में श्रीहरि का पार्षद था। मेरा नाम सुदामा गोप था। इस समय में राधिका जी के श्राप से दानव शंख चूर्ण होकर उत्पन्न हुआ हूं। यह सारी बातें मुझे ज्ञात है। क्योंकि श्रीकृष्ण के प्रभाव से मुझे अपने पूर्व जन्म का स्मरण बना हुआ है। और परम पिता ब्रह्मा जी की आज्ञा से मैं यहां तुलसी विवाह करने आया हूं। जब दानव राज ने तुलसी से ऐसा सत्य वचन कहा तब परम प्रसन्न हुई और मुस्कुरा कर कहने लगी। भद्रपुर आज आपने सात्विक विचार से मुझे पराजित कर दिया है फिर तुलसी उसे वेदों रक्त उपदेश देने लगी फिर उसी समय ब्रह्मा जी वहां प्रकट हुए और कहने लगे शंख चूर्ण तुम इसके साथ व्यर्थ में वाद विवाद कर रहे हो तुम गंधर्व विवाह की विधि से इसका पानी ग्रहण करो क्योंकि निश्चय ही तुम पुरुष रत्न हो और तुलसी सती सावित्री नारियों में रतन स्वरूपा है। ऐसी दशा में निपुण का निपुण के साथ समागम गुणकारी ही होगा। ब्रह्माजी नेम तुलसी से कहा सती साध्वी तुलसी तुम ऐसे गुणवान प्रांत की क्या परीक्षा ले रही हो यह तो देवताओं असुरों तथा दानवो का मान मर्दन करने वाला है सुंदरी इसके साथ संपूर्ण लोकों में सर्वदा उत्तम स्थानों पर चिरकाल तक प्रतिष्ठ व्यवहार करोगी इतना ही नहीं शरीरांत होने पर ये पुन्हा गो लोगो मे ही श्री कृष्ण को प्राप्त होगा और इसकी मृतयु हो जाने पर तुम भी बैकुंठ में भगवान को चतुर्भुज प्राप्त करोगी । इतना कह कर ब्रह्मा अपने धाम को चले गए तब दानव शंखचू3ड़ ने गंधर्व विवाह की विधि से तुलसी का पानी ग्रहण किया। तत्पश्चात तुलसी के साथ विवाह करके वे अपने पिता के स्थान को चला गया और मनोरम भाव से साथ रमड़ी के साथ निर्वाह करने लगा।

भगवान शिव ने क्यों किया सुदामा की मृत्यु

फिर कुछ समय पश्चात देव गुरु शुक्राचार्य के आज्ञा अनुसार शंखचूड़ को दानवो का राजा बना दिया गया। जिसके बाद हम को चुने संत देवता पर आक्रमण कर दिया। ब्रह्मा जी से मिले वरदान के कारण कोई भी देवता उसके सामने रणभूमि छोड़कर भाग खड़े हुए फिर देवी भद्रकाली शंख चूर्ण से युद्ध के लिए रणभूमि में पधारी उसके बाद दोनों में भयंकर युद्ध हुआ फिर कुछ समय बाद युद्ध भूमि में आकाशवाणी हुई ।हे देवी तुम तुमको हो शंख चूर्ण को युद्ध में पराजित नहीं कर सकती। क्योंकि यह तुम्हारे लिए अवधय है। क्योंकि जब तक शंख चूर्ण के शरीर पर यह दिव्य कवच है और उसकी पत्नी तुलसी का सतीत्व अखंडित है। तब तक इसे रणभूमि में कोई नहीं हरा सकता। लहसुन देवी भद्रकाली भगवान शंकर के पास कैलाश पहुंची और आकाशवाणी की बातें बताई फिर शिवजी श्री विष्णु जी के पास पहुंचे और उन्हें शंखचूड़ का वध करने के लिए प्रेरित किया । फिर शिव की आज्ञा से विष्णु जी वहां से चल पड़े उन्होंने एक वृद्ध ब्राह्मण का वेश धारण किया और शंख चूर्ण के निकट जाकर बोले दानवीर इस समय मैं आपका याचक होकर आया हूं तुम मुझे भिक्षा दो ।यह सुन शंख चूर्ण ने कहा ब्राह्मण तुम्हें क्या चाहिए। तब ब्राह्मण रूपी विष्णु जी बोले।दानवेंद्र तुम मुझे पहले यह वचन दो जो मैं तुमसे मागूँगा तुम उसे मुझे देने के लिए स्वीकार करोगे यह सुन संखचूर्ण ने ओम के उच्चारण के साथ वचन स्वीकार कर लिया।तब भगवान विष्णु रूपी ब्राह्मण ने छल पूर्वक कहा मैं तुम्हारा कवच चाहता हूं यह सुन शंख चूर्ण ने वह दिव्य कवच जो उसे प्राणों समान प्रिय था वह उस ब्राह्मण को दे दिया इस प्रकार श्रीहरि में माया द्वारा उसे वह कवच ले लिया । और फिर शंख चूर्ण का रूप धारण करके वह देवी तुलसी के पास पहुंचे वहां पहुंच कर विष्णु जी तुलसी जी से बहुत सी बातें करने लगे। तदनंतर उनके साथ रमण किया किंतु कुछ समय रमण करने के बाद देवी तुलसी के मन में संदेह उत्पन्न होने पर वह शंख चूर्ण रूपी विष्णु जी से पूछने लगी तुम कौन हो दुष्ट मुझे शीघ्र बतला और माया द्वारा मेरा उपभोग करने वाला तू कौन है। तूने मेरा सतीत्व नष्ट कर दिया अतः मैं तुझे अभी श्राप देती हूं। उसके बाद तुलसी का वचन सुनकर श्री हरि अपने वास्तविक रूप में आ गए तब उस रूप को देखकर तुलसी ने लक्षणों से पहचान लिया यह साक्षात विष्णु है। परंतु उसका पतित व्रत नष्ट हो चुका था। इसलिए वाह कुपित होकर विष्णु जी से कहने लगी हे विष्णु तुम्हारा मन पत्थर की तरह कठोर है तुम्हें लेश मात्र भी दया नहीं है।

Best Hindi Dharmik Stories राधा के श्राप से कैसे सुदामा बन गए राक्षस

मेरे पतिव्रत नष्ट हो जाने से निश्चय ही मेरे स्वामी मारे गए क्योंकि तुम पाषाण की तरह कठोर और दया रहित दुष्ट हो। इसलिए तुम अब मेरे श्राप से पाषाण की तरह हो जाओ। इतना कह कर संख चूर्ण की सतीत्व सावित्री पत्नी तुलसी फुट फुट कर रोने लगी । शोकाकुल होकर विलाप करने लगी। इतने में वहां भगवान वत्सल भगवान शिव प्रकट हो गए और तुलसी को समझाते हुए कहा देवी अब तुम दुख को दूर करने वाली मेरी बात सुनो और श्री हरि विष्णु उसे स्वाथ मन से उसे श्रवण करे । क्यों कि तुम दोनों के लिए जो उचित होगा वही मैं कहूंगा बद्री तुम ने जीस मनोरथ से तप किया था। यह उसी तपस्या का फल मिला है अन्यथा कैसे हो सकता है इसीलिए तुम्हे उसके अनरूप ही फल प्राप्त हुआ है । अब तुम इस शरीर को त्याग कर दिव्य रूप धारण कर लो। और लक्ष्मी के समान होकर श्री हरि के साथ नित्य वैकुंठ विहार करो तुम्हारा यह शरीर जिसे तुम छोड़ दोगी वह नदी के रूप में परिवर्तित हो जाएगा। वह नदी भारत वर्ष में पुण्य रूपा गनकी के नाम से प्रसिद्ध होगी । महादेवी कुछ कान के पश्चात मेरे वर के प्रभाव से देव पूजन सामग्री में तुलसी का प्रधान स्थान हो जाएगा सुंदरी तुम स्वर्ग लोक में मृत्यु लोक में तथा पाताल लोक में सदा श्री हरि के निकट ही निवास करोगी। और पुष्पों में श्रेष्ठ तुलसी का वृक्ष हो जाओगी तुम वैकुंठ में दिव्य रूप धारणी वृक्षाधिहरास्ट्री देवी बन कर सदा एकांत में श्री हरि के साथ कृणा करोगी उधर भारतवर्ष में जो नदियों की अधिराज श्रीदेवी अदिदिराष्ट्रीय देवी होंगी । वह परम पुण्य प्रदान करने वाली होगी।

शंखचूड़ ने क्यों कि तुलसी से शादी

श्री हरि के अंश भूत लवण सागर की पत्नी बनेगी। तथा श्री हरि तुम्हारे श्राप वस पत्थर का रूप धारण कर के भारत मे गंडकी नदी के जल के निकट निवास करेंगे वहां तीखी दाड़ो वाले भयंकर कीड़े उस पत्थर को काट कर उसके मध्य में चक्र का आकार बनाएंगे उसके भेद से वह अत्यंत पुण्य प्रदान करने वाली शालिग्राम शिला कल कहलाएगी और चक्र के भेद से उसका लष्मीनारायन आदि भी नाम होगा । विष्णु की शालिग्राम शिला और वृक्ष स्वरूपनी तुलसी का समागम सदा अनुकूल तथा बहुत से प्रकार के पुण्य की वृद्धि करने वाला होगा। जो शालिग्राम शिला से तुलसी पत्र को दूर करेगा उसे जन्मांतर में स्त्री वियोग का दुख प्राप्त होगा।और जो शालिग्राम शिला तुलसी पत्र चढ़ाएगा उसे पत्नी का सुख प्राप्त होगा। तथा जो शंख को दूर करके तुलसी पत्र को हटाएगा वह भी भार्या हीन होगा और सात जन्म तक रोगी बनकर रहेगा।

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जो महा गायक ज्ञानी पुरुष शालिग्राम शिला संघ और तुलसी पत्र को एकत्र रख कर उनकी रक्षा करता है । वह श्री हरि को प्यारा होता है। इस प्रकार कह कर शंकर जी शालिग्राम शिला और तुलसी के परम पुण्य महात्म्य का वर्णन किया तत्पश्चात व श्री हरि को और तुलसी को आनंदित कर के अंतर्ध्यान हो गए। इस प्रकार सत पुरुषों का कल्याण करने वाले शंभू अपने स्थान को चले गए इधर शंभू का कथन सुनकर तुलसी को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने अपने उस शरीर का त्याग कर के दिव्य रूप धारण कर लिया। तब कमलापति विष्णु उसे साथ लेकर वैकुंठ को चले गए उनके छोड़े हुए शरीर से गंडकी नदी प्रकट हुई और भगवान भी उसके तट पर मनुष्यों को पूण्य प्रदान करने वाली शिला के रूप में परिणत हो गए उनमें जो शीलाय गंडकी के जल को आती है वह परम पूण्य प्रद होती है और जो स्थान पर ही रहती हैं उन्हें पिंगला कहा जाता है। आयुर्वेद प्राणियों के लिए संताप कारक होती है।

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TFOI Web Team