Updated: 26/06/2023 at 3:24 PM
पंडित आशीष कुमार तिवारी
हिन्दू धर्म शास्त्र के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से चातुर्मास प्रारम्भ होता है हिंदू धर्म शास्त्र में चातुर्मास का बहुत बड़ा महत्व है.
इस साल 29 जून 2023 दिन गुरुवार को देवशयनी एकादशी है। देवशयनी एकादशी से आने वाले चार महीनों तक सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। इस चार माह की अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। इस साल अधिक मास लगने के कारण चातुर्मास पांच माह तक चलेंगे। चातुर्मास की अवधि के दौरान किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। चार माह की योग निद्रा के बाद जब कार्तिक माह में देवोत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु जागकर पुनः इस लोक में वापस आते हैं और तुलसी जी के साथ उनका विवाह होता है, उसके बाद से सभी मांगलिक कार्य फिर से प्रारंभ हो जाते हैं। हिंदू धर्म शास्त्र में देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व माना गया है. धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन के बाद से भगवान विष्णु गहरी निद्रा में चले जाते है या अपने प्रिय भक्त राजा बलि से मिलने चले जाते हैं। और सृष्टि का संचालन भगवान महादेव करते है। चातुर्मास में जहां कई कार्य वर्जित होते हैं वहीं इस माह में किये गये कुछ कार्य शुभ फल भी देते हैं। चतुर्मास को आध्यात्मिक और दान-पुण्य के कार्यों के लिये अति उत्तम माना गया है।
चतुर्मास में विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गये हैं।
हिन्दू धर्म शास्त्र के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से चातुर्मास प्रारम्भ होता है हिंदू धर्म शास्त्र में चातुर्मास का बहुत बड़ा महत्व है.
चातुर्मास के चार मास क्रमसः
इस प्रकार हैं श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक। इसमें आषाढ़ मास के 15 दिन और कार्तिक मास के 15 दिन लिया गया है। चातुर्मास के प्रारंभ को देवशयनी एकादशी या हरिशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है और चातुर्मास के अंत को देव उठनी या देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है।इस साल 29 जून 2023 दिन गुरुवार को देवशयनी एकादशी है। देवशयनी एकादशी से आने वाले चार महीनों तक सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। इस चार माह की अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। इस साल अधिक मास लगने के कारण चातुर्मास पांच माह तक चलेंगे। चातुर्मास की अवधि के दौरान किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। चार माह की योग निद्रा के बाद जब कार्तिक माह में देवोत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु जागकर पुनः इस लोक में वापस आते हैं और तुलसी जी के साथ उनका विवाह होता है, उसके बाद से सभी मांगलिक कार्य फिर से प्रारंभ हो जाते हैं। हिंदू धर्म शास्त्र में देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व माना गया है. धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन के बाद से भगवान विष्णु गहरी निद्रा में चले जाते है या अपने प्रिय भक्त राजा बलि से मिलने चले जाते हैं। और सृष्टि का संचालन भगवान महादेव करते है। चातुर्मास में जहां कई कार्य वर्जित होते हैं वहीं इस माह में किये गये कुछ कार्य शुभ फल भी देते हैं। चतुर्मास को आध्यात्मिक और दान-पुण्य के कार्यों के लिये अति उत्तम माना गया है।
चतुर्मास में विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गये हैं।
चतुर्मास व्रत ऐवम त्योहारों का संगम है—-
चतुर्मास का पहला मास श्रावण है, जो भगवान शिव को समर्पित है इस मास में सनातनी महादेव की पूजा ,अभिषेक, अर्चन करते हैं । ऐवम इस मास में हरी पत्तेदार सब्जियों के खाने से बचना चाहिये । दूसरा मास भाद्रपद का है, इस मास में भगवान गणेश जी का आगमन होता है यानी गणेश चतुर्थी और कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भी इस महीने में आता है। इस मास में दही के खाने से बचना चाहिये। चतुर्मास का तीसरा मास अश्विन है। इस मास में नवरात्र और दशहरा का पर्व मनाया जाता है। इस महीने दूध से परहेज करने का नियम है। चतुर्मास का अंतिम यानी चौथा महीना कार्तिक का होता है। इस माह में दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। इस मास में दाल से परहेज रखने का विधान है। इसके बाद देवोत्थान एकादशी आती है, जिसके बाद से फिर से मांगलिक कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं।First Published on: 26/06/2023 at 3:24 PM
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