आस्था का पर्व दुर्गा पूजा

या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तयै नमस्तस्यै नमो नमः।

हिंदू धर्म में दशहरा ,दुर्गा पूजा, नवरात्र की बड़ी महिमा है। शक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा पाप नाशिनी एवम दुख हरिणी के रूप में पूजी जाती है। अक्तूबर माह के आते ही पूरा भारत
दुर्गा भक्ति के रंग में रंग जाता है। जहाँ बड़े-बड़े पूजा पंडाल में देवी स्थापित होती हैं वहीं घर-घर में नवरात्र की आरती भी गूँज उठती है। बच्चे हों या बूढ़े , स्त्री हों या पुरुष सभी भक्ति-भाव से माता की आराधना में लग जाते हैं।
यह पर्व हिंदुओं के देवी दुर्गा पर विश्वास का पर्व है। मान्यता है कि इन दस दिनों में देवी माँ अपने भक्तों का उद्धार करने के लिए नौ स्वरूप धारण करती हैं। इन नौ दिनों में तामसिक भोजन त्याग कर शुद्ध सात्विक भोजन करने की परम्परा का पालन किया जाता है। यह धार्मिक विश्वास तो है ही इसका वैज्ञानिक सत्य भी है। वास्तव में हमारी मानसिकता और भावनाओं पर सात्विक भोजन का बहुत बड़ा असर होता है। शुद्ध सात्विक भोजन हमारे मन को शांत करता है जबकि मांस-मछली हमारी भावनाओं को उग्र करता है। इसलिए भारतीय संस्कृति में ऋषि-मुनियों के द्वारा सात्विक आहार को प्राथमिकता दिया गया है। कई घरों में फलाहार करने की परंपरा अपनाई जाती है।
इसका तीसरा पक्ष हमारे स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। इन आठ-नौ दिनों में शुद्ध सात्विक आहार हमारे शरीर के टॉक्सिक पदार्थ को निकाल शरीर को पुनः नवजीवन प्रदान करते हैं। इसका चौथा लाभ यह होता है कि भक्त इन नौ दिनों में आत्म संयम का पालन करते हैं जिससे शरीर की तरह ही कुप्रवृत्तियाँ मन से दूर हो जाती हैं। त्याग, क्षमा, दान की प्रवृत्ति विकसित होती है। ऐसा लगता है जैसे जीवन का चक्र बिल्कुल घूम जाता है और देवी माँ हमें जीवन के सही मायने सिखा देती हैं। यह पर्व परिवार को भी जोड़ता है। महीनों से दूर रहने वाले परिवार के सदस्य पूजा के दिनों में एक साथ रहते हैं। सुबह की पूजा, सन्ध्या की आरती, दुर्गा पंडालों में घूमना , नए कपड़े पहनना इत्यादि बातें जीवन में एक नया उत्साह भर देते हैं।
इस तरह हम कह सकते हैं कि इस पर्व धार्मिक एवम दैनिक जीवन दोंनो रूपों में महत्व है।

पूनम…✍️
हजारीबाग, झारखंड।

TFOI Web Team

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