Monday सोमवार का नाम सोम कैसे पड़ा ?
सोमवार जो कि सप्ताह का एक दिन है। जो कि रविवार के बाद और मंगलवार से पहले आता है। सोमवार का यह नाम सोम से पड़ा है क्योकिं इसका अर्थ भगवान शिव है। यह सप्ताह के दूसरे दिन आता है, भारत और विश्व के कई देशों में यह सामान्य कामकाज का पहला दिन होता है इसलिए कभी कभार इसे सप्ताह का पहला दिन भी माना जाता हैं।
• Somvar vrat katha: सोमवार के दिन यह व्रत करने से मिलेगी शिव-पार्वती की कृपा:
सोमवार का व्रत उन लोगों के लिए बहोत फायदेमंद है, जो कि गुस्से के तेज माने जाते हैं अथवा फिर जिनके स्वभाव में उग्रता रहती है। सोमवार का दिन भगवान शिवजी को समर्पित होता है तथा इसके साथ ही यह दिन चंद्रमा को भी समर्पित होता है। जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा की दशा भारी हो उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए। इस व्रत को करने से उन लोगों को विशेष लाभ होता है।
सोमवार का दिन भगवान शंकर को समर्पित होता है। सोमवार के दिन भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना भी करते हैं। परंतु कुछ लोग सोमवार के दिन व्रत भी रखते हैं ताकि उन्हें शिव की विशेष कृपा मिल सके। अगर आप भी बाबा भोलेनाथ के आशिर्वाद के लिए सोमवार के दिन का व्रत कर रहे हैं, तो शिव व्रत कथा को पढ़कर अथवा सुनकर सोमवार के इस व्रत को पूरा करें।
• सोमवार के व्रत की विधि- नारद पुराण के अनुसार सोमवार के व्रत में व्यक्ति को प्रातः स्नान करके शिव जी को जल तथा बेल पत्र चढ़ाना चाहिए और फिर शिव-गौरी की पूजा करनी चाहिए। शिव पूजा के बाद सोमवार Monday के व्रत की कथा सुननी चाहिए। और उस दिन सिर्फ़ केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए। साधारण रूप से सोमवार के व्रत दिन के तीसरे तक होता है। मतलब की शाम तक रखा जाता है। सोमवार का व्रत तीन प्रकार का होता है प्रति सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत तथा सोलह सोमवार का व्रत। सभी व्रतों के लिए एक ही विधि होती है।
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• Monday सोमवार की व्रत कथा- एक समय की बात है कि किसी नगर में एक साहूकार रहता करता था। उसके घर में धन की बिल्कुल कमी नहीं थी परंतु उसकी कोई संतान नहीं होने के कारण वह बहुत दुखी रहता था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार व्रत रखता था तथा पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव के मंदिर जाकर भगवान शिव तथा पार्वती जी की पूजा करता था।
उसकी यहीं भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं तथा भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का अनुरोध किया। पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि ‘हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता ही है तथा जिसके भाग्य में जो होता है उसे भोगना ही पड़ता है.’ लेकिन पार्वती जी ने उस साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई।
माता पार्वती के ही अनुरोध पर शिवजी ने उस साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया परंतु साथ ही उसे यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष की रहेगी। माता पार्वती तथा भगवान शिव की बातचीत को वह साहूकार सुन रहा था। उसे ना तो इस बात की खुशी हुई और ना ही दुख हुआ था। वह पहले की भांति भगवान शिवजी की पूजा करता रहा।
कुछ समय के बाद उस साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। जब उस साहूकार का पुत्र ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया तथा उससे कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ तथा मार्ग में यज्ञ कराना। और जहां भी यज्ञ कराओ वहां पर ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते हुए जाना।
मामा और भांजे दोनों इसी तरह यज्ञ कराते तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते और दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। रात में एक नगर पड़ा जहां पर नगर के राजा की कन्या का विवाह था। परंतु जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक साजिश बनाई।
साहूकार के पुत्र को देखते उसके मन में तुरंत एक विचार आया कि क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। फिर विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा तथा राजकुमारी को अपने साथ अपने नगर ले जाऊंगा। साहूकार के पुत्र को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया। किंतु साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसको यह बात न्यायसंगत नहीं लगी।
उसने मौका पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिख दिया कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परंतु जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। और मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।’
जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो तब उसने अपने माता-पिता को यह सब बातें बता दी। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिसकी वजह से बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का तथा उसका मामा काशी पहुंचे और वहां पर जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन उस लड़के की आयु 12 वर्ष की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा को कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने अपने भांजे से कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ।
शिवजी के दिए वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देखकर उसके मामा ने विलाप शुरू किया। संयोगवश उसी समय भगवान शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान शिव से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो पा रहा हैं। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें। जब शिवजी उस मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह तो उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 साल की आयु का वरदान दिया था। अब इस बालक की आयु पूरी हो चुकी है। परंतु मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को तथा आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इस बालक के माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।
माता पार्वती के आग्रह पर शिव भगवान ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दे दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का फिर से जीवित हो गया। फिर शिक्षा समाप्त करके लड़का अपने मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। मामा और भांजे दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उस साहूकार के पुत्र का विवाह हुआ था। उन्होंने उस नगर में भी यज्ञ का आयोजन किया। लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया तथा महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी भी की तथा अपनी पुत्री को विदा किया।
इधर साहूकार तथा उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। साहूकार और उसकी पत्नी ने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी अपने प्राण त्याग देंगे किंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात शिव भगवान ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने तथा व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। इसी प्रकार जो कोई भी सोमवार व्रत करता है अथवा कथा सुनता है तथा दूसरों को भी पढ़ कर सुनाता है उसके सभी दुख दूर होते हैं तथा समस्त मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।
Monday सोमवार के दिन ये 8 कार्य बिलकुल भी भूल कर न करें, वर्ना पछताएंगे
सोमवार के देवता भगवान शिव और चंद्रदेव हैं। सोमवार के दिन चंद्र दोष को ठीक किया जा सकता है। चंद्र ग्रह हमारे मन तथा माता का प्रतीक है अत: इसके उपाय से शांति, सेहत तथा समृद्धि की प्राप्त होती है। सोमवार की प्रकृति सम है। सोमवार के दिन उन लोगों को व्रत रखना चाहिए जिनका स्वभाव ज्यादा उग्र है। इससे उन लोगों की उग्रता में कमी होगी।
• ये सारे कार्य न करें :
1. सोमवार के दिन शक्कर का त्याग कर दें।
2. किसी को सफेद वस्त्र अथवा दूध दान में ना दें।
3. इस दिन उत्तर, पूर्व तथा आग्नेय में यात्रा नहीं करें। खासकर पूर्व दिशा में तो दिशा शूल रहता है।
4. सोमवार के दिन माता से किसी भी प्रकार का विवाद ना करें।
5. कुल देवता का किसी भी प्रकार से अनादर ना करें।
6. सोमवार के दिन प्रात:काल 7:30 से 9:00 बजे तक राहु काल रहता है। अत: इस समय यात्रा करना अथवा कोई शुभ कार्य की शुरुआत नहीं करना चाहिए।
7. शनि से संबंधित भोजन ना करें, जैसें बैंगन, कटहल, सरसो का साग, काला तिल, तेज मसालेदार सब्जी आदि।
8. शनि से संबंधित कपड़े ना पहने, जैसें काले, नीले, जामुनी अथवा कत्थई।
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