पितृपक्ष

Updated: 24/09/2021 at 1:55 PM
पितृपक्ष
संपूर्ण विश्व में भारत अपने धर्म और धार्मिक आस्था के लिए जाना जाता है। भारत की धरती में ही बौद्ध और जैन धर्म ने जन्म लिया है। जिसका प्रचार- प्रसार और अनुसरण विश्व के कई देशों में पूरी आस्था के साथ किया जाता है । भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है , जहाँ कई धर्मों, जैसे —इस्लाम, इसाई , बौद्ध , जैन और पारसी सभी अपने धर्म के लिए स्वतंत्र हैं । किन्तु, बहुतायत में हिन्दू धर्म अर्थात सनातन धर्म को अधिक मान्यता दी जाती है । उन्हीं मान्यताओं के अनुसार हिन्दू धर्म में जातक संस्कार का बहुत महत्व है !मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य कई संस्कारों से जुड़ा रहता है !जिनमें चार प्रमुख हैं —— जन्मोत्सव, यज्ञोपवीत, विवाह और अंतिम मृत्यु संस्कार। मृत्यु के उपरांत श्राद्ध का हिन्दू धर्म में बहुत बड़ा महत्व है । गरुड़ पुराण के अनुसार मनुष्य जब मृत्यु को प्राप्त करता है , तब आत्मा शरीर छोड़ कर नये शरीर को पाने के लिए पुनर्जन्म के लिए प्रस्थान कर जाती है । छोड़े गये शरीर का परिजन अंतिम संस्कार कर देते हैं । किन्तु, आत्मा 12 दिन तक अपने परिजन के आस-पास ही रहती है । उस आत्मा की अगले जन्म की यात्रा को सुगम बनाने के लिए श्राद्ध कर्म का विधान है । पितृपक्ष में विधि पूर्वक पितरों का ध्यान-आह्वान शुद्ध मन -कर्म -वचन से किया जाताहै । इस विधान को हर वर्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से 15 दिन की अवधि में संपन्न किया जाता है । यह श्राद्ध कर्म वस्तुतः आत्मा के लिए किया जाता है । मृतक के पुत्र या कुल-गोत्र का कोई व्यक्ति उनके लिए अपनी श्रद्धा अर्पित करता है । जो जीवन साथ जिया गया है , उन पितरों के लिए आदर और उन्हें स्मरण करने का विधान ही श्राद्ध है ।पितृपक्ष मनुष्य के जीवन में तीन लोगों का सर्वाधिक महत्व है —– देवता , ऋषि अर्थात गुरु और पितृ । इन सभी के श्राद्ध तर्पण की अलग-अलग विधियाँ हैं । पितृ के तर्पण के लिए चावल , तिल और जौ इन तीन अन्न से पिण्ड़ के रूप में अर्पण किया जाता है । अब तो विदेशियों के द्वारा भी इस संस्कार से प्रभावित हो कर अपने माता-पिता का श्राद्ध करने के समाचार मिलने लगे हैं । जो गया में अपने माता-पिता का तर्पण करने आते हैं । मान्यता है कि श्राद्ध तर्पण अन्न से ही पूर्ण होता ह । पितर जहाँ वास करते हैं, वहाँ अन्न और जल उन्हें नहीं प्राप्त होता है । अतः मृत्यु के देवता यमराज पितृपक्ष में उन्हें 15 दिन के लिए मुक्त करते हैं ; पृथ्वी पर आने के लिए और यही तर्पण उन्हें पूरे वर्ष के लिए संतुष्ट करता ह , और उनका आशीर्वाद श्राद्ध कर्ता को प्राप्त होता है । आस्था है कि पितरों के ही आशीर्वाद से परिवार फलता-फूलता है । पौराणिक कथा के अनुसार दानवीर कर्ण जब मृत्यु के उपरांत स्वर्ग पहुँचे तब उन्हें भोजन में सोना-चाँदी दिया गया । जब कि अन्य पुण्यात्माओं को भोज्य पदार्थ मिला। व्याकुल कर्ण ने जब देवराज इंद्र से इसका कारण पूछा तो इंन्द्र ने बताया कि दान-पुण्य के कारण उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति तो हो गई । परंतु दान में चूंकि उन्होंने सोना-चाँदी का ही दान किया था अन्न का नहीं। इसके प्रायश्चित के लिए देवराज इंद्र के आदेश से कर्ण को 16 दिनों के लिए पृथ्वी पर आकर अन्न का दाना करना पड़ा । यमस्मृति के अनुसार पिता , दादा और परदादा श्राद्ध की प्रतीक्षा ऋतु के फल की तरह करते हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार जिस कुल में श्राद्ध नहीं किया जाता वहाँ संतान से पीड़ा बनी रहती है । महाभारत में कहा गया है , जो व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता वह विद्वानों की संगत मे बैठने योग्य नहीं है। विष्णु पुराण के अनुसार श्राद्ध से केवल पितर ही नहीं बल्कि ब्रह्मा, सूर्य, इंन्द्र, अग्नि, वायु, ऋषि, मनुष्य और पशु-पक्षी संपूर्ण सृष्टि तृप्त होती है । गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु से लेकर 12 दिन जब आत्मा अपने आत्मीय के आस -पास रहती है तब गरुड़ पुराण के श्रवण से उनकी आत्मा को सद्गति मिलती है । विषोत्सर्ग का विधान श्राद्ध में किया जाता है । इसमें बछड़े वाली गौ का दान किया जाता है। यही “गोदान “ है। यमलोक में इसी के सहारे बैतरणी पार कर मोक्षप्राप्ति की बात कही गयी है । धर्मसिंधु में 96 प्रकार के श्राद्ध का वर्णन किया गया है —’ एकोदिष्ट एक वर्ष की अमावस्याएँ (12) पुण्यादि तिथियाँ (4) मनवादि तिथियाँ(14) संक्रांति तिथियाँ (12) वैधृति योग (12) व्यातिपात योग (12) पितृपक्ष (15) अष्टछाप श्राद्ध तथा पूर्वेद्धुः (5) कुल मिला कर श्राद्ध के ये 96 अवसर प्राप्त होते है ।इसके साथ ही श्राद्ध कर्ता को अपने कुल की परंपरा के अनुरूप श्राद्ध का विधि-विधान करना चाहिए और पितरों का सम्मान-स्मरण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। धन्य है हमारी भारत भूमि जहाँ जीवन के बाद भी संबंधों की गरिमा श्राद्ध के माध्यम से आज भी सुरक्षित है ।मंजुला शरण 'मनु' मंजुला शरण  ‘मनु’ पटना विश्वविद्यालय से  एम.ए. तक शिक्षा ( हिन्दी साहित्य )
सहकारिता विभाग से अवकाश ( वी  .आर .एस  .)
भू. पू.  संपादक  — मेरी निहारिका  महिला मासिक पत्रिका।
स्वतंत्र लेखन ( कहानी  , कविता, गीत , ग़ज़ल, संस्मरण ,  लघुकथा  आलेख आदि )
 वर्तमान आवास  — राँची  , झारखण्ड  ।
 
First Published on: 24/09/2021 at 1:55 PM
विषय
ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए, हमें फेसबुक पर लाइक करें या हमें ट्विटर पर फॉलो करें। TheFaceofIndia.com में आध्यात्मिक सम्बंधित सुचना और पढ़े |
कमेंट करे
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
Welcome to The Face of India