स्वामी चैतन्य रिक्तम जगाधरी : आनंद का एकमात्र रहस्य अहंकार की मृत्यु का होना है। जैसे-जैसे तुम्हारा अहंकार शुन्य होता जाता है तुम परम आनंद की ओर चल पड़ते हो। दुनिया की कोई ताकत तुम्हें आनंदित होने से नहीं रोक सकती। बस एक बार अहंकार शुन्य हुआ तुम फिर तुम नही रह्ते, तुम वो हो जाते हो जो गौतम बुद्ध हुए। बस तुम्हारा हर अवस्था में राजी हो जाना। तुम्हें आज कुछ मिला तुम उससे राजी, तुम्हें आज कुछ ना मिला तुम उससे भी राजी ,तुम्हें किसी ने गाली दी तुम उससे भी राजी, तुम्हें किसी ने प्रेम दिया तो तुम उससे भी राजी। जो व्यक्ति हर अवस्था में राजी हो जाता है उसका अहकार शुन्य हो जाता है। जब तुम विरोध करना छोड़ देते हो शिकायत करना छोड़ देते हो।जो हो बस उसकी मर्जी ऐसा तुम मान लेते हो ,उस अवस्था में तुम्हें परमात्मा अंगीकार कर लेता है, तुम अहंकार शुन्य हो जाते हो। इस प्रकृति के हिस्से बन जाते हो। जब तक तुम्हारा अहंकार है तुम्हें परमात्मा से कोसों दूर रखेगा ।जिस दिन तुम्हारा अहंकार समाप्त हुआ उसी श्नण बुद्धत्व घटित हो जाता है। तुम बौद्ध को प्राप्त हो जाते हो। संसार में रहते हुए संसार की मोह माया से मुक्त हो जाते हो। जीते जी मोक्ष प्राप्त हो जाता है , याद रखना मोक्ष कभी भी मृत्यु के बाद नहीं प्राप्त होता। मोक्ष यही प्राप्त होता है इसी जन्म में प्राप्त होता है इसी जीवन में ही प्राप्त होता है। बस एक बार अहंकार की मृत्यु हो जाए और मोक्ष घटित हो जाता है।