शिव जी के तीन शक्तिशाली अवतार | Three Powerful Avatars of Shiva

यूं तो भगवान शिव की कई अंशा अवतार माने गए है । जिनका वर्णन हमें कई पुराणों में मिलता है। मुख्यतः शिव पुराण में हर अवतार का वर्णन विस्तार से किया गया है। उनके हर एक अवतार की हमारे इतिहास में एक विशेष भूमिका रही है। पर आज हम उनके ऐसे तीन अवतार के बारे में बात करेंगे जिनके बल,पराक्रम और शक्ति की कोई सीमा नही थी।

काल भैरव (Kaal Bhairav)

काल भैरव

शिव महापुराण के श्री शतसंहिता  अध्याय आठ के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने एक कटाक्ष करते हुए भगवान शिव को कुछ कटु वचन कहें तो उन वचनों को सुनकर भगवान शिव को क्रोध आ गया। उनके क्रोध से तत्काल ही एक पुरुष उत्पन्न हो गया। उसका नाम भैरव था। भगवान शिव ने उस पुरुष को आदेश देते हुए कहाँ हे कॉल राज तुम काल के समान हो इसीलिए आज से तुम जगत में काल भैरव नाम से विख्यात होओगे । तुम ब्रह्मा का गर्व नष्ट करो। और इस संसार का पालन करो आज से मैं तुम्हें काशीपुरी का तथ्य प्रदान करता हूं। वहां के पापियों को दंड देना तुम्हारा ही कार्य होगा। भगवान शिव के इस आदेश को काल भैरव ने प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण किया। तत्पश्चात उन्होंने अपनी बाएं उंगली के अग्रभाग से ब्रह्मा जी का पांचवा सिर काट दिया। यह देखकर ब्रह्माजी भयभीत हो गये । और शत्रु रुद्रीय का पाठ करने लगे। ब्रह्मा जी को शिव जी का अपमान करने पर अत्यंत पछतावा हुआ। तब भगवान शिव ने भी उन्हें क्षमा कर दिया। तत्पश्चात भगवान शिव ने काल भैरव को आज्ञा दी। कि वह सदा भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु जी का आदर करे और पापियों को दंड प्रदान करें |

वीरभद्र  (Virbhadra)

वीरभद्र

माता सती ने जब अपने प्राणों की आहुति दे दी थी तब उस समय भगवान शिव ने क्रोधित होकर | दक्ष प्रजापति के यज्ञ को भंग करने का निश्चय किया और वही उन्होंने अपनी एक जटा को निकालकर रोस पूर्वक धरती पर पटक दिया। और इससे महाबली वीरभद्र प्रकट हुए। दूसरी जटा से भगवान शिव भद्र काली को उत्पन्न किया । जो बड़ी भयंकर दिखाई देती थी क्रोध में आकर भगवान शिव ने वीरभद्र और भद्रकाली से कहा तुरंत जाओ और दक्ष का यज्ञ भंग कर दो और उसका मस्तक काटकर मेरे सामने लाओ यदि कोई देवता ,गंधर्व, यक्ष अथवा अन्य कोई तुम्हारा सामना करने के लिए प्रस्तुत है तो उसे भी भस्म कर डालना तब वीरभद्र अथवा भद्रकाली ने जहां यज्ञ हो रहा था। वहां के बाहरी इलाकों को तहस-नहस कर दिया। पहरेदार उन्हें रोकने की कोशिश की तो उन्होंने सब के सिर कांट दिये । जितनी भी देव वहां उपस्थित थे उन्होंने यज्ञ की रक्षा करने के लिए सोचा और अपने वाहनों पर सवार होकर वे सभी वीरभद्र और भद्रकाली को रोकने के लिए निकल पड़े। वीरभद्र ने तब वहाँ बोला तुम सभी इस दुष्ट के समर्थन में अंधे हो गए हो । और तुम सभी भगवान शिव के अपराधी हो। वीरभद्र ने वहां भाग की आंखें निकाली। पुसन के दांत तोड़ दिए। और सरस्वती जी की नाक काट डाली। इनके साथ ही वरुण देव का क्षत्र भी नष्ट कर दिया। और इंद्र देव की वज्र को भी निष्क्रिय कर दिया। इस प्रकार लगभग सभी देवों को पराजित कर दिया। और यज्ञ को नष्ट कर वीरभद्र ने प्रजापति दक्ष का सिर काट दिया।कूर्म पुराण के भाग 14 के अनुसार महाबली वीरभद्र ने सुदर्शन चक्र को स्तंभित कर। गरुड़ पर बैठ कर आते हुए भगवान विष्णु को भी दीक्षा बाणों से चोटिल कर दिया था। विभिन्न पुराणों में इस घटना का अलग-अलग विवरण अवश्य मिलता है। पर हर एक पुराण में एक चीज अवश्य सामान्य है और वह वीरभद्र के असीम बल का व्याख्यान।

हनुमान-(Hanuman)

हनुमान

भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ के दौरान जब एक समय भगवान शिव और शत्रुघ्न के युद्ध के दौरान भगवान शिव द्वारा चलाए गए एक बाण से घायल हो शत्रुघ्न मूर्छित होकर गिर पड़े यह देखकर हनुमान स्वयं भगवान शिव से युद्ध करने पहुंचे और वहां हनुमान भगवान शिवजी से बोले हे रूद्र आप राम भक्त का वध करने के लिये । उत्तेजित होकर धर्म के प्रतिकुल आचरण कर रहे हो । मैंने तो वैदिक ऋषियों के मुख से सुना है । आप सदैव श्री रघुनाथ का स्मरण करते हो। किंतु वह सभी बातें झूठी साबित हुई । इसीलिए मैं आप से युद्ध करूंगा। शिव बोले कपि श्रेष्ठ तुम वीरों में प्रधान हो। तुमने जो कहा है वह सत्य है किंतु मेरा भक्त उनके अश्व को ले आया । अश्व के रक्षक शत्रुघ्न इस पर चढ़ आए हैं वीर मणि के भक्ति के वसीभूत होकर मैं उसकी रक्षा के लिए आया हूँ। क्यों कि भक्ति का अपना ही स्वरूप होता है।भगवान शिव के ऎसा कहने पर हनुमान जी ने एक बड़ी सी शिला उठाकर भगवान शिव के रथ पर दे मारीं और वो रथ चूर चूर हो गया । शिव जी को रथ हींन देख कर नंदी दौड़े चले आए। और बोले भगवन आप मेरी पीठ पर सवार हो जाइए। यह देखकर हनुमान जी को और भी क्रोध आया । और उन्होंने एक साल का वृक्ष उखाड़कर भगवान शिव की छाती पर चला दिया। उसकी चोट खाकर भगवान भूतनाथ ने एक त्रिशूल हाथ में लिया जिसकी तीन सिखाएं थी। उस त्रिशूल को अपनी ओर आते देख हनुमान जी ने बड़ी वेग से उस त्रिशूल को पकड़ लिया। और उसे क्षण भर में तोड़ डाला। तब शिव जी ने तुरंत शक्ति हाथों में ली और हनुमान जी पर छोड़ दिया।जो सीधा जाकर हनुमान जी की छाती में लगी ।इससे हनुमान जी बड़े विकल रहें फिर उस पीड़ा को सह कर हनुमान जी ने तुरंत एक बड़ा से पेड़ उखाड़कर शिव जी पर चला दिया । उसकी चोट भगवान शिव के गले मे लपटे हुए नाग थर्रा उठे उसके बाद भगवान शिव ने हनुमान जी पर मूसल चलाया उस प्रहार को भी हनुमान जी ने बचा लिया हनुमान जी ने भी क्रोधित होकर एक पर्वत लेके शिव जी पर चला दिया फिर दूसरी शिलाएँ वृक्षों की बारिश करने लगी और भगवान शिव को अपने पूछों में लपेट लिया ।इससे भगवान शिव व्याकुल तो हुए पर प्रसन्न होकर बोले रघुनाथ जी के सेवा में रहने वाले भक्त तुम धन्य हो।आज तुमने महान पराक्रम कर दिखाया है ।इससे मुझे बड़ा संतोष हुआ है ।हे वीर तुम मुझसे कोई वर मांगो इस वरदान से यह ज्ञात हो जाता है कि देवाआदिदेव को युद्ध मे संतुष्ट करने वाले वीर हनुमान कितने शक्तिशाली थे। तो इस प्रकार भगवान शिव के ये तीन शक्तिशाली अवतार थे।

TFOI Web Team