महाभारत युद्ध के बाद यादवों का प्रभाव काफी बढ़ता जा रहा था। समय बीतने के साथ-साथ गांधारी के श्राप का असर दिखना आरंभ हो गया था। यदुवंशी आपस में ही संघर्ष करने लगे थे 1 दिन सभी यदुवंशियों ने सागर तट वर्तमान सोमनाथ मंदिर के पास आपसी विवाद के कारण भयानक युद्ध छिड़ गया।कुछ ही समय में सभी यदुवंशी काल की काल में समा गए। इस स्थिति को देखकर बलराम जी बेहद दुखी हुये। और वही सागर तट के पास बैठकर अपने देह का त्याग कर दिया। और क्षीर सागर में चले गए बलराम जी के देह त्यागने के बाद भगवान कृष्ण ने अपनी सारथी से कहा अब मेरे भी जाने का समय आ गया है। इसलिए मैं योग में लीन होने जा रहा हूं। द्वारिका में जो लोग बच गए हैं उन सभी से कह दो की अर्जुन के आने के बाद वह द्वारिका को छोड़कर उनके साथ चले जाएं को क्योंकि अर्जुन के द्वारका से जाने के बाद मैंने समुंदर से जो भूमि द्वारिका नगरी बसाने के लिए ली थी समुंद्र उसे डुबो देगा । इसके बाद भगवान श्री कृष्ण योग में लीन हो गए और जरा नामक शिकारी ने भगवान श्री कृष्ण के पैर को मृग की आँख समझ कर दूर से बान चला दिया। इस बान के लगते हैं भगवान श्री कृष्ण अपना देह त्याग कर बैकुंठ चले गए और जब अर्जुन द्वारिका पहुंचे और सब हाल जाना तब यदुवंशियों के शव को पहचान कर उनका अंतिम संस्कार किया। अर्जुन ने श्री कृष्ण की पत्नियों को उनके मृत्यु के विषय में कुछ भी नहीं बताया था वह भगवान की पत्नियों सहित उनकी संतानों और द्वारका में जीवित मनुष्य को लेकर बड़ी ही सावधानी से इंद्रप्रस्थ के लिए निकल पड़े। उनके साथ द्वारिका की अपार धन संपदा भी थी मार्ग से गुजरते हुए फिर जो कुछ भी हुआ उसकी उम्मीद नातो श्री कृष्ण की पत्नियों को थी और ना ही द्वारिका के मनुष्य को रास्ते में अभी वर्ग के लोगों ने इतनी महिलाओं की रक्षा के लिए एक योद्धा को देख उन पर आक्रमण कर दिया। और श्री कृष्ण की पत्नियों सहित सभी को बंदी बना लिया और उनका धन लूट लिया जिस अर्जुन ने पूरे महाभारत मे अपने विरोधियों के पसीने छुड़ा दिए थे। वह भी उनकी रक्षा नहीं कर पाया। भगवान की इस संसार से जाने के बाद अर्जुन ने अपनी शक्तियां खो दी थी। क्योंकि अर्जुन को जिन कारणों के लिए अपनी शक्तियों का उपयोग करना था। वह अब पूरे हो चुके थे। अर्जुन ने यदुवंशियों की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास किया था। परंतु उसके सभी अस्त्र असफल रहे। केवल श्री कृष्ण जी की 8 पत्नियां बलराम जी की पत्नी कुछ सेवक इन अभीरो के आक्रमण से बच पाए थे । यह सभी अर्जुन के साथ इंद्रप्रस्थ पहुंचे अर्जुन ने सभी को राज्य में अपना स्थान देकर अपना कर्तव्य पूर्ण किया और अंत में भगवान श्री कृष्ण के प्रयपोत्र वज्र को मथुरा का राजा बनाया इसके पश्चात अर्जुन ने अष्ट भारयो को भगवान श्री कृष्ण के मृत्यु के बारे में भी बताया उसके बाद रुकमणी ने जो भगवान लक्ष्मी का अवतार थी । वह अपनी उर्जा से अपना देह त्याग कर बैकुंठ चली गई साथ ही जामवंती भी सती हो गई। सत्यभामा सहित अन्य पत्नियां वन में तपस्या के लिए चली गई यह सभी केवल फल और पत्तों के आहार पर जीवित रह कर भगवान श्री हरि की आराधना करती रही। और समय आने पर भगवान श्री हरि में ही विलीन हो गई।