आखिर क्यों खाया पांडवों ने अपने ही पिता का मांस |After all, why did the Pandavas eat their own father’s meat?

वीर व्यास द्वारा रचि महाभारत को पंचम वेद भी माना गया है ।जिसमें महाभारत काल के बहुत से ऐसें  रहस्य भी छुपे हुये है ।जिन्हें जितना ही जानने की कोसिस की जाये उतने ही नये पन्ने खुलते जाते है ।इन्ही पन्नो में दफन एक रहस्य पांडु और उनके पांडव पुत्रो से जुड़ा हुआ हमें मिलता है । जिसके अनुसार सहदेव ने अपने पिता पांडु का मांस खाया था ।
इस सत्य को जानकर आपको भी हैरानी होगी। कितुं यह सत्य है कि सहदेव ने अपने पिता का मांस खाया था ।परंतु इन्होंने ऐसा क्यों किया ये हम आपको बताते है ।

महाभारत के बहुचर्चित पात्र पांडवो के पिता राजा पांडु भी थे जिन्हें अपने दो पत्नी कुंती और माधुरी से पाँच पुत्र युधिष्ठिर,भीम,नकुल अर्जुन और सहदेव की प्राप्ति हुई थी। जो बाद में पांडव कहलाये परंतु क्या आप जानते है कि इन पांचों पुत्र में से एक भी पुत्र पांडु के थे ही नही।इस का मतलब यह भी है कि इन पांचों पुत्र का जन्म पांडु के वीर्य से नही हुआ था।

इस के पीछे भी एक कथा है जिस कारण पांडु संतान का सुख प्राप्त नही कर सकते थे। राजा पांडू अपने दोनों पत्नी कुंती और माधुरी के साथ वन में शिकार पर गए वहाँ उन्होंने एक मृग को देखा जब वे मैथून रथ था । परंतु पांडु ने उस अवस्था मे भी उस बेजुवान जानवर पर  बाण साध दिया।बाण से घायल होने के पश्चात वे मृग अपने वास्विक रूप में आया जिसे देख कुंती और माधुरी समेत पांडु भी अचंभित हो गयें ।वास्तव में वो मृग कोई और नही बल्कि ऋषि केदंभ थे।मृग रूपधारी ऋषी केदंभ को देख भयभीत पांडु ने उनसे क्षमा मांगने का प्रयास किया । परंतु ऋषि केदंभ क्रोध से लाल थे।अपने अंतमी समय मे उन्होंने राजा पांडु को श्राप देते हुए कहाँ जिस प्रकार मैथुंन रथ अवस्था में तूने मुझे मृत्यु को सौपा है उसी प्रकार जब भी तुम इस अवस्था में आओगें तुम भी मृत्यु को प्राप्त हो जाओगें।इस घटना के बाद पांडु के मन मे श्राप का डर बैठ गया ।और वो यह मान चुका था कि वो अपने पत्नी और किसी भी औरत के साथ संभोग करने का प्रयास करेगा तभी उसकी मृत्यु हो जाएगी ।
उनका मन हमेशा उसी चिंता में लीन रहता ।की अपने उनके वंश का क्या होगा वो आगे कैसे बढेगा ।इसी दुख के चलते उन्होंने अपना सारा राज पाठ भी त्याग दिया ।और अपने दोनों पत्नी कुंती और माधुरी संघ वन में चली गये।वन में चले जाने के बाद भी राजा पांडु खोये खोये रहते थे।उनकी ये स्थित देख कुंती और माधुरी दोनों ही चिंतित रहती । पांडू की स्थिति को गंभीर होता देख कुंती को अपना वरदान याद आया। जो कि एक बार महर्षि दुर्वासा ने कुंती के सेवा भाव से प्रसन्न होकर उन्हें दिया था। यह तब की बात है जब कुंती कुँवारी थी । और महर्षि दुर्वासा उनके महल में अतिथि बनकर आए थे और काफी लंबे समय तक वही रहे थे। तब कुंती ने उनका बहुत ही आदर भाव से सेवा किया था । जिससे प्रसन्न होकर महर्षि दुर्वासा ने वरदान स्वरूप उन्हें एक मंत्र दिया था

जिससे उच्चारण मात्र से ही वो किसी भी देवता का आवाहन कर उन्हें बुला सकती थी। और संतान प्राप्ति कर सकती है ।इसी वरदान के फ़लस्वरू उसी समय सूर्य पुत्र कर्ण का जन्म हुआ था ।जो कि कुंती की एक भूल थी । वो सिर्फ ऋषी दुर्वाशा के दिये हुए वरदान का जांच कर रही थी ।परंतु परिणाम स्वरूप कर्ण का जन्म हो गया ।


जब कुंती ने ऋषि दुर्वाशा के वरदान की बात राजा पांडु को बताया तो वो बहुत ही प्रसन्न हो गये ।और बिना विलंब किये देवी कुंती को देवताओं का आवाहन करने को कहाँ जिसके फ़लस्वरू कुंती के तीन पुत्र युधिष्ठिर,भीम और अर्जुन का जन्म हुआ।फिर पांडु की आज्ञा पाकर कुंती ने इस मंत्र का ज्ञान माधुरी को भी दे दिया ।जिसके फ़लस्वरू माधुरी ने देवताओं का आवाहन कर दो पुत्र नकुल और सहदेव को जन्म दिया ।समय बीतता गया और समय के साथ पांडु के पांचों पुत्र युधिष्ठिर,भीम ,अर्जुन,नकुलऔर सहदेव अपने बाल अवस्था को पार कर अपने युव अवस्था मे पहुँच गये ।इन्हें पांड्वो की उपाधि मिली।जो सही भी थी ।क्यों कि पांचो भी अलग अलग कलाओं में निपुर्ण थे ।इनका मुकाबला करना आसान नही था ।युधिष्ठिर धर्म वीर था ।

तो भीम में 100 हाथियों का बल था अर्जुन धनुष विद्या में निपुण था ।तो नकुल सौंदर्य में सबसे श्रेष्ठ था।पांडवो में सब से छोटे थे सहदेव जिनके लिए कहा जाता है कि द्वापर युग मे सहदेव से ज्यादा बुद्धिमान कोई नही था ।लेकिन इतने कुशल और योग्य पुत्रों को पाने के बाद भी राजा पांडु का मन दुखी रहता वास्तव में उनके दुख की असली वजह उनका पछ्तावा था जो उन्हें परेशान करता था ।राजा पांडु के मन मे हमेशा इसी बात का खेद रहता चूंकि उनके पाचों पुत्र का जन्म उनके वीर्य से नही हुआ था ।इसी लिए वो अपना ज्ञान कौसल और बुद्धिमत्ता को वो अपने पुत्र को नही दे सकते थे ये दुख उन्हें अंदर ही अंदर से खाये जा रहा था ।महाराज पांडु चाहते थे उनके गुण उनके अंदर स्थानातरित हो परंतु पत्नियों के साथ संभोग के बिना यह पूर्ण नही हो सकता था ।और ऋषि केदंभ श्राप के कारण संभव नही था ।इसी लिए वो चाहते थे कि उनकी मृत्यु के बाद उनके बच्चे उनका मांस खाये ।

वास्तव में पांडवो के राजा पांडु के मांस खाने का कारण कुछ और नही राजा पांडु की अंतिम इच्छा ही थी ।एक दिन अलाव के पास बैठ कर राजा पांडु ने अपने पुत्रों यानी पांडवो से कँहा पुत्रो मैंने इन सोलह सालों में न सिर्फ तुम्हारी माताओं से दूर रहा।बल्कि ब्रम्हचारी की साधना कर के मैंने बहुत सारी वेदनीय सक्तिया और बहुत ज्यादा बुद्धिमत्ता हासिल की है ।परंतु मैं कोई गुरु नही हूँ इसी लिए मुझे नही पता कि मैं इन गुणों को तुम तक कैसे पहुंचाओ लेकिन ये सिद्धि करने का मेरे पास एक उपाय है ।तो जिस दिन मेरी मृत्यु होंगी ।तुम बस एक काम करना मेरे शरीर का एक टुकड़ा खा लेना।तुम मेरे मांस के टुकड़े को शरीर का एक हिस्सा बना लोगे तो मेरी बुद्धिमत्ता तुम्हारे पास पहुँच जायेगी।समय बीतता गया ।एक बार राजा पांडु अपनी पत्नी माधुरी के साथ वन में विचरण कर रहे थे ।तब वो माधुरी को देख कर वो स्वयंम पर नियंतरण नही कर पाए और जैसे ही संभोग की स्थिति में पंहुचे श्राप के कारण उनकी मृत्यु हो गई ।पांडु की मृत्यु के पशचात जब उनका अग्नि दाह किया जा रहा था ।तब सभी इतने दुखी थे कि पांडु के मांस खाने की बात भूल ही चुके थे ।तभी सहदेव ने एक चींटी को पांडु के मांस का छोटा टुकड़ा ले जाते हुए देखा।

पांडव

जिसे देख उसे पिता की कहि हुई बातें याद आ गई और उन्होंने वो मांस का टुकड़ा चीटिं से छीन कर खा लिया।मित्रों इसी लिए कहाँ जाता है कि सहदेव से ज्यादा ज्ञानी पूरे द्वापरयुग में कोई नही हुआ ।और उन्हें आपार बुद्धि विवेक की प्राप्ति हुई थी।जिस कारण उन्हें त्रिकाल दर्शी भी कहा गया है ।मित्रों इससे जुड़ी दो और मान्यताएं भी सामने आती है । पहली मान्यतायें के अनुसार पांचो पांडवो ने माँस खाया था ।परंतु सब से ज्यादा हिस्सा सहदेव को मिला जिस कारण से सहदेव में पिता पांडु की बुद्धिमत्ता सब से ज्यादा आई ।और इसी से जुड़ी दूसरी मान्यता कुछ इस प्रकार है ।पिता की आज्ञा का पालन करते हुए सिर्फ सहदेव ने ही अपने पिता पांडु के मांस का टुकड़ा खाया था ।जिनमे उन्होंने पिता मस्तिष्क के तीनों भागों को खाया था।जिसके फलस्वरूप मस्तिक के टुकड़े के पहले भागों के खाते ही सहदेव को इतिहास का पूरा ज्ञान हो गया।दूसरा टुकड़ा खाते ही वर्तमान का ज्ञात और मस्तिष्क के तीसरा और अंतिम टुकड़ा खाते ही भविष्य का पूरा ज्ञान हो गया था ।कहा जाता है कि महाभारत काल मे कृष्ण के अलावा सहदेव ही एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें महाभारत के युद्ध के बारें में ज्ञात था ।और आगे की सारी घटनाओं के बारें में मालूम था ।सहदेव के महाभारत के परिणाम किसका वध किस के हाथों होगा सम्पूर्ण बातें ज्ञात थी परतुं सब कुछ जानते हुए भविष्य में होने वाले माहभर या फिर उससे जुड़ी कोई भी जानकारी वो नही दे सकते थे ।और ऐसा इस लिए क्यों कि भगवान श्री कृष्ण ने सहदेव को श्राप दिया था। कि वो जब कभी भी वो अपनी त्रिकालदरसीता का प्रयोग कर किसी को भी महाभारत के युद्ध के परिणाम के बारे में बताने की कोसिस करेगा ।तब उसका सिर तीन भागों में कट जायेगा। अर्थात उसी समय उसकी मृत्यु हो जाएगी ।जिस कारण सहदेव सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहें।

TFOI Web Team