Updated: 11/02/2022 at 11:55 AM
हमने अपने धार्मिंक शास्त्रों में बहुत सी कथाएँ पढ़ी या सुनी हैं। जब श्राप या वरदान दिए गए यह सत्य भी हुए, आखिर ऎसा किस शक्ति के द्वारा किया गया, क्या वह शक्ति आज भी संसार में है अगर है तो कहाँ है | क्या यह शक्ति किसी भी इंसान के अंदर हो सकती है। यह तो हम सब जानते है की जो कुछ होता है ईश्वर के मर्जी से होता है। हमारा धर्म हमें बताता है हम जब भी साधना, पूजा या अपने ईश्वर को याद करें तो संकल्प जरूर करें।संकल्प लिए बिना कोई भी पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। आखिर क्या है ऐसा संकल्प में संकल्प ही वह शक्ति है जो इस पूरे संसार को ईश्वर के साथ जोड़ती है।संकल्प ही तो है जिससे किसी भी इंसान को श्राप या वरदान दिया जा सकता है। संकल्प की शक्ति को समझने के लिए हमें उससे जुड़े अन्य शक्तियों को समझ ना होगा।संकल्प के साथ जुड़ी हुई सबसे पहले शक्ति है वाक-शक्ति शब्दों के द्वारा किसी का हित या अनहित करने ईच्छा जागृत होती है तो यह भावनाएँ इंसान के अंदर एक तीव्र शक्ति पैदा करती है और क्योंकि हम उस भगवान का ही एक अंश है वो वाक-शक्ति हमें भी ब्रहामांड को आदेश देने की शक्ति प्रदान करती है। इसी वाक-शक्ति से दूसरी शक्ति पैदा होती है,वह है मानसिक शक्ति वही यह शक्ति है जो हमारे आत्मा को वो पल देती है, जिससे हम अपनी इच्छा शक्ति को दृढ बनाकर किसी दूसरे का मंगल या अमंगल करने में समर्थ हो पाते है।और श्राप देने की सबसे बड़ी शक्ति आती है ।तपस्या,धर्मवादिता ,भक्ति, योग और ब्राह्मण से जब यदुवंशी को ब्राहमण द्वारा विनाश का श्राप दिया गया तो यही वो शक्ति थी जिसका प्रयोग कर के यदुवंशियों का विनाश निश्चित हुआ था ।जब समय आया अपने आप घटनाएं ऐसी होती चली गई और वे श्राप सत्य सिद्ध हो गया ।यही है संकल्प की शक्ति जब हम सत्य, निष्ठा, वाक, शुद्धि से कोई संकल्प लेते है, तो समस्त सृष्टि उसे सत्य सनातन भगवान के तुल्य मानती है अब से जब भी पूजा करें संकल्प लेके करें फिर उस भक्ति का प्रभाव देखिए अब जानते है कि संकल्प के लिए क्या जरूरी है ।संकल्प करने से पहले आचमन बहुत आवश्यक है ।मन का सुधिकरण अतिआवश्यक है हमारा अंतःकरण बहुत से विकारों से युक्त है ।उन विकारों को अपने से दूर कर पाना बहुत कठिन है यहीं काम आती है मन की एकाग्रता जो भगवान में हमें अपना मन स्थिर करने की शक्ति प्रदान करती है
ताकि हमारी वाक शक्ति से ऊर्जा प्रदान हो सकेंतब हम जो संकल्प लेते है वो सीधा उस सत्य सनातन भगवान के कानों में पहुँच जाता है ।आप सभी ने दुर्गा सप्तशती पड़ी होगी क्या आपको पता है सप्तशती भगवान शिव द्वारा किहित है और दुर्गा सप्तशती पढ़ने से पहले उसका उत्कीलन करना बहुत ही आवश्यक हैं।अन्यथा उसका संपूर्ण फल नहीं मिलता। दुर्गा सप्तशती का उत्कीलन किया जाता है संकल्प से दुर्गा सप्तशती पढ़ने से पहले ये संकल्प किया जाता है कि हे माँ जो कुछ मेरे पास है में आपको समर्पित करती हूं।और फिर मन धारण करें कि माँ उस समर्पित भेट को अपने प्रसाद के रूप में आप को दे रहीं है और आप बोले माँ मैं आपके दिए हुयें भेट को ग्रहण करती हूं फिर दुर्गा सप्तशती का प्रभाव देखें पहले हम ने माँ जगदम्बा को भेंट किया ।औऱ फिर प्राप्त किया यही सबसे बड़ी भेंट है।श्राप देने की जब किसी को श्राप दिया जाता है।तो जो श्राप देता है उसकी तपस्या और योग शक्ति और पुण्य का क्षय होता है क्योंकि इसी शक्ति का प्रयोग कर के श्राप को संचालित किया जाता है ।यहां मैं आपको एक छोटी सी कथा बताना चाहूँगी जब भगवान श्री कृष्ण ने उतरा के गोद मे मरें हुए परिक्षित को जीवित किया।जो अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से मर चुका था । तब भगवान ने कहा मैंने खेलकूद में भी कभी भी मिथ्या भाष्य नहीं किया है और युद्ध में कभी भी पीठ नहीं दिखाई है इस शक्ति से प्रभाव से अभिमन्यु का यह बालक जीवित हो जाए यदि धर्म, ब्राह्मण मुझे विशेष किए हैं तो अभिमन्यु ये बालक जीवित हो जायें। यदि मुझमें सत्य और धर्म की निरंतर स्थिति बनी रहती है तो अभिमन्यु का मरा हुआ बालक जीवित हो जाए यदि मैंने कंस और केशी का धर्म के अनुसार वध किया है तो इस सच के प्रभाव से यह बालक पुनः जीवित हो जाए। इसी प्रकार मां सीता ने हनुमान जी की पूंछ पर लगे हुए आग शीतल करने के लिए श्री राम की प्रति अपने प्रेम की दुहाई दी थी । और इस तरह से लिए गए संकल्प में वह शक्ति आ जाती है।जो सृष्टि के लिए उसे पूरा करना भगवान की इच्छा बन जाती है। परंतु श्रय श्राप देने और उसे प्राप्त करने वाले दोंनो का होता है
First Published on: 11/02/2022 at 11:55 AM
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