रिपोर्ट : के . रवि ( दादा ) ,,
मैं, निश्चित रूप से, रमेश पवार और आरजेवीफिल्म्स के सर्वसर्व सिनेमैटोग्राफर जय तारी के साथ मिलकर पिछले तीन दिनों से मुंबई मालाड के मढ आयल्यांड के अलग-अलग स्टूडियो में शूटिंग कर रहे हैं.
(जी हाँ स्टूडियो में) मतलब यह स्टूडियो शूटिंग की स्वतंत्र जगह हैं , जहा इजाजत के बिना बाहर का कोई भी शक्श नही आ सकता . तो फिर भी, ये बदमाश अलग-अलग पार्टियों की यूनियनों वाले कहा से आ रहे हैं, और ये है क्या? वो हैं क्या ? इतना जुर्माना भरो? उतना जुर्माना भरो ? यदि नहीं तो जितना हो सके उतना जुर्माना भर दो, नहीं तो हम ये कर देंगे. वो कर देंगे.
उन्होंने इन यूनियनों का निर्माण कलाकारों को जीवित रखने या उन्हें मारने के लिए किया है.आज यही स्थिति है, जब निर्माता एक साल बाद किसी फिल्म या किसी प्रोजेक्ट के लिए खड़ा होता है, तो 100 घरों के चूल्हे जल जाते हैं, कई लोगों को रोजगार मिलता है. इतने भयानक दौर में भी, अगर निर्माता ने एक परियोजना स्थापित करने की हिम्मत की, तो ये बदमाश क्या आपको सभी यूनियनिस्टों उन प्रोड्यूसर्स को या वहां काम करने वाले कलाकारों से कभी यह पूछा की क्या तुम्हें कोई दिक्कत है? या कोई आपको परेशान कर रहा है? या फिर हमें आश्वस्त करने के बजाय कि हम एक संघ के रूप में आपके साथ हैं, ये मुक्त गैंगस्टर सेट पर आते हैं और पैसे की मांग करते हैं.
जाहिर है, एक कलाकार के पास सदस्यता कार्ड होना जरूरी है, लेकिन अगर एक नए कलाकार का कार्ड नहीं है, तो उसने एक बड़ा अपराध किया है क्या ?
- कार्ड वाले कलाकारों को भी कहां ये लोग धड़ाधड़ काम देते हैं
- यूनियनें सिर्फ नाजायज पैसा जुटाने के लिए ही हैं क्या ?
- उनके पास कलाकार की रुचि नाम की कोई चीज नहीं है या उन्होंने इंसानियत को बेच कर खा रखा है?
- कल अगर प्रोड्यूसर्स इस तरह के उत्पीड़न से तंग आकर प्रोडक्शन के लिए पीछे हट गए तो क्या यह यूनियनों वाले कलाकारों को काम देंगे?
- अगर जो कलाकार पहले से ही निराश स्थिति में है , यदि वह इन यूनियन वालो का खोखले बांस से समाचार लेगा तो क्या होगा ?
इनके ड्रामा का अंत नहीं है, उसीमें बीएमसी के लोग आकर अपने फालतू के नियम दिखाने लगते हैं. साथ तमाम अनुमतियों के बावजूद अभी भी कुछ पुलिस मण्डली कलाकारों के जड़ में बैठी है. अब, हम सभी बुद्धिमान कलाकार समूह को ही यह तय करना है कि इस तरह के बकवास लोगो का क्या करना है. और क्या कोई है जो निर्माताओं की रक्षा कर सकता है? ताकि निर्माताओं को ऐसे मूर्ख लोगों से परेशानी न हो.
रमेश पवार (एक सामान्य अभिनेता)
वैसे देखा जाए तो छोटे छोटे निर्माता या कलाकारों को इस तरह की समस्यावो से काफी जूझना पड़ता है . बहुत हीं कम यूनियन वाले हैं जो इन लोगों के लिए झगड़ते है. रमेश पवार ने जो आवाज बुलंद की है बड़ी जटिल समस्या है, जिसे हम सभी लोगो को इक्कठा होकर उनकी आवाज को बुलंद करना होगा. हम सभी लोग इस तरह की आवाज को सहयोग देने में आगे आए.
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