Bhojpuri Film-
भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री एक इलाके की भाषा मानी जाने वाली भोजपुरी अब पूरे देश में अपना जलवा बिखेर रही है. अब सिर्फ बिहार, यूपी या झारखंड तक ही सीमित नहीं है। बल्कि दुनियाभर में भोजपुरी फिल्मों और गानों के तमाम फैंस है। Bhojpuri Film में ऐसे कई गाने जो डिस्को में भी बजाये जाते है यहां तक की कम बजट में शुरू हुई इस फिल्म इंडस्ट्री में एक से बढ़कर एक फिल्मों का निर्माण किया जा रहा है। सोशल मीडिया से लेकर फिल्मी पर्दे तक इसकी धूम है, आज भले ही भोजपुरी फिल्मों में अश्लिल शब्दों की बाढ़ आ गई हो और दर्शक भी बड़े चाव से देख और सुन रहे हैं। लेकिन इसका इतिहास ऐसा बिलकुल भी नहीं था। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि कैसे भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत हुई और कैसे बनी पहली फिल्म।
उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा से सटे गाजीपुर के निवासी नजीर हुसैन ने बिमल रॉय की फिल्म दो बिघा जमीन को लिखा था। इस दौरान उन्होंने बिमल रॉय से उनकी भाषा को समझा और भोजपुरी इतिहास की पहली फिल्म ‘गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो’ लिखी। इस फिल्म को भोजपुरी में लिखने के बाद वह बिमल रॉय के पास पहुंचे। बिमल रॉय इस फिल्म को हिंदी में बनाना चाहते थे। लेकिन नजीर हुसैन ने इसे भोजपुरी में ही बनाने का फैसला किया। जिसके बाद भोजपुरी सिनेमा का पहला अध्याय शुरू हुआ।
भोजपुरी सिनेमा में काम करने वाले लोगों को नजीर हुसैन के संघर्ष को जानने की जरूरत, जिन्होंने बिमल रॉय से भाषा-बोली का समझौता नहीं किया उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा से सटे गाजीपुर के निवासी नजीर हुसैन बिमल रॉय की फिल्म दो बिघा जमीन के लेखक थे.
आजादी के बाद बदलते देश में सिनेमा को लेकर भी कई बदलाव हुए. फिल्म शिक्षण संस्थानों की स्थापना हुई. लोग व्यक्तिगत स्तर भी सिनेमा जगत को संवारने में जुट गए. इसी दौरान भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इस ओर एक सराहनीय कदम बढ़ाया. एक फिल्म समारोह के दौरान अपने संबोधन में भोजपुरी भाषी होने का दायित्व निभाते हुए उन्होंने भोजपुरी सिनेमा की दिशा में काम करने के लिए फिल्मकारों से कहा.
दरअसल, उन दिनों भोजपुरी फिल्में तो बनती नहीं थीं, मगर भोजपूरी भाषी लोग हिंदी सिनेमा में काम करते थे. ऐसे में हिंदी फिल्मों में ही भोजपुरी का तड़का लगा दिया जाता था. उस दिन समारोह में बैठे भोजपुरी माटी के निवासी नजीर हुसैन राजेंद्र प्रसाद के बात से काफी प्रभावित हुए. समारोह में उन्होंने राष्ट्रपति को भरोसा दिलाते हुए अपनी मातृ भाषा में कहा, डॉक्टर साहब समझीं हम आजे से ई दिशा में काम करे शुरू कर देनीं, रउवा बस शुभकामना दीं”. इसके बाद ही नजीर ने गंगा मईया तोहे पियारी चढ़इबो की पटकथा लिखी और यहीं से शुरू हुआ था भोजपुरी सिनेमा का पहला अध्याय.
विमल रॉय के ऑफर को ठुकराने के बाद नजीर लंबे समय तक निर्माता की तलाश में भटकते रहे. उन्होंने तय कर लिया था कि वो भोजपुरी की पहली फिल्म बनाकर ही दम लेंगे. नजीर अपने साथी और सहयोगियों से कहते ‘फिलिमिया चाहें जहिआ बनो, बाकी बनी त भोजपुरिया में’. नजीर की तलाश जारी रही. बंबई को कोई निर्मता मिला नहीं, कोई भी भोजपुरी पर पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं था. अंत में कोयला व्यासायी और सिनेमा हॉल मालिक विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी इस फिल्म में पैसा लगाने के लिए तैयार हुए.
नजीर ने निर्देशन की कमान बनारस के रहने वाले कुंदन शाह को सौंपी. फिल्म के लिए एक लाख 50 हजार का बजट तय हुआ, लेकिन बनते-बनते यह आंकड़ा 5 लाख को छू गया. मगर शाहाबादी ने पैसे की फिक्र नहीं की और फिल्म को पूरा किया. 1963 में पहली भोजपुरी फिल्म रिलीज हुई. उस दौर में इस फिल्म ने 80 लाख का कारोबार किया था. बनारस के ही कुमकुम और असीम ने इस फिल्म में मुख्य किरदार की भूमिका की निभाई थी.
विमल रॉय के ऑफर को ठुकराने के बाद नजीर को लंबे समय तक अपनी फिल्म के लिए निर्माता की तलाश करनी पड़ी। उन्हें मुंबई में कोई भी ऐसा निर्माता नहीं मिल रहा था जो उनकी फिल्म में पैसे लगाने को तैयार हो। बाद में कोयला व्यासायी और सिनेमा हॉल मालिक विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी इस फिल्म में पैसे लगाने को तैयार हुए थे।
इस फिल्म की कमान बनारस के कुंदन शाह को सौंपी गई थी। फिल्म के लिए एक लाख 50 हजार का बजट तय किया गया। लेकिन तैयार होते होते 5 लाख रुपये खर्च हो गए थे। 1963 में भोजपुरी की पहली फिल्म रिलीज हुई थी और उस दौर में फिल्म ने 80 लाख का कारोबार किया था।
मौजूदा वक्त में भोजपुरी फिल्म उद्योग करीब 2000 करोड़ रुपये का हो गया है. लेकिन साल 1999 से 2000 के दौरान यह फिल्म उद्योग खत्म होने के कगार पर था. ऐसे साल 2002 में बनी फिल्म सैयां हमार बढ़िया कारोबार किया और भोजपुरी जगत निर्माताओं और निर्देशकों के बीच फिर से एक उम्मीद की किरण जगी. मगर इस बार भोजपुरी सिनेमा अश्लीलता की चासनी में डूब गया. मनोज तिवारी की फिल्म ससुरा बड़ा पैसा वाला की सफलता को देख भोजपुरी निर्माताओं ने कंटेट को निचले स्तर पहुंचा दिया और दर्शकों को कुछ भी परोसने के की रेस में शामिल हो गए.
एक समय ‘गवनवा लईजा राजा जी’जैसे गानों ने भोजपुरी फिल्मों में चार चांद लगा दिए थे. लेकिन यह सैयां, साली, लहंगा, रिमोट, जवानी, चुम्मा से आगे नहीं बढ़ पाया है. यह सत्य है कि भोजपुरी में बनने वाली बहुत सी फिल्मों को भारतीय केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा A/व (व्यस्कों वाला) प्रमाण पत्र दिया गया है.
कृष्णा अभिषेक
विनय आनंद
बिराज भट्ट
मनोज भावुकी
केके गोस्वामी
नज़ीर हुसैन
गौरव झा
क्रांति प्रकाश झा
कमाल आर खान
सिकंदर खरबंद
रवि किशन
रितेश पाण्डेय
ऋषभ कश्यप
कुलदीप कुमार
सुजीत कुमार
यश कुमार
अवधेश मिश्रा
प्रदीप पाण्डेय
राकेश पाण्डेय
संजय पाण्डेय
पवन सिंह
दिलीप सिन्हा
मनोज टाइगर
मनोज तिवारी
दिनेश लाल यादव
खेसारी लाल यादव
काजल राघवानी
आम्रपाली दूबे
मोनालिसा
अक्षरा सिंह
रानी चटर्जी