पुस्तक समीक्षा काव्य संग्रह : जीवन के इंद्रधनुष

किसी भी राष्ट्र की समृद्धशीलता के इतिहास का रहस्य उस राष्ट्र के समृद्ध साहित्य की विरासत में छिपा रहता है । जिस राष्ट्र का साहित्य जितना समृद्ध होता है ,वह राष्ट्र उतना ही समृद्ध और सशक्त माना जाता है । देवों और ऋषि-मुनियों की परम् पवित्र पुरातन भूमि भारतवर्ष में साहित्य सृजन का इतिहास बहुत ही प्राचीन और गौरवान्वित रहा है ।
आदि कवि बाल्मिकी जी से लेकर वर्तमान के श्रेष्ठ रचनाकारों ने भारतीय संस्कृति को समृद्ध और अक्षुण बनाते हुए समय समय पर अपनी श्रेष्ठ रचनाओं द्वारा समाज को नई दिशा देकर उनमें नव चेतना जागृत किया है ।
साहित्य की विभिन्न विधाओं में काव्य विधा लोगों के मन मस्तिष्क को अधिक प्रभावित करती है । हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में काव्य विधा के सृजनकारों का विशिष्ट योगदान रहा है। आज की आपा-धापी वाली जीवन शैली ने जिस तरह से लोगों के जीने के तरीके बदल दिए हैं , उसी तरह से साहित्यकारों की नवीन रचनाएं भी नए-नए रूपों में सामने आ रही है । एक समय था जब सभी रचनाएं तुकांत और गेय (गीतमय) होती थीं। परंतु अब गेय और अगेय दोनों रचनाएं उतना ही प्रभावशाली, आनंददायी और लोकप्रिय हो चुकी हैं।
आज मुक्त छंद कविताओं का दौर चल रहा है। मुक्त छंद कविताओं में पद की जरूरत नहीं होती। इन रचनाओं में भाव को ही प्रधानता मिलती है। इसमें ख्याल और अनुभव ही प्रभावी होते हैं।
साहित्यिक गतिविधियों में शालीनता और संवेदनशीलता की पहचान बन चुकी कवयित्री कुसुम तिवारी ‘झल्ली’ की इस कृति “जीवन के इंद्रधनुष” में कुल सौ कविताओं का संकलन है। एक अध्यापिका होने के कारण इनके हर शब्द संयमित और मर्यादा की डोर में बंधे हैं । इनकी कविताओं को पढ़कर पाठक आध्यात्म के महासागर में गोते लगाते हुए शांति की प्राप्ति कर सकता है।
इस संकलन की सभी कविताएं विविध भावों को समाविष्ट कर अलग अंदाज बयां करती हैं। साहित्यकार अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में जो अलख जगाना चाहता है, कुसुम जी की रचनाएं उसमें शत-प्रतिशत सफल होंगी । मनुष्य प्रेम के मार्ग पर चलकर आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करते हुए मोक्ष को प्राप्त करना चाहता है । कुसुम जी की कविताएं प्रेम ,अध्यात्म और मोक्ष को केंद्र में रखकर सृजित हैं।
योग साधना, प्यास ,खोज ,महामिलन, इश्क, दीवानगी से समर्पण के भाव ग्रहण करते हैं, वहीं चिंतन, छटपटाहट, प्रश्न , सांसे कविताओं की पंक्तियां सोचने को मजबूर कर देती हैं । जब भी तुम आना, यात्रा अनंत की , सहयोग , स्व की पहचान की पंक्तियां नई उर्जा प्रदान करती हैं।

अपना सम्मान करना मैं जानती हूं
किसी से तुलना करके मुझे
छोटा करने का अधिकार तुम्हें
बिल्कुल नहीं है ,यह माना कि तुम
पुरुष हो और मैं स्त्री लेकिन
फिर भी मुझ बिन तुम कुछ नहीं।

‘मैं स्त्री हूँ ‘ कविता की इन पंक्तियों में बहुत सुंदर तथा तुलनात्मक शब्दों द्वारा स्त्री के निश्चल प्रेम, समर्पण और अस्तित्व की उपस्थिति को सहज रूप में प्रस्तुत किया है।

न मंजिले हैं मुश्किल
न रास्ते हैं तन्हा
हाथों में मेरे हाथ
हरदम अगर तुम्हारा ……..

‘वक्त’ की इन पंक्तियों के माध्यम से समाज में नारी शक्ति का चरित्र चित्रण किया गया है। इसके अलावा अग्निपरीक्षा, मेरे हिस्से की चूड़ियां धीरे-धीरे मरना, सिर्फ जिस्म, रीतापन, रीढ़विहीन, करवा चौथ, पुत्तलिका में स्त्री की मर्यादा , स्वतंत्रता और लोक परंपरा के निर्वाह का बखूबी आत्मसात किया है।

रात का दिन से
शरीर का आत्मा से
शब्द का ब्रह्म से
जीवन का मौत से…. .. ….

कभी सिद्धार्थ बन नींद में
चुपके से छोड़ गए
कभी लक्ष्मण बन
अनदेखा किया………….

‘संबंध’ की पंक्तियों में कवयित्री ने बहुत ही सरल शब्दों में स्त्री-पुरुष के मर्यादाओं की चर्चा की है । पुरुष प्रधान समाज में अक्सर स्त्रियों को बेबस, लाचार और कमजोर दिखाने की परंपरा रही है । लेकिन प्राचीन काल से वर्तमान तक स्त्रियां कभी भी इतना कमजोर नहीं रही हैं जितना दर्शाने का प्रयास किया
जाता है। स्त्रियां शक्ति और समर्पण की प्रतीक है।

कुसुम तिवारी ‘झल्ली’

क्या है प्रेम??
कभी आपने प्रेम किया है ?
प्रेम की पहली कथा जो
भोजपत्र या शिलाओ पर
लिखी गई अधूरी कहानी है या
हवा के जिस्म पर लिखे गए
कुछ मदहोश लम्हात या
फिर सुनी सुनाई कुछ
अधबुनि कढ़ाई?…………

‘ प्रेम कुछ यूं ही’ की पंक्तियों में प्रेम की अवधारणाओं को बखूबी चित्रण किया है। गुज़ारिश, चिर संगिनी, प्रथम मिलन , स्वीकृति के माध्यम से प्रेम-विरह, प्रणय-आलिंगन, कामना- वरण को स्पर्श करने का अच्छा प्रयास किया है।
प्रेम और श्रृंगार रस में लबरेज़ ‘काश हम साथ होते’ , ‘मेरी चाहत..’ की पंक्तियों में प्रेयसी के अरमानों का सुखद और हृदय झंकृत कर देने वाली अनुभूति होती है।

कसम तुम्हें उन यादों की है
जिनपे हर पल मैं जीती हूं
कसम तुम्हें उन वादों की है
जिन्हें लपेट सदा चलती हूं
नहीं मिटेगी प्यास हमारी
है क्या प्यासे से ही मर जाना ?
बिना मिले अबकी मत जाना……

‘बिना मिले अबकी मत जाना’ की पंक्तियों में प्यासे चातक की भांति प्रेयसी अपने प्रिय के इंतजार में बैठी है । आशा और निवेदन करती है कि जब भी उसका प्रिय आए स्वाति की बूंद की भांति उसके मिलन की कामना अवश्य पूरी करे। प्रेम दीपक, झल्ली कुड़ी, रिश्ता में समर्पण की नई अनुभूति देखने को मिलती है।
वैसे तो इस काव्य संग्रह की हर रचनाएं बहुत ही सुंदर और संयमित भाषा में है । जीवन के हर क्षेत्र को स्पर्श करती हुई रचनाएं पाठकों के मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालने में सक्षम हैं।पाठक कुसुम तिवारी ‘झल्ली’ जी की इन रचनाओं को पढ़कर सुखद अनुभूति प्राप्त करेगा। इन की कुछ कविताओं में अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग एक नई विधा को दर्शाता है। हिंग्लिश ( हिंदी+इंग्लिश) के रूप में लिखी गई कुछ कविताएं नयापन लिए हुए हैं।

नई शब्द योजना ,नई अनुभूति और नई विचार शैली के साथ इस दस्तावेजी काव्य संग्रह “जीवन के इंद्रधनुष” की प्रत्येक कविता का अर्थ पाठकों को सहजता से समझ में आ जाता है । कुसुम तिवारी ‘झल्ली’ जी आशा और उम्मीद की कवयित्री हैं । हौसले और तर्क इनके जेहन में बसा है। रचनाएं संयमित और अनुशासित हैं।

अगर आपने इस समीक्षा को पूरी तन्मयता और धैर्य के साथ पढ़ा है तो कुसुम जी के इस काव्य संग्रह को पढ़ना आपके लिए जरूरी हो जाता है । ताकि यह साबित हो सके कि समीक्षक ने सच लिखा है सच के सिवा कुछ नहीं लिखा ।
काव्य प्रेमियों के लिए यह सुंदर काव्य संग्रह पठनीय और संग्रहणीय है।

किताब का नाम – जीवन के इंद्रधनुष
( काव्य संग्रह)
रचनाकार – कुसुम तिवारी ‘झल्ली’
मूल्य – 199 रुपये
प्रकाशक – फिलज़ो पब्लिशर्स प्रा.लि.

समीक्षक- मिथिलेश मिश्र ‘वत्स’

TFOI Web Team