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Durg News – 15000 फ़ीट की ऊंचाई पर रूस में तिंरगा लहरा कर युवाओ के लिए आदर्श बने लोकांत वर्मा

Durg News छत्तीसगढ़ के प्रथम स्काइडाइवर लोकांत वर्मा 15000 फ़ीट की ऊंचाई पर रूस में तिंरगा लहरा कर युवाओ के लिए बने आदर्श

दुर्ग। क्षेत्र के प्रथम स्काइडाइवर लोकांत वर्मा ने स्काइडाइविंग का क्षेत्र चुनकर छत्तीसगढ़ के लिये अब तक का बिल्कुल अछूता क्षेत्र चुना है और अपनी जांबाजी दिखाई है। निः सन्देह इनकी मेहनत आगे और अनेकों युवाओं का मार्ग प्रशस्त करेगी। छत्तीसगढ़ शासन से निवेदन है कि विशिष्ट प्रतिभा के साथ स्वयं के बलबूते व कठिन प्रशिक्षण से तपाकर खुद को कुंदन कर लेने वाले इस युवा को आगे आने वाले स्वर्णिम अवसरों के लिये आर्थिक सुविधा मुहैया करवाएं। जिससे भविष्य में लोकांत वर्मा के प्रतिनिधित्व में हमारा छत्तीसगढ़ भी खेल के इस क्षेत्र में अपना दमखम दिखा सके। लोकांत वर्मा जिन्होंने 15000 फ़ीट की ऊंचाई पर रूस में तिंरगा लहराया है। उनके सपनों की ऊँचाई एवरेस्ट से भी अधिक है आइये जानते हैं उनके सपनों की उड़ान की कहानी उन्ही की जुबानी..

लोकांत वर्मा छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के बिरझापुर का निवासी हूँ। मेरी जन्मतिथि- 05- 01-1982 है। मैंने स्कूली शिक्षा 12 वीं कॉमर्स विषय के साथ पूरी की है। मेरे पिता स्व श्री के. सी. वर्मा तथा माता श्रीमती शेषलता वर्मा हैं।परिवार में पत्नी संगीता वर्मा तथा पुत्र हर्षिल वर्मा है। मेरा पता- शेखर पोल्ट्री फार्म- बिरझापुर, पोस्ट- बरहापुर तहसील- धमधा, जिला दुर्ग (छग) आजीविका के लिये में वर्तमान मैं पोल्ट्री फार्म का व्यवसाय करता हूँ। भारतीय स्काइडाइवर लेफ्टिनेंट कर्नल राजेश नन्दगोपाल तथा प्रथम महिला स्काइडाइवर पद्मश्री थॉमस रचेल एवं पद्मश्री शीतल महाजन मेरे प्रेरणास्त्रोत एवं मार्गदर्शक हैं। मेरे पिता सिंचाई विभाग दुर्ग में इंजीनियर थे। हमारा बचपन वहीं गुजरा। हम तीन भाई हैं हमारी बहन अब नही रहीं। मैं बचपन से कुछ अलग करने की सोच रखता था। मैं अक्सर हवाईजहाज बनाने और उड़ाने के बारे में ही सोचा करता था। स्कूल की पढ़ाई के बाद मध्यप्रदेश में सागर के पास ‘धाना’ में जब बेसिक ट्रेनिंग (स्टेटिक लाइन) के लिये गया। तब पहली बार स्काइडाइविंग के रोमांच को मैंने महसूस किया। और तब से अब तक यह मेरे जीवन का अंग बन गया। मैंने खुद को इस क्षेत्र में समर्पित कर दिया। मैं जब पहली बार घर से उड़ने की सोच कर घर से गया था, तब तक मन में केवल रोमांच था पर जैसे ही प्लेन की ऊंचाई से नीचे धरती को देखा तो थोड़ा डर महसूस हुआ। फिर गहरी सांस लेकर मैंने अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किया। धीरे धीरे से डर जाता रहा। 2011 में धाना में मैंने पहला जंप 3500 फीट की ऊंचाई से किया। दूसरा जंप पूना में किया था तब पद्मश्री शीतल महाजन मेरी इंस्ट्रक्टर थीं। यह जंप बारामती स्काइडाइविंग फेस्टिवल में किया। इस तरह क्रमशः मैंने 5 जंप पुणे में किए। “A” लाइसेंस होल्डर के लिये रसिया में 25 जंप किए। मैने अब तक टोटल 30 जम्प किये हैं। “15000 फ़ीट की ऊंचाई से रूस की सरजमीं में तिरंगा लहराते हुये उतरना मेरे जीवन का अद्भुत गौरवशाली क्षण था।” भविष्य में मैं और ट्रेनिंग और तैयारीयों के साथ भारत का प्रतिनिधित्व करना और हिमालय की चोटी से बेस कैम्प पर जंप करना चाहता हूँ। जिसकी ऊंचाई 8,848 मीटर अर्थात 29,028 फ़ीट है। जिसमे काफ़ी खर्च आयेगा जो मेरी आर्थिक सीमा के बाहर है। इस हेतु मुझे आर्थिक सहायता की जरूरत है। स्काइडाइविंग केवल एक रोमांचक शौक नही यह अब खेल की श्रेणी में भी आता है।

जी हाँ, अब स्काइडाइविंग को खेल का दर्जा मिला हुआ है। वर्ल्ड कप और वर्ल्ड एयर स्पोर्ट्स में भी इसके प्रतिभागी होंगे। इस खेल के खिलाड़ियों ने नार्वे नेशनल एडवेंचर अवार्डस, पद्मश्री जैसे बड़े पुरस्कार जीते हैं। यदि छत्तीसगढ़ सरकार इस दिशा में निर्णय ले तो “डी” लाईसेंस के बाद अवश्य एक दिन मैं भी बतौर प्रतिभागी अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करूंगा। स्काइडाइविंग के लिये अधिकतम आयु की कोई सीमा नही है पर इसके पूर्व फिटनेस का टेस्ट पास करना जरूरी है। छत्तीसगढ़ में इस खेल के प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था अब तक नहीं है पर ऐसा होना चाहिये। हर राज्य सरकार को इस खेल को प्रोत्साहन देना चाहिये, ताकि लोंगो को इसके विषय में जानकारी हो और इस खेल के प्रति रुचि जागे। यदि मुझे मौका मिला तो इस जिम्मेदारी के लिये मैं सहर्ष तैयार हूँ। मैंने स्काइडाइविंग में “A” लाइसेंस प्राप्त कर लिया है अब “ब” के लिये प्रयासरत हूँ। कोरोना और युद्ध की स्थितियों के कारण कुछ व्यवधान हुआ है, रूस स्थित प्रशिक्षण केंद्र अभी प्रशिक्षण आयोजित नही कर रहीं स्काइडाइविंग प्रशिक्षण मुख्यतः चार चरणों से होकर पूर्ण होता है। सबसे पहला चरण “स्टेटिक लाइन”-जिसमें 3500 फ़ीट की ऊंचाई से पैराशूट के साथ नीचे कूदना होता है। दूसरा चरण- “ट्रेंडम” जिसमे एक इंस्ट्रक्टर साथ- साथ हवा में उड़ते हैं। तीसरा चरण-“एएफएफ” जिसमें दाएं और बायें से एक- एक इंस्ट्रक्टर कुछ देर साथ रहकर संकेतों के माध्यम से हवा में बैलेंस बनाने में मदद करते हैं। फिर प्रशिक्षु स्वतंत्र उड़ान भरकर जंप करता है। चौथा चरण- “सोलो” जिसमें 14000 फ़ीट से स्वयं जंप करना होता है। इसमे ए से डी लेबल तक के लाइसेंस होते हैं। डी लाइसेंस के बाद ‘विंगसूट जंप’ होते हैं। 

भारत से दो चार लोग ही अब तक ये कर पाये हैं। 18000 फ़ीट तक नॉर्मल जंप होता है। 30000 फ़ीट पर ऑक्सीजन की जरूरत होती है। मेरे आदर्श “चीफ इंस्ट्रक्टर नंदगोपाल राजेश जी” ने अब तक लगभग 5000 बार जंप किया है। उन्होंने 30000 फ़ीट की ऊंचाई से जंप का रिकार्ड बनाया है। मेरा अगला टारगेट 30,000 फ़ीट है। भारत में इस खेल के लिये प्रोफेशनल स्काइडाइविंग प्रशिक्षण केन्द्र नहीं होने के कारण इसके लिये रूस जाना पड़ता है। रूस तक आने जाने और प्रशिक्षण की फीस आदि में खर्च आता है। अब तक किसी से मैंने कोई मदद नहीं ली है। अपने संसाधनों से ही लगभग 4 लाख खर्च किये हैं। अपने सपने को पूरा करने के लिये मैं बाकी सारी चीजों में मितव्ययिता बरतता हूँ। मेरे पेरेंट्स ने मुझे इस खेल के लिये कभी नही रोका। अपनी पत्नी को भी मैंने कन्वेंश किया कि ईस खेल में महिलाएं भी शामिल हैं। जिनके परिवार और छोटे बच्चे हैं। जब स्काइडाइविंग के पुराने सदस्य अपने बच्चों सहित आसमान में उड़ान भरते हैं देखकर गर्व और आनन्द आता है। खतरा तो जमीन पर भी पाँव- पाँव में है। दुघर्टना अपने हाथ नहीं पर सुरक्षा के प्रति सर्तकता अपने हाथ है। अब मेरे बेटे को भी इस खेल में रुचि होने लगी है। मेरा सपना है कि छत्तीसगढ़ में एक ऐसी खेल अकादमी बनें जिसमे नए खेलों को शामिल किया जाएं, उनके लिये आवश्यक ट्रेनिंग दि जाएं।

हमारे प्रदेश से भी खिलाड़ी प्रतियोगिताओं में भाग लें और विजयी हों। अभी हमारे यहाँ फ्लाइंग सिखाने की कोई व्यवस्था नहीं है। राज्य शासन से अनुसंशा और मदद मिले तो हमारे राज्य में भी बहुत संभावनाएं हैं। यदि किसी को इस विषय मे जानकारी या मार्गदर्शन की जरूरत हो तो बेशक मैं अपनी ओर से पूरी मदद करूंगा। 2019 में कुर्मी समाज द्वारा सांसद विजयबघेल के हाथों मुझे सम्मान प्राप्त हुआ।

लोकांत वर्मा आपको अनन्त शुभकामनाएं… आसमान बाहें पसारे आपके नए कीर्तिमान गढ़ने के इंतज़ार में है।

प्रस्तुति मेनका वर्मा”मौली” 

TFOI Web Team