![राम और भरत के प्रेम कथा राजन जी महाराज 1 love story of ram and bharat rajan ji maharaj](https://thefaceofindia.in/wp-content/uploads/jet-form-builder/cc96eb7abf412c751cddce0993797ab5/2023/12/IMG_20231228_164657-1.jpg)
बरहज, देवरिया। बारीपुर में चल रहे श्री राम कथा के आठवें दिन भरत राम प्रेम की चर्चा करते हुए राजन जी महाराज ने कहा कि जब भैया भरत कौशल्या कैकेई सुमित्रा सुमित गुरु वशिष्ठ सुमंत और अवध की प्रजा के साथ प्रभु को मनाने चित्रकूट पहुंचे तो चित्रकूट में पांच सभाएं हुई पहली सभा में गुरु वशिष्ट जी ने प्रस्ताव रखा और कहा कि भरत शत्रुघ्न तुम वन में रह जाओ ।मैं राम लक्ष्मण और सीता को लेकर अयोध्या वापस चला जाऊं इतना सुनते ही भरत जी ने कहा प्रभु अयोध्या चले जाएं मैं जीवन भर बन में रह जाउंगा जीवन में पहली बार भरत अपने बड़े भाई के सामने हाथ जोड़कर कर कहा भैया जो कलंक मेरे माथे पर लगा है उसे आपही मिटा सकते हैं। लेकिन प्रभु के सामने तो माता-पिता के वचनों का पालन करना था। जो पित्तू मांतू कहेउ बन जाना।सत् कानन तेहि अवध समाना ।पहले दिन की सभा समाप्त हुई चित्रकूट की प्रथम दिन की सभा समाप्त हुई। समाप्त हुई दूसरे दिन पुनः सभा बैठी राजमाता कौशल्या ने भी राम को समझने का प्रयास किया जनक जी जैसे विदेह राज ने भी समझाया। इस सभा का भी कोई निर्णय नहीं आय भरत की बुद्धि के आगे भरत के राम प्रेम के आगे वशिष्ठ जी महाराज की बुद्धि भी काम नहीं की। सारी सभाओं का अंतिम परिणाम यही था ।प्रभु श्री राम की पादुका डूबते हुए अवध की प्रजा को भारत के प्राण को एक नए जीवन के रूप में भगवान ने पादुका दी भरत जी अपने सिर पर रखकर पादुका लेकर वापस आए। और 14 वर्षों तक निरंतर पादुका से आज्ञा मांग कर राज सत्ता चलाया कथा के अंत में मंदिर के उत्तराधिकारी गोपाल दास जी महाराज सहित आगंतुक यजमानों ने भव्य आरती उतारी और प्रसाद वितरित किया गया।
डीएम ने सम्पूर्ण समाधान दिवस का रोस्टर किया जारी