नई शिक्षा नीति के झमेले और बढ़ी हुई शुल्क प्रवेशार्थियों के लिए बनी मुसीबत सेल्फ फाइनेंस पाठ्यक्रमों के लिए खड़ा हुआ मुसीबत
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नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद विश्वविद्यालय में सेमेस्टर प्रणाली शुरू की गई है। जिसका असर उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने वाले छात्र-छात्राओं पर पड़ा है। इसी का नतीजा है इंटरमीडिएट का रिजल्ट घोषित हुए लगभग डेढ़ माह बीत गया लेकिन देवरिया जनपद के किसी भी महाविद्यालय में निर्धारित सीट के 20% सीट पर भी छात्र-छात्राओं ने प्रवेश नहीं लिया है। एडेड कॉलेजों में भी प्रवेशार्थियो की रूचि कम हुई है। सेल्फ फाइनेंस महाविद्यालयो और पाठ्यक्रमों के सामने तो संकट के बादल मंडराने लगे है। जिस तरह उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने वाले छात्र-छात्राओं की रुचि घट रही है।
उसे देखकर आने वाले दिनों में कई डिग्री कॉलेजों के बंद होने की भी संभावना बढ़ गई है। यही कारण है कि जनपद के अधिकांश महाविद्यालयों ने अपने वहां एएनएम जीएनएम जैसे पाठ्यक्रमों की मान्यता के लिए प्रयास तेज कर दिया है छात्र-छात्राओं और अभिभावकों की माने तो नई शिक्षा नीति में असाइनमेंट प्रोजेक्ट और गैर प्रयोगात्मक विषयों में भी प्रैक्टिकल के नाम पर की जाने वाली धन उगाही स्नातक कक्षाओं में रिसर्च प्रोजेक्ट के नाम पर भारी-भरकम खर्च और सभी पाठ्यक्रमों में डेढ़ गुना से 2 गुना फीस बढ़ जाने के कारण संस्थागत रूप से प्रवेश लेने में रुचि घाटी है यदि छात्रवृत्ति की लालच नहीं होती तो अधिकांश छात्र छात्राएं प्राइवेट परीक्षा फार्म भरकर साल में एक बार परीक्षा देने में अधिक रूचि दिखाते दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने प्राइवेट परीक्षा फार्म भी जारी रखकर स्ववित्तपोषित महाविद्यालय और पाठ्यक्रमों की मुसीबत बढ़ा दी है क्योंकि जहां स्नातक और परास्नातक प्राइवेट की फीस 3000 से 3500 के बीच है तो वही संस्थागत रूप से प्रवेश लेने पर स्नातक कक्षाओं में कम से कम 6000 और परास्नातक का छांव में 15 से ₹16000 का खर्च आ रहा है बढ़ते खर्च और असाइनमेंट प्रोजेक्ट के तामझाम तथा प्रयोगात्मक के नाम पर होने वाले शोषण के कारण अभिभावकों और छात्र-छात्राओं का रुझान रेगुलर एडमिशन लेने पर घट रहा है यदि निर्धारित सीट के 50 परसेंट भी सीटों पर प्रवेश नहीं हुआ तो स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों और महाविद्यालयों के सामने संकट के बादल मंडराने लगे है क्योंकि कालेज का खर्च चलाने और फैकेल्टी को सैलरी देने के लिए भी धन एकत्र नहीं हो पाएगा।
ऐसा नहीं है कि महाविद्यालयों में कम एडमिशन की जानकारी विश्वविद्यालय के अधिकारियों को नहीं है। कई बार महाविद्यालयों के प्रबंधक और प्राचार्य इस समस्या से कुलपति को अवगत करा चुके हैं लेकिन कुलपति की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला ।वह तो माइनर विषय के नाम पर प्रति छात्र ₹500 रोवर रेंजर,क्रीडाशुल्क,पंजीकरण शुल्क,नामांकन और परीक्षा शुल्क के नाम पर भी प्रति छात्र एक अच्छी खासी रकम महाविद्यालयों से वसूल ले रहे है। सेमेस्टर प्रणाली के अंतर्गत छात्र छात्राओं को प्रत्येक सेमेस्टर का अंकपत्र मिलना नहीं है लेकिन अंकपत्र के नाम पर ₹100 की वसूली प्रति सेमेस्टर जरूर हो रही है। यही कारण है कि संस्थागत छात्र छात्रा के रूप में प्रवेश लेने के प्रति रुझान कम हुई है। विश्वविद्यालय के अधिकारियों को यह बात भली-भांति ज्ञात है कि महाविद्यालयों में रेगुलर प्रवेश हो या ना हो यदि परीक्षार्थी प्राइवेट फॉर्म भी भरता है तो उससे विश्वविद्यालय की आय में तो कोई कमी होने को नहीं है। इसीलिए सेमेस्टर प्रणाली लागू होने के बाद भी विश्वविद्यालय ने प्राइवेट परीक्षा फार्म भरने का विकल्प विद्यार्थियों को दे रखा है।
संघर्ष से नहीं सेवा से होती है राजनीति
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद देवनगर का एक दिवसीय अभ्यास वर्ग बरहज में संपन्न
छात्र-छात्राओं की माने तो नई शिक्षा नीति व्यवस्था के तहत मीड और एंड सेमेस्टर मिलाकर साल भर केवल परीक्षाएं हो रही हैं कक्षाएं चल नहीं रही हैं। रोजगार मिलना नहीं है इसलिए प्रवेश लेने से कोई फायदा नहीं है। विश्वविद्यालय ने एकेडमिक कैलेंडर जारी जरूर किया है लेकिन उसका अनुपालन नहीं हो रहा है। बीते दिसंबर से ही महाविद्यालयों में केवल परीक्षाएं चल रही हैं कक्षाएं नहीं चल रही हैं ।यहां तक कि कई प्रश्नपत्र तो ऐसे हैं जिनकी 1 दिन भी कक्षाएं नहीं चली है लेकिन विद्यार्थियों को परीक्षा के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। विद्यार्थी तो विद्यार्थी अधिकांश शिक्षकों को भी नई शिक्षा नीति के पाठ्यक्रम और परीक्षा प्रणाली के विषय में बहुत स्पष्ट जानकारी नहीं है इस वजह से भी कॉलेजों में एडमिशन कम हो रहा है। इस संबंध में विद्यार्थियों का कहना है एक तो नॉर्मल यूजी कोर्स बीए बीएससी और बीकाम करने के बाद रोजगार नहीं मिलता ऊपर से लगातार परीक्षा का इतना प्रेशर है कि यह आम विद्यार्थी के बस के बाहर की बात हो गयी हैं।