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फिर एक बार नारी के सम्मान को ठुकराया गया- लेखक-लखनवी आकाश

फिर एक बार नारी के सम्मान को ठुकराया गया

वो स्वर्ण मुद्रा समझकर मुझे लूटते गये,

और मैं मुर्दा बनकर लुटती गई,,

ना वो मुझे लूट कर रईस हो सके,

और ना मैं लुट कर गरीब,,

महज़ कुछ कपड़े ही तो थे मेरे तन पे,

उसे भी ले गए कुछ शरीफ अमीर,,

मैं कल भी गंगा की तरह पवित्र थी,

मैं आज भी गंगा की तरह पवित्र हूँ,,

मुझमें धूल गये कुछ शैतानी अपनी हवस की भूख,

इसमें मेरा क्या दोष,,

मैं जब जन्मी तो एक लक्ष्मी थी,

थोड़ी बड़ी हुई तो गुडिया हुई,

जब थोड़ी समझ आई तो एक कली हुई,

डोली में घर से बनकर फूल सी दूल्हन से पहले,

मैं एक बेटी थी इसलिये इस दुनिया से विदा हुई,,

जब कभी तन्हाइयों में होती हूँ तो रो लेती हूँ,

मैं एक बेटी हूँ खुद को ये समझ कर अपने आँसू पोछ लेती हूँ,,

मेरा तन मर्दों की शान का एक औजार बन गया,

मैं बेटी हूँ, मेरे ही नाम से एक बाज़ार बन गया,,

बोलियाँ लगती गईं मेरी आबरू की उनकी दुकान में,

और मेरे रूप की नुमाइश उनकी महफ़िल का सम्मान बन गया,,

माँ-बाप, भाई की एक दुवा आई बन गई,

मैं बेटी हूँ इसलिये उनकी किस्मत में जुदाई बन गई,,

जब पाठशाला गई तो वहाँ भी मुझे अशलील निगाहों से ताड़ा गया,

मेरे तन पे कुछ फटे कपड़े थे और फीस भरने के ना पैसे थे तो मुझे विद्यालय से भी निकाला गया,,

फिर जब हुई ब्याह के काबिल,

तो एक रिश्ता तलाशा गया,

मैं मिट्टी की मूरत थी मुझे कीमतों से नवाजा गया,,

पिता के माथे का पसीना और माँ की आँखों के आँसू ना उन्हें दिखाई दिये,

बेचकर मेरी माँ का सुहाग मेरा घर बसाया गया,

शायद कई बार ऐसी गम की शिश्कियों से दूल्हन को सजाया गया,

लाखों का दहेज़ देकर भी मुझे ज़िन्दा जलाया गया,,

फिर एक बार नारी के सम्मान को ठुकराया गया

मैं आबाद शब्दों में,

हक़ीक़त में बर्बाद हो गई,

सब कुछ खो कर भी मैं ज़ार-ज़ार हो गई,,

सोचा था कि शिफारिश करूँगी खुदा से,

ख़त्म करदो इस दुनिया के रस्मों रिवाज़ को,,

आँसुवों में पिरोई मैं एक गम का हार हो गई,

मैं पिछले जन्मों का एक उधार थी जो इस जन्म में नीलाम हो गई,,

ओ बेटियों को लूटने वालों तुम कभी खुश ना रह पाओगे,

ये ज़िन्दगी आसान नहीं एक दिन तुम भी मेरी तरह आँसू बहाओगे,,

मैं दुवा करती हूँ अपने उस रब से,

कि एक बेटी जरूर दे हर एक घर को,

तभी वो एक नारी की तक़लीफ़ समझ पायेंगे,

जब करना चाहेँगे किसी बेटी के साथ अन्याय तो उसमें भी अपनी बेटी का मुस्कुराता चहरा पायेंगे।।।

लेखक- लखनवी आकाश

TFOI Web Team