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भगवान का स्मरण अटल पद प्रदान कर सकता है : अचार्य शैलेंद्र शास्त्री

भागलपुर /देवरिया। विकासखंड भागलपुर के पतित पावनी मां सरयू तट स्थित नरियांव ग्राम सभा में आयोजित श्री मद भागवत कथा महायज्ञ के तीसरे दिन बुधवार को कथावाचक पं.शैलेन्द्र शास्त्री ने सुकदेव आगमन, ध्रुव व प्रह्लाद चरित्र की कथा सुनाई। कथावाचक ने ध्रुव के चरित्र के बारे में बताते हुए कहा कि भगवान को प्राप्त करने की कोई उम्र नहीं होती है। ध्रुव ने अपने मन में दृढ़ संकल्प कर लिया था कि मुझे भगवान को प्राप्त करना है और उसी संकल्प को ध्यान में रखते हुए वनवास में तपस्या करते हुए ध्रुव ने भगवान को प्राप्त किया। ध्रुव कथा प्रसंग में बताया कि सौतेली मां से अपमानित होकर बालक ध्रुव कठोर तपस्या के लिए जंगल को चल पड़े। बारिश, आंधी-तूफान के बावजूद तपस्या से न डिगने पर भगवान प्रगट हुए और उन्हें अटल पद प्रदान किया।

शैलेन्द्र शास्त्री ने कहा कि अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ। परीक्षित जब बड़े हुए नाती पोतों से भरा पूरा परिवार था, सुख वैभव से समृद्ध राज्य था। वह जब 60 वर्ष के थे, एक दिन वह क्रमिक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए, उन्होंने आवाज लगाई, लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डाल कर चले गए।

अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है, उसकी मृत्यु सात दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया। उनसे राय मांगी, उस समय विद्वानों ने उन्हें सुकदेव का नाम सुझाया। इस प्रकार सुकदेव का आगमन हुआ।

TFOI Web Team