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सन्नाटा

एक सन्नाटा सा छाने लगा है
अंदर ही अंदर।
बहुत कुछ मेरा अंतर्मन
कहना चाहता है,
मगर पता नहीं क्यों?
लपक कर बैठ जाता है
ये सन्नाटा जुबान पर।
बहुत सी बहती हुई वेदनाए
ह्रदय तल से
बाहर निकलना चाहती हैं,
मगर पता नहीं क्यों?
ये सन्नाटा इन वेदनाओं को
अपनी सर्द हवाओं से
अंदर ही अंदर
क्यों जमा देता है?

राजीव डोगरा
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल ठाकुरद्वारा
पता-गांव जनयानकड़
पिन कोड –176038

TFOI Web Team

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