टेकुआ में मजदूर अधिकार मंच के बैनर तले शहीद ए आजम भगत सिंह,राजगुरु ,सुखदेव के बलिदान दिवस पर उनके चित्र पर पुष्प अर्पित किया गया। मंच के संयोजक रामकिशोर चौहान ने कहा कि भगत सिंह ने 8 अप्रैल 1829 को असेंबली में बम फेंकते समय जो दो नारे दिए उसने भारत की राजनीति को भी नई दिशा दी भगत सिंह द्वारा इंकलाब जिंदाबाद और साम्राज्यवाद का नाश हो नारे गुजने लगे पूरे देश ही नहीं आसपास के देशों में भी इन नारो का प्रचलन हुआ ।श्री चौहान ने कहा कि हाईकोर्ट के बयान में भगत सिंह ने कहा इंकलाब जिंदाबाद से हमारा वह उद्देश्य नहीं था, जो आम तौर पर गलत अर्थ में समझा जाता है। पिस्तौल और बम इंकलाब नहीं लाते ,बल्कि इंकलाब की तलवार विचारों की शान पर तेज होती है। भगत सिंह के साथ सुखदेव और राजगुरु तीनों साथी अंतिम बार गले मिले एक दूसरों की बाहों को हाथ में लेते हुए उन्होंने गीत गाया
“दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फत, मेरी मिट्टी से भी खुशबू ए वतन आएगी “. कार्यक्रम में रमाशंकर मिश्रा, चंद्रिका मिश्रा , दयालू चौहान दुर्वास चौबे, शत्रुघ्न ,जोखू, डॉक्टर मुकेश ,शिवानंद चौहान भीम कुमार भारती ,संदीप ,राम सूरत, वीरेंद्र मद्धेशिया, विशाल चौहान आदि लोग उपस्थित रहे।
आसुरी की चिता का भस्मीकरण है होलिका दहन