Shrimad Bhagwat Katha Gyan Yagya in Saryu Bank Barhaj
बरहज देवरिया। बुधवार को कथावाचक पंडित केशव चंद्र तिवारी ने ध्रुव के चरित्र के बारे में बताते हुए कहा कि भगवान को प्राप्त करने की कोई उम्र नहीं होती है। ध्रुव ने अपने मन में दृढ़ संकल्प कर लिया था कि मुझे भगवान को प्राप्त करना है संकल्प को ध्यान में रखते हुए वनवास में तपस्या कर ध्रुव ने भगवान को प्राप्त किया। ध्रुव कथा प्रसंग में बताया कि सौतेली मां से अपमानित होकर बालक ध्रुव कठोर तपस्या के लिए जंगल को चल पड़े। बारिश, आंधी-तूफान के बावजूद तपस्या रत रहे ध्रुव की कठोर तपस्या देखकर भगवान प्रगट हुए और उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया।
पंडित केशव चंद्र ने कहा कि अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ। परीक्षित जब बड़े हुए नाती पोतों से भरा पूरा परिवार था, सुख वैभव से समृद्ध राज्य था। वह जब 60 वर्ष के थे, एक दिन वह क्रमिक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए, उन्होंने आवाज लगाई, लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डाल कर चले गए।
अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है, उसकी मृत्यु सात दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया। उनसे राय मांगी, उस समय विद्वानों ने उन्हें सुकदेव का नाम सुझाया। इस प्रकार सुकदेव का आगमन हुआ।
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