जाने तेलिया अफगान क्यों था
प्राचीन समय में मुगल शासक सरयू नदी के किनारे बसे तेलिया अफगान पर अपना डेरा जमा कर रहा करते थे कहा जाता है की सरयू नदी के किनारे इस गांव में धनाधोरजंगल हुआ करता था जहां पर पशु पक्षियों का शिकार बड़े आसानी से यहां के लोग करते थे मुगल जब से डेरा जमा कर यहां रहने लगे तब से उनको खाने के लिए बड़े आसानी से जानवर उपलब्ध हो जाते थे और पानी पीने के लिए दक्षिण दिशा में सरयू नदी होने से किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होती थी और यही से इनका व्यापार चलता था इसी तरह से कुछ समय व्यतीत हो जाने के बाद एक साधु इसी नदी के किनारे आकर तेलिया अफगान गांव के सामने अपनी एक छोटी सी कुटिया बनाकर रहने लगे लेकिन बताया जा रहा है कुछ समय व्यतीत हो जाने के बाद साधु की कुटिया के सामने मुगल मांस मछली खाकर हड्डी और कांटा फेंकते रहते थे जिससे नाराज होकर साधु एक दिन आपने तपस्या से अपने शरीर को जला डाला था एवं मरते समय यह कहा कि यहां से सभी मुगलों का नाश होजाएगा तब से सभी मुगल कुष्ठ रोग से पीड़ित होकर यहा से सभी मुगल का शासन समाप्त हो गया एवं शुक्ला लोग यहां पर रहने लगे आज भी यहां पर चैत के रामनवमी एवं नवरात्रि के समय में रामनवमी के दिन भोरेनाथ ब्राह्म का पूजा होता है यहां पर चैत एवं कुंआरे में 1 महीने तक मेला लगता है और ब्राह्म का भाव होता है यहां पर जो लोग सच्ची श्रद्धा के साथ अपनी मनोकामना ले आते हैं उनकी मनोकामना निश्चित ही पूर्ण होती है इसमें कोई संदेह नहीं है यहां के लोग मुगल काल से ही तेलिया अफगान को तेलिया शुक्ला बनाने के लिए लगातार विभाग के अधिकारियों का चक्कर लगा रहे थे लेकिन सदियों बीत जाने के बाद भी तेलिया अफगान का नाम नहीं हट पाया लेकिन योगी सरकार ने तेलिया अफगान का नाम बदलकर तेलिया शुक्ला कर दिया है जिससे तेलिया शुक्ल के लोग आज अपने पूर्वज भोरेनाथ ब्रह्म का गुणगान करते नहीं थक रहे हैं।