जिलाधिकारी अखंड प्रताप सिंह ने आज विकास भवन स्थित गांधी सभागार में मूक-बधिर बच्चों के अभिभावकों के साथ बैठक कर उन्हें कॉक्लियर इम्प्लांट कराने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि एक छोटे से ऑपरेशन से बच्चे की जिंदगी में बड़ा बदलाव आता है और वह सुनने और बोलने में सक्षम हो जाता है जिससे वो सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है।
जिलाधिकारी ने अभिभावकों को संपूर्ण प्रक्रिया से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि कॉक्लियर इंप्लांट कराने के लिए बच्चे की आयु 0-5 वर्ष के मध्य होनी चाहिए। इसके पश्चात बेरा टेस्ट कराया जाता है जिससे पुष्ट होता है कि बच्चे में सुनने की क्षमता है अथवा नहीं। यह टेस्ट गोरखपुर में कराया जाएगा। फिर चिन्हित बच्चों का दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनाया जाएगा निर्धारित तिथि पर ऑपरेशन किया जाएगा। ऑपरेशन के बाद 2 से 3 दिन तक बच्चे को अस्पताल में डॉक्टर की निगरानी में रखा जाता है, फिर उसे डिस्चार्ज कर दिया जाता है। उसके बाद बच्चे की स्पीच थेरेपी कराई जाती है, जिसमें उसकी शब्द को सुनने और बोलने की प्रक्रिया के बारे में विस्तार पूर्वक सिखाया जाता है और बच्चा सामान्य जीवन व्यतीत करने लगता है। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 7 लाख रुपये का खर्च आता है। जिला प्रशासन अभियान के तहत ऑपरेशन कराने वाले बच्चों के बेरा टेस्ट, ऑपरेशन और स्पीच थेरेपी का पूरा खर्च वहन करेगा।
सीडीओ रवींद्र कुमार ने बताया कि अभी तक 133 बच्चों को चिन्हित किया गया है। यदि किसी को अपने आसपास 0-5 आयु वर्ग का कोई मूक बधिर बच्चा दिखता है तो तत्काल विकास भवन स्थित जिला दिव्यांगजन सशक्तिकरण अधिकारी से संपर्क करें।सीएमओ डॉ राजेश झा ने बताया कि गत वर्ष जनपद से 7 बच्चों का निःशुल्क कॉक्लियर इम्प्लांट कराया गया था। सभी बच्चों में सुनने की क्षमता विकसित हो चुकी है और वे बोलने भी लगे हैं।
महर्षि देवरहा बाबा मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विभाग के एचओडी डॉ प्रदीप गुप्ता ने अभिभावकों को ऑपरेशन से संबंधित समस्त प्रक्रियाओं एवं उसके बाद देखभाल करने के संबन्ध में विस्तार पूर्वक अवगत कराया। इस दौरान जिला कार्यक्रम अधिकारी कृष्णकांत राय, सीडीपीओ केके सिंह, श्यामकर्ण सहित विभिन्न अधिकारी एवं अभिभावक गण मौजूद थे।
बैतालपुर निवासी जैनम ने बताया कि उनके बच्चे को जन्म से सुनने और बोलते में समस्या थी। उन्होंने गत वर्ष बेरा टेस्ट के बाद जिला प्रशासन के सहयोग से कॉक्लियर इम्प्लांट कराया। इसके बाद स्पीच थेरेपी हुई और ऑपरेशन के एक वर्ष भीतर ही उनके बच्चे अशफाक ने बोलना शुरू कर दिया है। जैनम ने गांधी सभागार में मौजूद सभी अभिभावकों से बिना किसी झिझक के कॉक्लियर इम्प्लांट कराने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि कोई अभिभावक यह न सोचे कि उनका बच्चा ऑपरेशन के लिए छोटा है। 0-5 वर्ष की आयु ही सही होती है। इसके बाद कॉक्लियर इम्प्लांट कराने से इसकी प्रभाविता कम होती जाती।