2122 1122 1122 22
इश्क़ के हर मंज़र हमकों सुहाने लगते है,
यार को भी तो हम ही हम दिवाने लगते है।
عشق کے ہر منظر ہم کو سوہانی لگتے
ہیں,
یار کو بھی تو ہم ہیں ہم دیوانے لگتے ہیں!
याद आते है ग़म-ए-फ़ुर्क़त में लम्हे सारे,
मिल के ज़ेर-ओ-ज़बर वो सुनाने लगते है।
یاد آتا ہے غم فرقت میں لمحے سارے
مل کے زیر و زبر وہ سنانے لگتے ہیں
-आकिब जावेद© عاقب جاوید
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