बरहज देवरिया, बरहज तहसील के देऊवारी,गहिला, तेलिया शुक्ल, तेलिया कला, सतरांव सहित दर्जनों गांव में हर्षो उल्लास के साथ माता की प्रतिमा का विसर्जन किया गया। विसर्जन के समय भक्त इस तरह से भाव बिभोर हो उठे मानो वास्तव में मूर्ति के रूप में माता दुर्गा स्वंय अपने भक्तों की सुधि लेने के लिए गांव में चली आई हो और विदाई होने पर लोगों की आंखों से आंसू छलक गए। प्रत्येक गांव में रात्रि जागरण देखने को मिलता था जो आज से कहीं देखने को नहीं मिलेगा, प्रत्येक गांव में माता के जयकारे गूंजते रहे। लोगों का कहना था कि माता प्रत्येक वर्ष किसी न किसी रूप में हर गांव में आती हैं और अपने भक्तों से विदा लेकर पुनः अपने धाम को चली जाती हैं ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार भगवान राम पृथ्वी से पापियों को मुक्त करने के लिए मनुष्य के रूप में अयोध्या के राजा दशरथ के यहां पुत्र रूप में अवतरित हुए थे ।और धीरे-धीरे बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक एक मनुष्य को शिक्षा देने के लिए भगवान होते हुए भी एक आदर्श पुत्र के साथ मनुष्य की मर्यादा एवं मनुष्य जीवन को सरल बनाने एवं विपत्तियों के समय में निपटने के लिए मनुष्य को हर समय एक अच्छे मार्ग दिखाएं। जैसे भगवान श्री राम अयोध्या के राजा थे और रावण लंका का राजा था रावण ने बिना परिश्रम किया अपने सैन्य शक्ति से राम के ऊपर प्रभाव करता रहा लेकिन भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम मनुष्य को विपत्तियों से निपटने के लिए अपने राज्य के एक सैनिक का प्रयोग युद्ध के समय नहीं की, यदि भगवान श्री राम चाहे होते तो अयोध्या से बुला लेकर युद्ध कर सकते थे लेकिन उन्होंने मनुष्य की मर्यादा को कायम रखने के लिए मनुष्य को हर विपत्तियों से निपटने के लिए नाना प्रकार की ठोकरे खा करके अपने केवल मधुर वाणी से रावण से बड़ी सेना खड़ा करने का कार्य किये इससे मनुष्य को या सीख मिलती है कि मनुष्य अपने वाणी से विषम से विषम परिस्थितियों को सूझबूझ और वाणी की चतुराई से विषम से विषम विपत्तियों को समाप्त कर सकता है। सिर्फ मनुष्य को संयम और अपनी वाणी पर धैर्य रखना होगा राम चरित मानस में तुलसीदास जी मनुष्य के विषय में बड़ी ही सुंदर एक उदाहरण प्रस्तुत की है।
धिरज धर्म मित्र और नारी आपतकाल परिखेहु चारी।
ठीक उसी प्रकार से भगवान श्री राम रावण से युद्ध करने के लिए अपनी मधुर वाणी एवं अपनी बुद्धि से 18 पद्म सिर्फ बंदरों की सेना तैयार किया और सेना की तो बात ही छोड़ दी जाए भगवान रामचंद्र की सेवा को समुद्र के किनारे देख करके रावण के दूत ने कहा कि हे प्रभु राम से विरोध छोड़ दीजिए और आप भी राम के शरण में चले जाइए जिससे पूरा राज बच सकता है ।नहीं तो निश्चित ही राज समाप्त हो जाएगा लेकिन रावण के ऊपर अहंकार सवार था और जहां अहंकार होता है वहां निश्चित ही विनाश होता है यह पुराणों में वर्णित है। भगवान राम को विजयदशमी के दिन ही रावण पर विजय प्राप्त किया था ।इस नाते हम दशहरा को विजयदशमी के नाम से जानते हैं।
फुटबॉलर प्रतीक का भलुअनी में हुआ जोरदार स्वागत