ऊर्जा का बड़ा स्रोत - रागी 

कैल्शियम, लोहा और प्रोटीन से भरपूर रागी से आटा बनता है। यह साबूत अनाज होता है, जिससे अधिक तृप्ति (फाइबर से) भी मिलती है।

यह ब्रेड का एक बेहतर विकल्प है। रागी और जौं का आटा अपने विशेष रफेज़ /फाइबर /खाद्य रेशों के चलते खून में घुली चर्बी भी कम करता है।

फिंगर मिलेट यानी रागी मिले आटे की रोटी खाने से डायबीटीज कंट्रोल हो सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्लड शुगर का लेवल नियंत्रित रखने में रागी बहुत सहायक है।

पोषक तत्वों से युक्त ज्वार (रागी) का उत्पादन झारखंड तमिलनाड़ु, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश में होता है। हालांकि कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में रागी का सबसे अधिक उपभोग होता है।

गेहूं के आटे के साथ सोयाबीन, रागी या जई का आटा मिलाकर मूली, पालक, मेथी, गाजर आदि सब्जियां भरकर रोटियां बनाएं। परांठे खाने का मन हो तो बिल्कुल हल्का घी लगाएं लेकिन बेहतर रोटी खाना ही है।

रागी का आटा, जौ का आटा, बाजरे का आटा, फाइबर युक्त होते हैं। इनसे आप गेहूं के नमकीन और तीखे मठरी, शक्करपाली, चकली, कचौरियां आदि बनाएं जिनमें आप आटे के साथ बाजरा, रागी, सोयाबीन का आटा मिला सकते हैं।

रागी में कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है जिससे हड्डियां, दांत मजबूत रहते हैं और ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों से जुड़ी बीमारी) से बचाव मिलता है।

रागी में अमिनो एसिड होते हैं जैसे कि मेथिओनिन और लाइसिन जो टिश्शू को झुर्रियों से बचाकर रखने में मदद करते हैं। रागी खाने के फायदे डाइट में शामिल करने से बढ़ती उम्र के आसार देरी से आने में मदद मिल सकती है।

रागी को डाइट में शामिल करने से मेटाबोलिज्म बढ़ जाता है। रागी से पोषण की कमी नहीं होती है।