बोलिये सुरीली बोलियां, खट्टी मीठी आँखों की रसीली बोलियां. रात में घोले चाँद की मिश्री, दिन के ग़म नमकीन लगते हैं. नमकीन आँखों की नशीली बोलियां, गूंज रहे हैं डूबते साए. शाम की खुशबू हाथ ना आए, गूंजती आँखों की नशीली बोलियां.
देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता ज़रा, देखना, सोच-सँभल कर ज़रा पाँव रखना, ज़ोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं. काँच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में, ख़्वाब टूटे न कोई, जाग न जाये देखो, जाग जायेगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा.
किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से, बड़ी हसरत से तकती हैं. महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं, जो शामें इन की सोहबत में कटा करती थीं. अब अक्सर ....... गुज़र जाती हैं 'कम्प्यूटर' के पदों पर. बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें ....
खिड़की पिछवाड़े को खुलती तो नज़र आता था, वो अमलतास का इक पेड़, ज़रा दूर, अकेला-सा खड़ा था, शाखें पंखों की तरह खोले हुए. एक परिन्दे की तरह, बरगलाते थे उसे रोज़ परिन्दे आकर, सब सुनाते थे वि परवाज़ के क़िस्से उसको, और दिखाते थे उसे उड़ के, क़लाबाज़ियाँ खा के, बदलियाँ छू के बताते थे, मज़े ठंडी हवा के! आंधी का हाथ पकड़ कर शायद.
मौत तू एक कविता है. मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको, डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुँचे दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आए मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको.