गुलज़ार की प्रसिद्द 10 बेहतरीन कविताएं!

60 के दशक से बतौर गीतकार अपना करियर शुरू करने वाले गुलज़ार ने कई बेहतरीन कविताएं भी लिखी हैं. 

बोलिये सुरीली बोलियां, खट्टी मीठी आँखों की रसीली बोलियां. रात में घोले चाँद की मिश्री, दिन के ग़म नमकीन लगते हैं. नमकीन आँखों की नशीली बोलियां, गूंज रहे हैं डूबते साए. शाम की खुशबू हाथ ना आए, गूंजती आँखों की नशीली बोलियां.

देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता ज़रा, देखना, सोच-सँभल कर ज़रा पाँव रखना, ज़ोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं. काँच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में, ख़्वाब टूटे न कोई, जाग न जाये देखो, जाग जायेगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा.

किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से, बड़ी हसरत से तकती हैं. महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं, जो शामें इन की सोहबत में कटा करती थीं. अब अक्सर ....... गुज़र जाती हैं 'कम्प्यूटर' के पदों पर. बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें ....

पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैंने काले घर में सूरज रख के, तुमने शायद सोचा था, मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे, मैंने एक चिराग़ जला कर, अपना रस्ता खोल लिया.

इक इमारत है सराय शायद, जो मेरे सर में बसी है. सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते हुए जूतों की धमक, बजती है सर में. कोनों-खुदरों में खड़े लोगों की सरगोशियाँ, सुनता हूँ कभी.

खिड़की पिछवाड़े को खुलती तो नज़र आता था, वो अमलतास का इक पेड़, ज़रा दूर, अकेला-सा खड़ा था, शाखें पंखों की तरह खोले हुए. एक परिन्दे की तरह, बरगलाते थे उसे रोज़ परिन्दे आकर, सब सुनाते थे वि परवाज़ के क़िस्से उसको, और दिखाते थे उसे उड़ के, क़लाबाज़ियाँ खा के, बदलियाँ छू के बताते थे, मज़े ठंडी हवा के! आंधी का हाथ पकड़ कर शायद.

वक़्त को आते न जाते न गुजरते देखा, न उतरते हुए देखा कभी इलहाम की सूरत, जमा होते हुए एक जगह मगर देखा है. शायद आया था वो ख़्वाब से दबे पांव ही, और जब आया ख़्यालों को एहसास न था.

मेरे रौशनदार में बैठा एक कबूतर जब अपनी मादा से गुटरगूँ कहता है लगता है मेरे बारे में, उसने कोई बात कहीं. शायद मेरा यूँ कमरे में आना  और मुख़ल होना उनको नावाजिब लगता है.

अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो! अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं अभी तो किरदार ही बुझे हैं. अभी सुलगते हैं रूह के ग़म, अभी धड़कते हैं दर्द दिल के अभी तो एहसास जी रहा है.

मौत तू एक कविता है. मुझसे एक कविता का वादा है  मिलेगी मुझको, डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को  नींद आने लगे ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद  उफक तक पहुँचे दिन अभी पानी में हो, रात  किनारे के करीब ना अंधेरा ना उजाला हो,  ना अभी रात ना दिन जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आए मुझसे एक कविता का वादा है  मिलेगी मुझको.