दिल के दर्द को कम कर देगा गुलज़ार के शायरी 

वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी, हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते.. वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी.

बेशूमार मोहब्बत होगी उस बारिश  की बूँद को इस ज़मीन से, यूँ ही नहीं कोई मोहब्बत मे  इतना गिर जाता है!

तन्हाई अच्छी लगती है  सवाल तो बहुत करती पर,. जवाब के लिए ज़िद नहीं करती.. 

मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को  खुद से पहले सुला देता, हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे  पहले जाग जाती है।

मोहब्बत आपनी जगह, नफरत अपनी जगह मुझे दोनो है तुमसे. 

मुझसे तुम बस मोहब्बत  कर लिया करो, नखरे करने में वैसे भी  तुम्हारा कोई जवाब नहीं! 

कोई   समझे तो एक बात कहूँ साहब.., तनहाई   सौ   गुना   बेहतर है मतलबी   लोगों   से..! 

हम अपनों से परखे गए हैं  कुछ गैरों की तरह, हर कोई बदलता ही गया  हमें शहरों की तरह....! 

तुम लौट कर आने की तकलीफ़ मत करना, हम एक ही मोहब्बत दो बार नहीं किया करते! 

तमाशा करती है मेरी जिंदगी, गजब ये है कि तालियां  अपने बजाते हैं!