दिल को सुकून देना वाला कुमार विश्वास के शायरी 

कोई दीवाना कहता है,  कोई पागल समझता है, मगर धरती की बेचैनी को  बस बादल समझता है. मैं तुझसे दूर कैसा हूँ,  तू मुझसे दूर कैसी है, ये तेरा दिल समझता है  या मेरा दिल समझता है.

मेरा जो भी तर्जुबा है,  तुम्हे बतला रहा हूँ मैं कोई लब छु गया था तब,  की अब तक गा रहा हूँ मैं बिछुड़ के तुम से अब कैसे,  जिया जाये बिना तडपे जो मैं खुद ही नहीं समझा,  वही समझा रहा हु मैं

मेरे जीने मरने में,  तुम्हारा नाम आएगा मैं सांस रोक लू फिर भी,  यही इलज़ाम आएगा हर एक धड़कन में जब तुम हो,  तो फिर अपराध क्या मेरा अगर राधा पुकारेंगी,  तो घनश्याम आएगा

मोहब्बत एक अहसासों की,  पावन सी कहानी है, कभी कबिरा दीवाना था,  कभी मीरा दीवानी है, यहाँ सब लोग कहते हैं,  मेरी आंखों में आँसू हैं, जो तू समझे तो मोती है,  जो ना समझे तो पानी है। 

अमावस की काली रातों में, जब दिल का दरवाजा खुलता है , जब दर्द की प्याली रातों में,  गम आंसूं के संग होते हैं , जब पिछवाड़े के कमरे में ,  हम निपट अकेले होते हैं ,

जब उंच -नीच समझाने में , माथे की नस दुःख जाती हैं , तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है , और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भरी लगता है !!

जब बासी फीकी धुप समेटें , दिन जल्दी ढल जाता है , जब सूरज का लश्कर , छत से गलियों में देर से जाता है ,

कोई खामोश है इतना,  बहाने भूल आया हूँ किसी की इक तरनुम में,  तराने भूल आया हूँ मेरी अब राह मत तकना  कभी ए आसमां वालो मैं इक चिड़िया की आँखों में, उड़ाने भूल आया हूँ

हमारे शेर सुनकर भी जो खामोश इतना है खुदा जाने गुरुर ए हुस्न में मदहोश कितना है किसी प्याले से पूछा है सुराही ने सबब मय का जो खुद बेहोश हो वो क्या बताये होश कितना है 

जब जल्दी घर जाने की इच्छा , मन ही मन घुट जाती है , जब कॉलेज से घर लाने वाली , पहली बस छुट जाती है ,