Shiv Shakti :  शिव कैसे बने अ‌र्द्धनारेश्वर

जब शिव अपना भिक्षु रूप, तो शक्ति अपना भैरवी रूप त्याग कर समान्‍य घरेलू रूप धारण करती हैं, तब वे ललिता, और  शिव, शंकर बन जाते हैं।

सोमवार को शिवजी की आराधना की जाती है और शक्‍ति के बिना सृष्टि के कर्ता भगवान भोलेनाथ को अपना व्‍यक्‍तित्‍व अपूर्ण लगता है।  

पुरुष और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित होने से ही सृष्टि सुचारु रूप से चल पाती है।  

शक्‍ति के शिव में संयुक्‍त होने को लेकर एक कथा बेहद प्रचलित है। इस कथा के अनुसार शिव-पार्वती विवाह के बाद शिवभक्‍त भृंगी ने उनकी प्रदक्षिणा करने  की इच्छा व्यक्त की।  

शिव ने कहा कि आपको शक्ति की भी प्रदक्षिणा करनी होगी, क्योंकि उनके बिना मैं अधूरा हूं।  

देव और देवी के बीच प्रवेश करने का प्रयत्न करते हैं। इस पर देवी, शिव की जंघा पर बैठ जाती हैं, जिससे वे यह काम न कर सकें।  

भृंगी भौंरे का रूप धारण कर उन दोनों की गर्दन के बीच से गुजर कर शिव की परिक्रमा पूरी करना चाहते हैं। तब शिव ने अपना शरीर शक्ति के शरीर के साथ जोड़ लिया।  

अब वे अ‌र्द्धनारीश्वर बन गए।  अब भृंगी दोनों के बीच से  नहीं गुजर सकते थे। 

शक्ति को अपने शरीर का आधा भाग बनाकर शिव ने स्‍पष्‍ट किया कि वास्तव में स्त्री की शक्ति को स्वीकार किए बिना पुरुष पूर्ण नहीं हो सकता और शिव की भी प्राप्ति नहीं  हो सकती, केवल देवी के  माध्यम से ही ऐसा हो सकता है।  

पार्वती साधना के माध्यम से शिव के हृदय में करुणा और समभाव जगाना चाहती हैं। पार्वती की  साधना अन्य तपस्वियों की  तपस्या से भिन्न है।