लालू प्रसाद यादव से सीखें यह अहम् बात आज के नेता!

बात उस समय की है जब लालू प्रसाद यादव सर्वप्रथम बिहार के मुख्यमंत्री बने थे उनके विरोधी नित्य अखबारों के माध्यम से उनकी जमकर आलोचना करते यहां तक की उनपर जातीय टिप्पणी करने से भी बाज नहीं आते। पर वे अपने काम और उद्देश्य में जूनून के साथ मग्न रहते।एक दिन उनके एक नजदीकी ने उनसे कहा,’विरोधी लोग हर दिन आपके खिलाफ जो चाहे वह झूठ मूठ की बातें नीचता की हद तक करते रहते हैं और आप हैं कि सब हंसी में उड़ा देते हैं।’तब लालू प्रसाद यादव ने अपने उनके प्रत्युत्तर में विनम्रता से मुस्कुराते हुए बोले-
सर्वप्रथम मेरी फिक्र करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।जहां तक बात मेरी आलोचनाओं का है तो मैं इसे सकारात्मक रूप में लेता हूं।इससे हमें दो फायदे हैं पहला वे हमें अपने काम के प्रति और समर्पित बनाते हैं और हमारे कमजोरियों पर जाने अनजाने ध्यान दिलवा देते हैं।दूसरा वे अपनी छुपी हुई मानसिकता जगजाहिर कर हमारे द्वारा कही गई बातों की पुष्टि भी कर देते हैं। वैसे भी जो विरोध में हैं वे आरोप और आलोचना के सिवाय कर भी क्या सकते हैं।
अगर मैं सिर्फ अपनी आलोचनाओं पर ध्यान देने लगूं तो फिर मैं अपने मुख्य उद्देश्य से जल्दी ही भटक जाऊंगा।जो लोग देश और समाज में ऐतिहासिक बदलाव के नजरिए से काम करते हैं वे आलोचनाओं से चिढ़ते नहीं सिखते हैं।मेरे मन में तो बस एक ही बात चलती है किस तरह से समाज के अंतिम पंक्ति के लोगों के जीवन में बदलाव लाते हुए उनमें स्वाभिमान पैदा कर सकूं।अगर मैं इसमें सफल हो गया और इसके बदले करावास भी हो गया तो उसे खुशी खुशी स्वीकार कर लूंगा।जब तक मैं इस पद पर हूं अपनी काबिलियत और शक्ति का उपयोग करते हुए पूर्ण समर्पण भाव से अपने उद्देश्य प्राप्ति तक काम करता रहूंगा। यदि अंत में मैं गलत सिद्ध हो जाता हूं तो मैं लाख सफाई देता रहूं, ‘मैं सही हूं, और मेरा उद्देश्य नेक था’ कोई नहीं समझने के लिए तैयार होगा। और अगर मैं उनके जिंदगी में बदलाव और आत्मस्वाभिमान लाने में सफल रहा तो आलोचना करने वाले के पास पछताने के अलावे क्या होगा। हमारे काम का मूल्यांकन आने वाली पीढ़ियां करेंगी।इसी कारण मैं विरोधियों के आलोचनाओं पर कान नहीं देता।हां जब हमारे शुभ चिंतक हमारी आलोचना करने लगेंगे उस दिन मैं अपने काम और उद्देश्य की समीक्षा अवश्य करूंगा।
आगे लालूजी कहते हैं दुनिया का कोई भी व्यक्ति आलोचना से अपने आप को नहीं बचा पाया है और न बचा पाएगा।आप कुछ भी करें चाहे वह सही हो या ग़लत प्रतिक्रिया अवश्य होनी है। हमेशा हमें अपने शुभचिंतकों के आलोचनाओं को सकारात्मक रूप में लेना चाहिए इससे हमारे व्यक्तित्व, कर्म, व्यवहार, एवं चरित्र में निखार आती है।जब आलोचनाओं के उद्देश्य में भलाई निहित हो तो उसपर अवश्य गौर किया जाना चाहिए।
शेक्सपियर ने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति द्वारा की गई निंदा  सुनिए पर उसपर निर्णय अपना दिजिए।
अतः विरोधियों के आलोचनाओं की न तो चिंता करें और न भय।सफल वही हुआ है जिसे अपने कर्म की पवित्रता और कदमों पर अटूट विश्वास रहा है।
गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम
शिक्षक और सामाजिक चिंतक
औरंगाबाद बिहार
TFOI Web Team