पृथ्वी पर जन्मे प्रथम मानव का नाम सम्भवतः “हाबील” अथवा “क़ाबील” था। सूर्य से टूटी पृथ्वी आग का गोला थी जो धीरे धीरे ठंडी होती गयी और जल थल का निर्माण हुआ. समुद्री जल पृथ्वी के किनारों से टकराते रहा और उसमें फ़ैन पैदा हुआ और कालांतर में वह फ़ैन से फ़नजाईं विकसित हुई फिर एक कोषीय जीव की यात्रा प्रारम्भ हुई उसके बाद धीरे-धीरे मनुष्य अपने विकास की तरह अग्रसर होता गया मनुष्य पृथ्वी पर अनाज था लेकिन मनुष्य को इसका ज्ञान नहीं था ऋग्वेद के अनुसार मनुष्य पशुओं के समान एक झुंड में रहा करता था और उसे समय मनुष्य के पास पहनने के लिए कोई वस्त्र भी नहीं था धीरे-धीरे विकास होता चला गया और मनुष्य को अपनी दैनिक दिनचर्या में बदलाव आना शुरू हुआ.
मनुष्य ने पहले जानवरों का शिकार करके कच्चे मांस को खा जाते थे लेकिन जब मनुष्य में कुछ बदलाव आए तो धीरे-धीरे पाषाण काल में पत्थर की चिंगारी देखकर अग्नि का ज्ञान हुआ और तब से मनुष्य मांस को भुन कर खाना प्रारंभ कर दिया केले के छिलके से वस्त्र का ज्ञान हुआ उसके बाद अन्य का ज्ञान हुआ ऋषि मुनियों से मनुष्य को धर्म के प्रति आस्था होने लगी उसे समय ऋषि मुनियों की तपस्या इस प्रकार थी की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऋषि मुनि जो हमारे समाज को सिंचित करते थे भगवान और भक्त को एक नई दिशा दिखाने का प्रयास करते थे यही नहीं हुए मनुष्य को यह बताना चाहते थे कि आप और हम सभी के बीच भगवान शिव सहित अन्य देवी देवता विचरण करते हैं हम सभी में भगवान का स्वरूप है तपस्या के समय मुनियों के शरीर पर खरपतवार उग जाते थे लेकिन भगवान की असीम कृपा होती थी कि उनको इसका ज्ञान भी नहीं होता था और उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता था सर्दी गर्मी बरसात का कोई असर मनुष्य पर नहीं पड़ता था ऐसा मुनियों ने सिद्ध कर दिया है.
एक समय था जब परिवार का एक व्यक्ति कहीं से दो रुपए का अर्निंग करता था या शिकार करके लता था उसे समय उसके पूरे परिवार के लोग सुकून से कहते थे और नदियों का जल पीकर के आराम से सो जाते थे और उन्हें किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती थी कोई कलह नहीं होता था लेकिन यदि आज के समय की बात की जाए तो आज हम लोग अपने को विकासशील भारत के विकासशील व्यक्ति कहे जाते हैं लेकिन जरा उसे समय को याद कीजिए जिस समय माता-पिता और बड़े भाई का बहुत ही बड़ा योगदान होता था आज हम विकासशील के दुनिया में आधुनिकरण की दुनिया में इतने पीछे होते चले जा रहे हैं कि हम अपने माता-पिता से उनके किए गए कार्यों पर उंगली उठाते हैं और कहते हैं कि आप हमारे लिए क्या किया मंदिर में जाकर के अनेक प्रकार की चढ़ावे चढ़ाते हैं लंगर चलवाया जाता है जिसमें दो से 300 लोगों का कुछ लोगों द्वारा भोजन भी कराया जाता है भूखे को भोजन करना अच्छी बात है लेकिन यदि आधुनिकरण की बात की जाए तो आज अपने माता-पिता से उनके किए का हिसाब पूछा जा रहा है.
माता-पिता इधर से उधर अपने बुढ़ापे में पेट को भरने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं और उनके पुत्र ऐसी गाड़ियों में बैठकर तीर्थ स्थल जातें हैं अपने घरों में अपने सुख सुविधा के लिए कामवाली रखे जाते हैं और अपने माता-पिता के साथ प्रॉपर्टी धन संपत्ति के लिए उन्हें बुढ़ापे का सहारा न बन कर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है यही आधुनिकरण भारत है एक समय था जब एक पुत्र को पालने के लिए उसके माता-पिता अपने सारे सुखों का बलिदान कर देते थे आज भी करते हैं लेकिन जब वह पुत्र बड़ा होकर पढ़ लिखकर कुछ योग्य हो जाते हैं तो अपने माता-पिता पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं कि आप हमारे लिए क्या किया यही विकासशील भारत क्या यही भारत है की संस्कृति है जी हां आज यही डेवलपमेंट कहा जाता है यानी इसे विकासशील भारत कहा जाता है तो मैं ऐसे विकासशील भारत और ऐसी संस्कृति को नहीं मानता क्योंकि जो संसार में सर्व पूज्य है उस माता-पिता को हम भारतवासी अधिकांशत: वृद्ध आश्रम में छोड़ आते हैं या उन्हें सड़कों पर दर-दर की ठोकरे खाते देख प्रसन्न होते हैं ऐसे विकासशील भारत ना बने जो भारत की संस्कृति पर सवाल खड़ा करता माता-पिता अपने पुत्र को पालने के समय अपने सारे सुखों बलिदान करते हैं.
जब बिस्तर गीला हो जाता है तो माता अपने उस गिले बिस्तर पर सोते है और अपने पुत्र को किसी प्रकार से सूखे कपड़े या सुखा स्थान पर सुलाने का काम करते है कि उसके पुत्र को सर्दी ना लग जाए उसके पुत्र को गर्मी ना लगे सारी दवाओं के झोंकों से माता अपने पुत्र को बचाकर अच्छी शिक्षा और अच्छी संस्कृति के साथ अच्छा संस्कार देकर उसे इस संसार में अपना नाम देकर ऊंचा उठने के लिए कार्य करती है लेकिन जब वह पुत्र बड़ा होता है तो यह सारी चीजों को बुलाकर वह सिर्फ अपनी मनमानी रवैया अपनाने का कार्य करता है अपने विकास में इतना व्यस्त होता है कि उसे अपने बूढ़े माता-पिता के लिए थोड़ा समय भी नहीं बचता ऐसे ही वंशज आज भारत के माता-पिता और गौरव के लिए प्रश्न चिन्ह होते जा रहे हैं जिन्हें माता-पिता की जगह उनके नौकरानी उन पुत्रों को पलते है इस तरह से हमारी भारतीय संस्कृति पर सवाल खड़े हो रहे हैं आप सभी से आग्रह है कि इस विकासशील भारत में पहले की संस्कृति को जोड़ें तो हम निश्चित ही भारत ही नहीं पूरे विश्व में पुनः एक बार भारतीय संस्कृति स्थापित कर पाने में सफल होंगे एक समय था जब परिवार में एक व्यक्ति धन कमाता था और सभी लोग आराम से भोजन करते थे लेकिन आज समय है कि सभी लोग धन अर्जित कर रहे हैं लेकिन उनके ही माता-पिता और भाई बंधु दूसरे के घरों में बर्तन धोने का कार्य करते हैं जबकि यदि हम पहले की संस्कृति अपनाते तो हम टूटेंगे नहीं हमारा परिवार टूटता जा रहा है जिससे दूसरा कोई हमारे घरों पर हावी होता है और उसके बाद हम पुनः पूर्ण रूप से टूट जाते हैं यह भारत का विकास नहीं यह भारत का विनाश हो रहा है अतः आप सभी से आग्रह है कि आप लोग आधुनिकरण की जिंदगी में संस्कृति और संस्कार को जोड़े तब जाकर के हम भारत के लोग भारत की एकता और अखंडता को कायम रखने का कार्य करेंगे और निश्चित तौर पर पूरे विश्व में हम भारत के गौरव और मान सम्मान का स्थापित होगा.
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अतः केवल आधुनिकरण नहीं संस्कृत बनने की भी आवश्यकता है जिससे हमारा या पहचान रहे कि हम भारत के लोग हैं।